shabd-logo

भाग 33

2 अगस्त 2022

17 बार देखा गया 17

बिल्वन ठाकुर ढेरों कामों में डूब गया। उसने चट्टग्राम के पहाड़ी क्षेत्रों में विविध प्रकार के उपहारों के साथ द्रुतगामी दूत भेज दिए। वहाँ के कुकी ग्राम-मुखियाओं से कुकी सैनिकों के रूप में सहायता की प्रार्थना की। वे लोग युद्ध का नाम सुनते ही नाच उठे। कुकियों के जितने लाल (ग्रामपति) थे, उन्होंने युद्ध के समाचारस्वरूप लाल कपड़े में बँधे दाव दूतों के हाथों गाँव-गाँव भेज दिए। देखते ही देखते कुकियों का रेला चट्टग्राम की पहाड़ी चोटियों से त्रिपुरा की पर्वत-चोटियों में आ पहुँचा। उन्हें किसी नियम में नियंत्रित करके रखना कठिन होता है। बिल्वन स्वयं त्रिपुरा के गाँव-गाँव जाकर जूम से चुन-चुन कर साहसी युवा पुरुषों को सैनिकों के दल में इकट्ठा करके ले आया। बिल्वन ठाकुर ने आगे बढ़ कर मुगल सैनिकों पर आक्रमण करना उचित नहीं समझा। जब वे समतल भूमि को पार करके अपेक्षाकृत दुर्गम पहाड़ी चोटियों में आ पहुँचेंगे, तब जंगल, पहाड़ और नाना दुर्गम गुप्त मार्गों से सहसा आक्रमण करके उन लोगों को त्रस्त करने का निश्चय किया। बड़े-बड़े शिला-खण्डों से गोमती के जल पर बाँध लगा दिया गया - नितांत पराजय की आशंका देखने पर उसी बाँध को तोड़ कर बाढ़ में मुगल सैनिकों को बहाया जा सकेगा।

इधर नक्षत्रराय देश में लूट मचाते-मचाते त्रिपुरा के पहाड़ी-क्षेत्र में आ पहुँचा। उस समय जूम-कटाई समाप्त हो गई थी। सभी जूमिया हाथों में धनुष-बाण और दाव लेकर युद्ध के लिए तैयार हो गए। उच्छ्वासोन्मुख जल-प्रपात के समान कुकी-दल को और बाँध कर नहीं रखा जा सकता था।

गोविन्दमाणिक्य बोले, "मैं युद्ध नहीं करूँगा।"

बिल्वन ठाकुर ने कहा, "यह कोई काम की बात ही नहीं है।"

राजा ने कहा, "मैं शासन करने योग्य नहीं हूँ; सारे उसी के लक्षण प्रकट हो रहे हैं। उसी कारण मुझमें प्रजा का विश्वास नहीं है, उसी की वजह से दुर्भिक्ष की सूचना, उसी के चलते यह युद्ध। यह सब राज्य के परित्याग के लिए भगवान का आदेश है।"

बिल्वन ने कहा, "यह कभी भी भगवान का आदेश नहीं है। ईश्वर ने आप पर राज्य-भार अर्पित किया है; जितने दिन राज-कार्य नि:संकट था, उतने दिन अपना सहज कर्तव्य अनायास पालन किया, जैसे ही राज्य-भार गुरुतर हो उठा, वैसे ही आप उसे दूर फेंक कर स्वाधीन होना चाहते हैं और ईश्वर का आदेश बता कर अपने को धोखा देकर सुखी बनाना चाहते हैं।"

बात गोविन्दमाणिक्य के मन में लग गई। वे थोड़ी देर निरुत्तर बैठे रहे। अंतत: नितांत कातर होकर बोले, "बुरा मत मानना ठाकुर, मेरी पराजय हो गई है, नक्षत्र मेरा वध करके राजा बन गया है।"

बिल्वन ने कहा, "यदि वास्तव में वैसा ही घटे, तो मैं महाराज के लिए शोक नहीं करूँगा। किन्तु यदि महाराज कर्तव्य को छोड़ कर पलायन करेंगे, तो हम लोगों के लिए शोक का कारण होगा।"

राजा ने थोड़ा अधीर होकर कहा, "अपने ही भाई का खून बहाऊँ!"

