
नई दिल्ली: समाजवादी पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव ने बोफोर्स मामले में चौंकाने वाला बयान दिया है। 1996-98 में जब मुलायम सिंह देश के रक्षा मंत्री थे तो उन्होंने जानबूझकर बोफोर्स की फाइलें गायब कर दी थी और इसको बढ़ाने में विलंब करवाया था। राममनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय में शाम को हुए एक कार्यक्रम में बोलते हुए मुलायम सिंह यादव ने कहा कि रक्षामंत्री के तौर पर मैं कश्मीर में पाकिस्तान से लगती सीमा पर गया और बोफार्स तोप की कार्यक्षमता का बारीकी से आकलन किया। तोप अच्छा काम कर रही थी। तब मैंने फैसला किया कि बोफार्स मामले की फाइल पर धीमी गति से काम किया जाए और आश्वस्त किया कि कोई राजनीति ज्ञ इस मसले में न फसें।
क्या था बोफोर्स घोटाला
24 मार्च 1986 में राजीव गांधी सरकार ने स्वीडन की एबी बोफोर्स से 400 हॉविट्जर तोपें खरीदने का करार किया था. इस खरीदी में कई आरोप लगे लेकिन सरकार ने सभी आरोपों को खारिज कर दिया. इसी बीच 16 अप्रैल 1987 में तोपों की खरीद में दलाली का खुलासा हुआ। यह खुलासा स्वीडन रेडियो ने किया था। जिसके मुताबिक, बोफोर्स कंपनी ने 1437 करोड़ रुपए का सौदा हासिल करने के लिए भारत के बड़े राजनेताओं और सेना के अफसरों को रिश्वत दी गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उनकी पत्नी सोनिया गांधी के करीबी दोस्त माने जाने वाले क्वात्रोच्चि पर इस सौदे में बिचौलिये की भूमिका निभाने का आरोप लगा था। इतालवी बिजनेसमैन पर आरोप था कि इस सौदे के बदले उसे दलाली की रकम का बड़ा हिस्सा मिला। इस खुलासे ने भारतीय राजनीति में खलबली मचा दी थी। 1989 के लोकसभा चुनाव में बोफोर्स मुख्य मुद्दा था। चुनाव में राजीव गांधी की सरकार सत्ता से बाहर हो गई थी। वीपी सिंह राष्ट्रीय मोर्चा (नेशनल फ्रंट) सरकार के प्रधानमंत्री बने।
क्या हुई जांच
नई सरकार बनने के बाद 22 जनवरी 1990 को जांच को सीबीआई को सौंप दिया गया . जांच के बाद सीबीआई ने 1999 में विन चड्डा, ओट्टावियो क्वात्रोची, पूर्व डिफेंस सेक्रेटरी एसके भटनागर, बोफोर्स कंपनी और उसके प्रमुख मार्टिन अर्बडो के खिलाफ चार्जशीट दाखिल किया। चार्जशीट में पूर्व पीएम राजीव गांधी को भी आरोपी बनाया गया था। 2000 में सीबीआई ने सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की, जिसमें हिंदुजा भाइयों श्रीचंद, गोपीचंद और प्रकाशचंद हिंदुजा को भी आरोपी बनाया गया। 2002 में घोटाले के दो मुख्य आरोपी विन चड्डा और एसके भटनागर की मौत हो गई। 2004 में दिल्ली हाईकोर्ट ने राजीव गांधी के खिलाफ तमाम आरोपों को खारिज कर दिया।
बोफोर्स मामला में कब क्या हुआ
24 मार्च 1986 में राजीव गांधी सरकार ने स्वीडन की एबी बोफोर्स से 400 हॉविट्जर तोपें खरीदने का करार किया था
16 अप्रैल 1987 में स्वीडिश रेडियो ने इस घोटाले का पर्दाफाश किया। घोटाले में मार्टिन आर्दबो, हिंदुजा ब्रदर्स और विन चड्ढा भी आरोपी हैं। रेडियों के मुताबिक बोफोर्स कंपनी ने 1437 करोड़ रुपए का सौदा हासिल करने के लिए भारत के बड़े राजनेताओं और सेना के अफसरों को रिश्वत दी गई।
22 अक्तूबर 1999 को सीबीआई ने क्वात्रोच्चि के खिलाफ स्पेशल कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की।
