नारी जीवन दर्पण सूना क्यों नारी मन शदियों से रीत रिवाज़ के दायरों में जीवन जीती है नारी वक्त बदला सोच बदली नारी जीवन अब भी कायदे है जारी अब भी कहीं बाल विवाह से बचपन मुरझाता कहीं अबला समझ अपना ज़ोर आजमाता कोई विधवा जीवन जीने को मजबूर कोई घरेलू हिंसा को शिकार विवश है अनचाहे रिश्ते निभाना को चाहे ना हो मंजूर कहीं वासना की होती शिकार हर मोड़ पर नारी सहती अत्याचार सिर्फ शब्दो में नहीं लाओं बदलाव सच मे हालत बदलने का करो चाव सोच बदलो विचार बदलो शब्दो पर रहो कायम बदलो समाज के जरा नियम सहज बने तब ही नारी जीवन।
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