बिल्वन ने कहा, "कर्तव्य के सामने भाई, बंधु कोई नहीं होता। कुरुक्षेत्र में युद्ध के अवसर पर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को क्या उपदेश दिया था, स्मरण करके देखिए।"

राजा ने कहा, "ठाकुर, क्या तुम कह रहे हो, मैं अपने हाथ में तलवार लेकर नक्षत्रराय पर वार करूँ!"

बिल्वन ने कहा, "हाँ।"

सहसा ध्रुव आकर गंभीर मुद्रा में बोला, "छी वैसी बात नहीं बोलते।"

ध्रुव खेल रहा था, दोनों पक्षों में कुछ कहा-सुनी सुन कर अचानक उसके मन में आया कि अवश्य ही दोनों लोग कोई दुष्टता कर रहे हैं, अतएव समय रहते दोनों को थोड़ा-सा डाँट-फटकार आना आवश्यक है। यही सब विचार करके वह हठात आकर गर्दन हिलाते हुए बोला, "छी वैसी बात नहीं बोलते।"

पुरोहित ठाकुर को बड़ा आनंद अनुभव हुआ। वह हँस पड़ा, ध्रुव को गोदी में उठा कर चूमने लगा। लेकिन राजा नहीं हँसे। उन्हें लगा, मानो बालक के मुँह से उन्होंने दैव-वाणी सुनी है।

वे असंदिग्ध स्वर में बोल पड़े, "ठाकुर, मैंने निश्चय किया है, मैं यह रक्तपात नहीं होने दूँगा, मैं युद्ध नहीं करूँगा।"

बिल्वन ठाकुर थोड़ी देर चुप रहा। अंत में बोला, "यदि महाराज को युद्ध करने में ही आपत्ति है, तो और एक काम कीजिए। आप नक्षत्रराय से भेंट करके उन्हें युद्ध करने से रोकिए।"

गोविन्दमाणिक्य ने कहा, "इसके लिए मैं सहमत हूँ।"

बिल्वन ने कहा, "तब उसी प्रकार का प्रस्ताव लिख कर नक्षत्रराय के पास भेजा जाए।"

अंतत: वही तय हुआ।

42
रचनाएँ
राजर्षि
0.0
राजर्षि'। 'राजर्षि' में कर्तव्य अकर्तव्य की कसौटी पर पापपुण्य की विवेचना करते हुए घर्मांधता के विरुद्ध जिहाद छेड़ने का प्रयास किया गया है। साथ ही रूढ़ियों को धिक्कारते हुए धर्म, प्रकृति एवं समाज को नए परिपेक्ष्य में देखा गया है। राजर्षि के सम्बन्ध में कुछ कहने का अनुरोध किया गया है। कहने को विशेष कुछ नहीं है। इस बारे में मुख्य वक्तव्य यही है कि यह मेरा स्वप्न में उपलब्ध उपन्यास है।राजर्षि के सम्बन्ध में कुछ कहने का अनुरोध किया गया है। कहने को विशेष कुछ नहीं है। इस बारे में मुख्य वक्तव्य यही है कि यह मेरा स्वप्न में उपलब्ध उपन्यास है।
1

राजर्षि (उपन्यास) : सूचना

2 अगस्त 2022
1
0
0

राजर्षि के सम्बन्ध में कुछ कहने का अनुरोध किया गया है। कहने को विशेष कुछ नहीं है। इस बारे में मुख्य वक्तव्य यही है कि यह मेरा स्वप्न में उपलब्ध उपन्यास है। बालक पत्रिका की संपादिका ने मुझे इस मासिक क

2

राजर्षि भाग 1

2 अगस्त 2022
1
0
0

भुवनेश्वरी मंदिर का पत्थर का घाट गोमती नदी में जाकर मिल गया है। एक दिन ग्रीष्म-काल की सुबह त्रिपुरा के महाराजा गोविन्दमाणिक्य स्नान करने आए हैं, उनके भाई नक्षत्रराय भी साथ हैं। ऐसे समय एक छोटी लडकी अप