04 नवंबर 1999 को ट्रायल कोर्ट ने क्वात्रोच्चि के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया।
20 दिसंबर 2000 को मलयेशिया में क्वात्रोच्चि गिरफ्तार। मलयेशिया की अदालत ने क्वात्रोच्चि को भारत को प्रत्यर्पित करने से इंकार किया, बाद में वहां से रिहा कर दिया गया।
25 मई 2001 को स्पेशल जज ने क्वात्रोच्चि का मुकदमा बाकी आरोपियों से अलग किया।
25 मई 2003 को लंदन में क्वात्रोच्चि के दो खातों में 10 लाख यूएस डॉलर और 30 लाख यूरो मिले।
31 मार्च 2004 को मलयेशिया की अदालत ने क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण का अनुरोध ठुकराया।
25 अगस्त 2005 को सीबीआई ने अपनी वेबसाइट पर क्वात्रोच्चि की तस्वीर जारी की।
22 दिसंबर 2005 एडिशनल सॉलिसिटर जनरल क्वात्रोच्चि के खाते सील करने पर वार्ता के लिए लंदन में अफसरों से मिले।
11 जनवरी, 2006 को सीबीआई ने ब्रिटिश अधिकारियों से कहा उसके पास कोई प्रमाण नहीं है, जिसके आधार पर ओतावियो क्वात्रोच्चि के दो बैंक खातों में जमा तीस लाख यूरो और 10 लाख अमेरिकी डॉलर की रकम का संबंध बोफोर्स तोप सौदे की दलाली से साबित करे।
12 जनवरी 2006 को क्वात्रोच्चि के खातों को क्लीन चिट देने के सरकार के कदम के खिलाफ अधिवक्ता अजय अग्रवाल द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई।
13 जनवरी 2006 को केंद्र सरकार के कदम को चुनौती देने वाली अजय अग्रवाल की याचिका पर शीघ्र सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार। कोर्ट ने इस संबंध में सभी जरूरी प्रक्रियाओं को पूरा करने का निर्देश दिया।
15 जनवरी 2006 को क्वात्रोच्चि के दोनों खातों पर लगी रोक लंदन हाई कोर्ट ने हटाई। (भारत के सॉलिसिटर जनरल द्वारा ब्रिटेन के क्राउन प्रॉसीक्यूशन को क्वात्रोच्चि के खिलाफ सुबूत नहीं मिलने की जानकारी के बाद यह रोक हटाई।)
16 जनवरी 2006 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सीबीआई को नोटिस जारी कर क्वात्रोच्चि के खाते से लेन-देन नहीं होने के लिए जरूर कदम उठाने का निर्देश दिया।
सीबीआई मुझसे इटली में पूछताछ करे, गांधी परिवार के खिलाफ अभियान का शिकार हूं: क्वात्रोच्चि (फोन पर एक संवाद एजेंसी से कहा।)
20 जनवरी 2006 को सरकार द्वारा क्वात्रोच्चि को क्लीन चिट दिये जाने के मामले में एनडीए प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से मिला और एक ज्ञापन सौंपा।
23 जनवरी 2006 को क्वात्रोच्चि के खातों के तार स्विट्जरलैंड से जुड़े या नहीं इसकी जांच के लिए सीबीआई ने वहां जाने के लिए गृहमंत्रालय से अनुमति देने की गुजारिश की।
6 फरवरी 2007 को क्वात्रोच्चि को अर्जेंटीना के इगुआजो अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर गिरफ्तार किया गया।
23 फरवरी 2007 को क्वात्रोच्चि को अर्जेंटीना सरकार ने जमानत दी।
26 फरवरी 2007 को सीबीआई को जब तक गिरफ्तारी की खबर मिली, अर्जेंटीना सरकार उसे रिहा भी कर चुकी थी।
8 मार्च 2007 को सीबीआई ने क्वात्रोच्चि मामले में सुप्रीम कोर्ट में सफाई पेश करते हुए कहा कि उस पर लगाए गए आरोप निराधार है और उसने कोर्ट से कोई सूचना नहीं छुपाई थी।
