नई दिल्लीः यूएनओ से भारत के लिए एक अच्छी खबर है। पेरिस समझौते में भारत के शामिल होने पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने दिल खोलकर तारीफ की है। इस समझौते के बाद भारत 2030 तक 40 प्रतिशत बिजली गैर जीवाश्म ईंधन स्रोतों से उत्पादित करने के लिए प्रतिबद्ध होगा। पेरिस समझौता विश्व का पहला समझौता है, जिसमें कार्बन उत्सर्जन को कम कर जलवायु परिवर्तन की समस्या से निजात पाने का लक्ष्य है। यूएनओ ने कहा है कि भारत ने पेरिस समझौते में शामिल होने की सहमति का दस्तावेज दे दिया है। खास बात है कि इस समझौते में शामिल होने के बाद भारत को सौ अरब डॉलर की मदद मिलेगी।
दो डिग्री सेल्सियस से नीचे कार्बन उत्सर्जन करने का लक्ष्य
पिछले साल दिसंबर में यह समझौता हुआ था। तब दुनियाभर के देश जलवायु परिवर्तन को सालाना दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने पर सहमत हुए थे। तय हुआ था कि देश हरसंभव तरीके से कार्बन उत्सर्जन में कटौती करेंगे।
समझौते में भारत के शामिल होने के मायने
इस समझौते में औपचारिक तौर पर शामिल होने वाला भारत 62 वां देश है। वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में भारत की भागीदारी 4.5 प्रतिशत है।भारत में ऊर्जा की जरूरत पूरी करने के लिए सर्वाधिक बिजली कोयले से बनाई जाती है। यह कार्बन उत्सर्जन में अहम कारक है। दरअसल पीएम नरेंद्र मोदी ने बीते दिनों कहा था कि भारत गांधी जयंती पर दो अक्टूबर को पेरिस समझौते पर अपनी मुहर लगाएगा। ताकि पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से लड़ाई में दुनिया के देशों के साथ भारत कदमताल कर सके। यहां बता दें कि वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 55 फीसदी भागीदारी वाले कम से कम 55 देश जब पेरिस समझौते का दस्तावेज यूएनओ को सौपेंगे तभी यह विश्वभर के संबंधित देशों में कानूनी तौर पर लागू होगा।
पेरिस समझौते में क्या है खास
पेरिस समझौते में भारत जैसे विकासशील देशों को कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने के लिए 2020 तक सौ अरब डॉलर की मदद मिलेगी। बाद में इस आर्थिक सहायता की अवधि का विस्तार किया जा सकता है। देशों में दो डिग्री सेल्सियस से नीचे तापमान वृद्धि को रखना और इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकने का लक्ष्य है। इसके अलावा ग्रीन हाउस गैसों को कम करने के लिए इस सदी के दूसरे हिस्से में संतुलन स्थापित करना है। समझौते के लागू होने के बाद कम से कम तीन साल बाद ही कोई देश इससे खुद को अलग कर सकेगा। हर पांच साल पर इसकी समीक्षा होगी।