3

भाग 2

2 अगस्त 2022
0
0
0

उसके अगले दिन से नींद टूट जाने के बाद, सूर्य उगने पर भी राजा का प्रभात नहीं होता था; उनका प्रभात तभी होता होता था, जब वे दोनों छोटे भाई-बहनों का चेहरा देख लेते थे। वे प्रतिदिन उन लोगों को फूल चुन कर द

4

भाग 3

2 अगस्त 2022
0
0
0

राज-सभा बैठी है। भुवनेश्वरी देवी मंदिर का पुरोहित कार्यवश राज-दर्शन को आया है। पुरोहित का नाम रघुपति है। इस देश में पुरोहित को चोंताई संबोधित किया जाता है। भुवनेश्वरी देवी की पूजा के चौदह दिन बाद देर

5

भाग 4

2 अगस्त 2022
0
0
0

भुवनेश्वरी देवी मंदिर का सेवक जयसिंह जाति से राजपूत, क्षत्रिय है। उसके पिता सुचेत सिंह त्रिपुरा राज घराने में पुराने सेवक थे। सुचेत सिंह की मृत्यु के समय जयसिंह एकदम बालक था। इस अनाथ बालक को राजा ने म

6

भाग 5

2 अगस्त 2022
0
0
0

प्रात:काल नक्षत्रराय ने आकर रघुपति को प्रणाम करके पूछा, "ठाकुर, क्या आदेश है?" रघुपति ने कहा, "तुम्हारे लिए माँ का आदेश है। चलो, माँ को प्रणाम करो।" दोनों मंदिर में गए। जयसिंह भी साथ-साथ गया। नक्षत्

7

भाग 6

2 अगस्त 2022
0
0
0

नक्षत्रराय के चले जाने पर जयसिंह ने कहा, "गुरुदेव, ऐसी भयानक बात कभी नहीं सुनी। आपने माँ के सम्मुख माँ का नाम लेकर भाई के हाथों भाई की हत्या का प्रस्ताव कर दिया, और मुझे खड़े होकर वही सुनना पड़ा।" रघ

8

भाग 7

2 अगस्त 2022
0
0
0

जयसिंह को पूरी रात नींद नहीं आई। जिस विषय पर गुरु के साथ चर्चा हुई थी, देखते-देखते उसकी शाखा-प्रशाखाएँ निकालने लगीं। अधिकांश समय आरम्भ हमारे अधिकार में होता है, अंत नहीं। चिन्ता के सम्बन्ध में भी यही

9

भाग 8

2 अगस्त 2022
0
0
0

गोमती नदी का दक्षिणी किनारा एक स्थान पर बहुत ऊँचा है। बारिश की धारा और छोटे-छोटे सोतों ने इस ऊँची भूमि को नाना गुहा-गह्वरों में बाँट दिया है। इसके कुछ दूर बडे-बड़े शाल और गाम्भारी1 वृक्षों ने लगभग अर्

10

भाग 9

2 अगस्त 2022
0
0
0

मंदिर बहुत दूर नहीं है। लेकिन जयसिंह निर्जन नदी के किनारे से होते हुए बहुत घूम कर धीरे-धीरे मंदिर की ओर चला। उसके मन में भारी चिन्ता उठने लगी। एक जगह नदी के किनारे पेड़ के नीचे बैठ गया। दोनों हाथों से

11

भाग 10

2 अगस्त 2022
0
0
0

महाराज ने महल लौट कर नियमित राज-काज निबटाया। प्रात:कालीन सूर्यालोक ढक गया है। मेघों की छाया से दिन में ही अंधकार घिर आया है। महाराज अत्यंत अनमने हैं। और दिन नक्षत्रराय राजसभा में उपस्थित रहता है, आज न

12

भाग 11

2 अगस्त 2022
0
0
0

नक्षत्रराय जब राजा का हाथ पकड़े जंगल से घर लौट रहा था, तब आकाश से थोड़ा-थोड़ा उजाला आ रहा था - किन्तु नीचे जंगल में घना अंधेरा छा रहा है। मानो अंधकार की बाढ़ आ रही है, केवल पेड़ों की चोटियाँ ऊपर से बच