सीबीआई ने कहा कि क्वात्रोच्चि की 23 फरवरी को हुई जमानत के बारे में उसे पहले से कोई जानकारी नहीं थी। ब्यूरो को इस बात की जानकारी 26 फरवरी को मिली थी।
23 मार्च 2007 को अर्जेंटीना के कोर्ट में क्वात्रोच्चि ने अपने भारत प्रत्यर्पण का पुरजोर विरोध किया।
13 अप्रैल 2007 को क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण के मामले में सीबीआई ने स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की। रिपोर्ट में सीबीआई ने क्वात्रोच्चि की सही पहचान का दावा किया।
8 जून 2007 को अदालत ने क्वात्रोच्चि की अर्जेंटीना में गिरफ्तारी से संबंधित मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा।
9 जून 2007 को अर्जेंटीना की एक अदालत ने क्वात्रोच्चि को भारत प्रत्यर्पित करने के आग्रह को अस्वीकार कर दिया। सीबीआई की क्वात्रोच्चि का भारत लाने की मुहिम को बड़ा झटका लगा।
12 जून 2007 को क्वात्रोच्चि मामले में सीबीआई को एक और झटका लगा जब अर्जेंटीना की अदालत ने अभियोजन पक्ष को ओतावियो क्वात्राकी को मुकदमे का खर्च अदा करने का आदेश दिया।
15 अगस्त 2007 को 6 फरवरी को अर्जेंटीना में गिरफ्तार क्वात्रोच्चि इटली रवाना, सीबीआई फिर प्रत्यर्पण कराने में विफल रही।
18 अगस्त 2007 को क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण के लिए किए गए सरकार और सीबीआई के प्रयासों से संबंधित सारे दस्तावेज पेश कराने हेतु वकील अजय अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दायर किया।
3 नवंबर 2007 को अधिवक्ता अजय अग्रवाल द्वारा दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम ने कोर्ट में कहा कि जब भी कोर्ट क्वात्राकी के बारे में आदेश देता है, हमें विदेशी अदालतों में मुंह की खानी पड़ती है। ऐसी स्थिति में बेहतर होगा कि कोर्ट कोई आदेश न दे क्योंकि उनका पालन करवाना असंभव है।
28 अप्रैल 2009 को क्वात्रोच्चि का नाम वांछित लोगों की सीबीआई की सूची से हटाया गया। इसके साथ ही सीबीआई के अनुरोध के बाद इंटरपोल ने क्वात्रोच्चि का नाम रेड कॉर्नर नोटिस से हटा दिया।
26 अगस्त 2010 को सीबीआई ने सीएमएम कोर्ट में अर्जी देकर कहा था कि क्वात्रोच्चि के खिलाफ कोई भी सबूत मौजूद नहीं हैं। लिहाजा उनके खिलाफ चल रहे मामले की सुनवाई बंद कर देनी चाहिए। अदालत ने अर्जी पर सुनवाई के लिए 28 अगस्त की तारीख तय की है। जबकि तीस हजारी अदालत स्थित मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कावेरी बावेजा की अदालत में अधिवक्ता अजय अग्रवाल ने एक बार फिर से अर्जी देकर कहा है कि मामला बंद नहीं करना चाहिए।
4 जनवरी 2011 को बोफोर्स दलाली मामले में इटली के व्यापार ी ओतावियो क्वात्रोच्चि के खिलाफ मामला बंद करने के लिए दबाव बनाते हुए सीबीआई ने दिल्ली की एक अदालत में कहा कि इनकम टैक्स अपीली ट्रिब्युनल के आदेश में कुछ भी नया नहीं है। तीस हजारी कोर्ट के मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट विनोद यादव की अदालत में सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीपी मल्होत्रा ने कहा कि मामले में केस बंद करने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है।