
बेंगलुरु : जिन राज्यों में साक्षरता दर अधिक है, उन राज्यों में विरोध प्रदर्शन की घटनाएं अधिक हुई हैं और इनमें से लगभग आधे राजनीति क दलों के नेतृत्व में हुए हैं। यह जानकारी पिछले छह वर्षों के पुलिस आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आई है। विश्लेषण के लिए वर्ष 2009 से 2014 के बीच का समय चुना गया। इस अवधि के दौरान पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (बीपीआरडी) के आंकड़ों से पता चलता है कि छात्र के नेतृत्व वाले आंदोलन (148 फीसदी) से देश की शांति ज्यादा भंग हुई है।
प्रांतीय स्तर पर कॉलेजों में छात्र संघों पर प्रतिबंध के बावजूद, कर्नाटक में सबसे अधिक छात्रों ने विरोध प्रदर्शन (12 फीसदी) किया। ‘कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव’ नाम की संस्था के साथ जुड़े ‘एक्सेस टू जसटिस’ प्रोग्राम के समन्वयक वेंकटेश नायक कहते हैं, “इसका कारण उच्च साक्षरता दर और राज्य में शैक्षिक संस्थानों की एकाग्रता हो सकती है।
कर्नाटक में साक्षरता दर 75.6 फीसदी है। (राष्ट्रीय औसत 74 फीसदी है । कर्नाटक की राजधानी, बैंगलुरु में कॉलेजों की संख्या 911 है, जो अन्य किसी भारतीय शहर की तुलना में ज्यादा है। वर्ष 2009 से 2014 के बीच पुलिस द्वारा दर्ज की गई सभी विरोध प्रदर्शनों में से तमिलनाडु, पंजाब, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की हिस्सेदारी 50 फीसदी से अधिक है। मध्य प्रदेश को छोड़कर अन्य सभी राज्यों की साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
भारत में विरोध प्रदर्शनों में लगातार वृद्धि, हर दिन 200 का आंकड़ा
वर्ष 2009 से 2014 के बीच, भारत भर में 420,000 विरोध प्रदर्शन हुए हैं। यानी राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिदिन औसतन 200 का आंकड़ा है। (टेबल 1 देखें)। इन आंकड़ों में पिछले पांच वर्षों में 55 फीसदी की वृद्धि हुई है। आंकड़ो की वृद्धि में मुख्य योगदान तमिलनाडु और पंजाब का रहा है। इन दोनों राज्यों में विरोध प्रदर्शनों में कुछ ज्यादा ही वृद्धि दर्ज देखी गई है। वैसे तो देश भर में अशांति बढ़ने के कई कारण माने जाते रहे हैं। हमारे विश्लेषण में मुख्य कारण के रुप में सांप्रदायिकता (92 फीसदी), सरकारी कर्मचारी की शिकायतें (71 फीसदी), राजनीतिक विरोध (42 फीसदी) और मजदूरों से जुड़े मुद्दे (38 फीसदी) सामने आए हैं।
साभार : इंडिया स्पेंड