नई दिल्लीः पांच करोड़ का समाजवादी मर्सिडीज रथ लेकर विकास का ढिंढोरा पीटने चले यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अगर फुर्सत हों तो यह रिपोर्ट जरूर पढ़ लें। उन्हें पता लग जाएगा कि जब देश बेटियों को आगे बढ़ाने की बात कर रहा है तो फिर उनके सूबे में कोख के कत्लखाने क्यों चल रहे हैं। जन्म से पहले कन्याओं की कोख में कत्ल रोकने के लिए पीसीपीएनडीटी एक्ट को यूपी में हवा में क्यों उड़ रहा है। विशेष ऑडिट रिपोर्ट से साफ खुलासा हुआ है कि अखिलेश सरकार कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए जरा भी तत्पर नहीं है। यहां न अल्ट्रासाउंड सेंटर्स पर छापे हो रहे हैं न जांच कराने वाली गर्भवती महिलाओं की सेंटर पर ब्योरा रखा जाता है। यहां तक कि जागरूकता के लिए केंद्र सरकार से जो बजट मिल रहा उसे भी यूपी सरकार खर्च नहीं कर पा रही है। नतीजा है कि देश के औसत से कहीं बदतर है यूपी में चाइल्ड सेक्स रेशियो। यह खाई हर साल गहराती जा रही है। बाराबंकी के सामाजिक कार्यकर्ता विवेक कुमार कहते हैं कि सियासत को ऐसे सामाजिक मुद्दों की क्यों चिंता होगी, जब इससे कोई वोटबैंक नहीं जुड़ा है।
सीज 120 अल्ट्रासाउंड मशीनों को अफसरों ने दिया बेच
खास बात है कि विशेष ऑडिट के दौरान पता चला कि यूपी में 2010 से 2015 के बीच छापे के दौरान पीसीपीएनडीटी एक्ट उल्लंघन पर कुल 120 अल्ट्रासाउंड मशीनें बरामद हुईं थीं। मगर जब इन मशीनों के बारे में पूछताछ हुई तो इन मशीनों के बारे में सरकारी अमला कोई जानकारी नहीं दे सका। जांच में पता चला कि जिन पर सीज मशीनों के देखरेख की जिम्मेदारी रही, उन्होंने इसे बैकडोर से बेच दिया। उन्हें नहीं पता था कि ऑडिट के दौरान यह घपला पकड़ा जाएगा। जब कैग की जांच में इसका खुलासा हुआ तो परिवार कल्याण विभाग इन मशीनों के बारे में कोई जवाब नहीं दे सका।
यूपी में बढ़ रही चाइल्ड सेक्स रेशियो की खाई
पीसीपीएनडीटी एक्ट का समुचित क्रियान्वयन न होने से यूपी में राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा सेक्स रेशियो की खाई बढ़ती चली जा रही है। देश में जहां 2014 के सर्वे में चाइल्ड रेसियो 1000 पर 915 कन्याओं का है, वहीं यूपी में सिर्फ 883 का। अगर 2011 के जनगणना के आंकड़ों की बात करें तो चाइल्ड सेक्स रेशियो देश का 919 का रहा जबकि यूपी में 902 यह आंकड़ा रहा।
नहीं खर्च हो पाई जागरूकता की धनराशि
केंद्र सरकार ने पीसीपीएनडीटी एक्ट के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए कुल 2010 से 2014 के बीच कुल सात करोड़ रुपये मुहैया कराए। मगर यूपी सरकार इसमें से सिर्फ 54 प्रतिशत यानी 3.86 करोड़ रुपये ही खर्च कर सकी।