13

भाग 12

2 अगस्त 2022
0
0
0

जयसिंह उसके अगले दिन मंदिर में लौट कर आया। अब तक पूजा का समय निकल चुका है। रघुपति दुखी चेहरा लिए अकेला बैठा है। इसके पहले कभी ऐसा नियम भंग नहीं हुआ था। जयसिंह गुरु के निकट न जाकर अपने बगीचे में चला ग

14

भाग 13

2 अगस्त 2022
0
0
0

मंदिर में अनेक लोग एकत्र हो गए हैं। खूब कोलाहल हो रहा है। रघुपति ने रूखे स्वर में पूछा, "तुम लोग क्या करने आए हो?" वे नाना कण्ठों में बोल पडे, "हम लोग ठकुराइन(देवी के काली रूप को ठकुराइन भी कहा जाता

15

भाग 14

2 अगस्त 2022
0
0
0

उसके अगले दिन आषाढ़ की उनतीसवीं तिथि। आज रात चतुर्दश देवताओं की पूजा है। आज जब प्रभात में ताड़-वन की ओट से सूरज उठ रहा है, तो पूर्व दिशा में बादल नहीं हैं। जब जयसिंह स्वर्णकिरणों से भरे आनंदमय कानन मे

16

भाग 15

2 अगस्त 2022
0
0
0

चतुर्दशी तिथि। बादल भी छाए हैं, चन्द्रमा भी निकला है। आकाश में कहीं आलोक है, कहीं अंधकार। कभी चन्द्रमा निकल रहा है, कभी चन्द्रमा छिप रहा है। गोमती के किनारे वाला जंगल चन्द्रमा की ओर देख कर अपनी गहन अं

17

भाग 16

2 अगस्त 2022
0
0
0

राजा के आदेश के अनुसार नक्षत्रराय प्रजा के असंतोष का कारण खोजने के लिए प्रभात-काल में स्वयं बाहर निकला। उसे चिन्ता होने लगी, मंदिर कैसे जाए! रघुपति के सामने पड़ जाने पर वह कैसा सकपका जाता है, अपने को

18

भाग 17

2 अगस्त 2022
0
0
0

ध्रुव उसी दिन शाम को नक्षत्रराय को देखते ही "चाचा" पुकारते हुए दौड़ा हुआ आया, छोटे-छोटे दोनों हाथ उसके गले में डाल कर, उसके कपोल से कपोल छुआ कर, मुँह के पास मुँह ले गया। धीरे से बोला, "चाचा।" नक्षत्र

19

भाग 18

2 अगस्त 2022
0
0
0

अगले दिन न्याय। न्यायालय में लोगों की भीड़। न्यायाधीश के आसन पर राजा विराजमान हैं, सभासद चारों ओर बैठे हैं। दोनों बंदी सामने हैं। किसी के भी हाथों में हथकड़ी नहीं हैं। केवल सशस्त्र प्रहरी उन्हें घेरे

20

भाग 19

2 अगस्त 2022
0
0
0

प्रहरियों ने जब निर्वासन के लिए तैयार रघुपति से पूछा, "ठाकुर, किस दिशा में जाएँगे," तो रघुपति ने उत्तर दिया, "पश्चिम की ओर जाऊँगा।" नौ दिन तक पश्चिम की ओर यात्रा करने के बाद बंदी और प्रहरी ढाका शहर क

21

भाग 20

2 अगस्त 2022
0
0
0

विजयगढ़ का विशाल जंगल ठगों का अड्डा है। जो रास्ता जंगल में से होकर गुजरा है, उसके दोनों ओर कितने ही नर-कंकाल दबे हैं, उनके ऊपर केवल जंगली फूल खिल रहे हैं, और कोई निशान नहीं। जंगल में वट है, बबूल है, न

22

भाग 21

2 अगस्त 2022
0
0
0

विजयगढ़ पहाड़ पर है। विजयगढ़ का जंगल दुर्ग के आसपास जाकर समाप्त हो जाता है। रघुपति ने जंगल से बाहर निकल कर अचानक देखा, मानो पत्थर का विशाल दुर्ग नीले आकाश की अवहेलना करते हुए खड़ा है। अरण्य जिस प्रकार

23

भाग 22

2 अगस्त 2022
0
0
0

किसी प्रकार शाहशुजा को मुट्ठी में करना ही रघुपति का उद्देश्य था। उसने जैसे ही सुना, शुजा दुर्ग पर आक्रमण करने में जुटा है, वैसे ही सोच लिया, मित्र भाव से दुर्ग में प्रवेश करके किसी तरह दुर्ग पर आक्रमण

24

भाग 23

2 अगस्त 2022
0
0
0

चाचा साहब के लिए क्या आनंद का दिन है। आज दिल्ल्लीश्वर के राजपूत सैनिक विजयगढ़ के अतिथि हुए हैं। प्रबल प्रतापी शाहशुजा आज विजयगढ़ का बंदी है। कार्तवीर्यार्जुन के बाद से विजयगढ़ को ऐसा बंदी और नहीं मिला

25

भाग 24

2 अगस्त 2022
0
0
0

सुचेत सिंह को चाचा साहब के चंगुल से छूटने में अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ा। कल प्रात: बंदी सहित सम्राट की सेना के कूच का दिन निर्धारित हुआ है, यात्रा की तैयारी के लिए सैनिक नियुक्त हुए हैं। शाहशुजा कै

26

भाग 25

2 अगस्त 2022
0
0
0

गुजुरपाड़ा ब्रह्मपुत्र के किनारे छोटा-सा गाँव है। एक छोटा-सा जमींदार है, नाम है, पीताम्बर राय; बाशिंदे अधिक नहीं हैं। पीताम्बर अपने पुराने चण्डीमण्डप में बैठा स्वयं को राजा कहता रहता है। उसकी प्रजा भी

27

भाग 26

2 अगस्त 2022
0
0
0

रघुपति ने पूछा, "यह सब क्या हो रहा था?" नक्षत्रराय ने सिर खुजलाते हुए कहा, "नाच हो रहा था।" रघुपति ने घृणा से मुँह सिकोड़ते हुए कहा, "छी छी!" नक्षत्र अपराधी के समान खड़ा रहा। रघुपति ने कहा

28

भाग 27

2 अगस्त 2022
0
0
0

दीर्घ पथ। कहीं नदी, कहीं घना जंगल, कहीं छायाहीन प्रांतर - कभी नौका पर, कभी पैदल, कभी टट्टू घोड़े पर - कभी धूप, कभी बारिश, कभी कोलाहल भरा दिन, कभी रात्रि का निस्तब्ध अंधकार - नक्षत्रराय बिना रुके चलता

29

भाग 28

2 अगस्त 2022
0
0
0

अंतत: राजधानी पहुँच गए। पराजय और पलायन के बाद शुजा नवीन सैन्य-संगठन की कोशिश में लगा है। किन्तु राज-कोष में अधिक धन नहीं है। प्रजा-जन कर के भार से पीड़ित हैं। इसी बीच दारा को पराजित और निहत करके औरंगज

30

भाग 29

2 अगस्त 2022
0
0
0

इस उपन्यास के आरम्भ काल से अब तक दो वर्ष हो गए हैं। तब ध्रुव दो बरस का बालक था। अब उसकी उम्र चार बरस है। अब वह बहुत बातें सीख गया है। अब वह अपने को बहुत बड़ा आदमी समझता है; यद्यपि सारी बातें साफ-साफ न

31

भाग 30

2 अगस्त 2022
0
0
0

इस साल त्रिपुरा में एक अभूतपूर्व घटना घटी। सहसा उत्तर से झुण्ड के झुण्ड चूहे त्रिपुरा के खेतों में आ पहुँचे। सारी फसल बर्बाद कर डाली, यहाँ तक कि किसानों के घरों में जितना कुछ अनाज इकट्ठा था, वह भी अधि

32

भाग 31

2 अगस्त 2022
0
0
0

नक्षत्रराय मुगल सैनिकों का स्वामी बना रास्ते में तेंतुले नाम के एक छोटे-से गाँव में विश्राम कर रहा था। प्रात:काल रघुपति ने आकर कहा, "महाराज, यात्रा पर निकलना है, तैयार हो जाइए।" रघुपति के मुँह से स

33

भाग 32

2 अगस्त 2022
0
0
0

जब त्रिपुरा में चूहों का उत्पात शुरू हुआ था, तब श्रावण माह था। उस समय खेतों में केवल भुट्टे फल रहे थे और पहाड़ी खेतों में धान में दाने आने प्रारम्भ हुए थे। किसी तरह तीन महीने कट गए - अगहन के महीने में

34

भाग 33

2 अगस्त 2022
0
0
0

बिल्वन ठाकुर ढेरों कामों में डूब गया। उसने चट्टग्राम के पहाड़ी क्षेत्रों में विविध प्रकार के उपहारों के साथ द्रुतगामी दूत भेज दिए। वहाँ के कुकी ग्राम-मुखियाओं से कुकी सैनिकों के रूप में सहायता की प्रा

35

भाग 34

2 अगस्त 2022
0
0
0

नक्षत्रराय सैनिकों के साथ आगे बढ़ने लगा, कहीं तिलभर भी बाधा नहीं आई। त्रिपुरा के जिस भी गाँव में उसने कदम रखा, वही गाँव उसकी राजा के रूप में अगवानी करने लगा। पग-पग पर राजत्व का आस्वाद पाने लगा - क्षुध

36

भाग 35

2 अगस्त 2022
0
0
0

गोविन्दमाणिक्य नक्षत्रराय का उत्तर सुन कर बहुत मर्माहत हुए। बिल्वन ने सोचा, शायद महाराज अब आपत्ति प्रकट नहीं करेंगे। किन्तु गोविन्दमाणिक्य बोले, "यह बात कभी भी नक्षत्रराय की नहीं हो सकती। यह उसी पुरोह

37

भाग 36

2 अगस्त 2022
0
0
0

बिल्वन ने लौट कर देखा, इस बीच राजा ने कुकियों को विदा कर दिया है, उन्होंने राज्य में उपद्रव आरम्भ कर दिया था। सैनिकों के दल को लगभग भंग कर दिया है। युद्ध की कोई विशेष तैयारी नहीं है। बिल्वन ने लौट कर

38

भाग 37

2 अगस्त 2022
0
0
0

नक्षत्रराय ने सैन्य-सामंतों के साथ पूर्व के द्वार से राजधानी में प्रवेश किया, थोड़ा-सा धन और कुछेक अनुचर लेकर गोविन्दमाणिक्य ने पश्चिम वाले द्वार से यात्रा प्रारम्भ की। नगर के लोगों ने बाँसुरी फूँक कर

39

भाग 38

2 अगस्त 2022
0
0
0

नक्षत्रराय ने छत्रमाणिक्य नाम धारण करके विशाल समारोह में राजपद ग्रहण किया। राजकोष में अधिक धन नहीं था। प्रजा-जनों का सर्वस्व छीन कर वायदे के अनुसार धन देकर मुगल सैनिकों को विदा करना पड़ा। छत्रमाणिक्य

40

भाग 39

2 अगस्त 2022
0
0
0

रामू के दक्षिण में राजाकूल के निकट मगों का जो दुर्ग है, वे अराकान के राजा की अनुमति लेकर वहीं रहने लगे। गाँववालों के जितने बाल-बच्चे थे, सब के सब दुर्ग में गोविन्दमाणिक्य के पास आ जुटे। गोविन्दमाणिक्

41

भाग 40

2 अगस्त 2022
0
0
0

(यह परिच्छेद में  बंगाल का इतिहास से संग्रहीत) इधर शाह शुजा अपने भाई औरंगजेब की सेना द्वारा उत्पीड़ित होकर भागा फिर रहा है। इलाहाबाद के निकट युद्ध क्षेत्र में उसकी पराजय हो गई। विपक्षियों से पराक्रां

42

भाग 41

2 अगस्त 2022
0
0
0

जिस दुर्ग में गोविन्द माणिक्य रहते थे, एक दिन वर्षा के अपराह्न में उसी दुर्ग के मार्ग से एक फकीर के साथ तीन बालक और एक वयप्राप्त भारवाही चले आ रहे हैं। बालक अत्यधिक थके दिखाई पड़ रहे हैं। हवा तेज बह र

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए