गोल हैं खूब मगर
आप तिरछे नजर आते हैं जरा।
आप पहने हुए हैं कुल आकाश
तारों-जड़ा;
सिर्फ मुँह खोले हुए हैं अपना
गोरा चिट्टा
गोल मटोल,
अपनी पोशाक को फैलाए हुए चारों सिम्त।
आप कुछ तिरछे नजर आते हैं जाने कैसे
खूब हैं गोकि!
वाह जी वाह!
हमको बुद्धू ही निरा समझा है!
हम समझते ही नहीं जैसे कि
आपको बीमारी है
आप घटते हैं तो घटते ही चले जाते हैं,
और बढ़ते हैं तो बस यानी कि
बढ़ते ही चले जाते हैं-
दम नहीं लेते हैं जब तक बिलकुल ही
गोल न हो जायें,
बिलकुल गोल।
यह मरज आपका अच्छा ही नहीं होने में
आता है।
यह न होता तो, कसम से, हम सच
कहते हैं-
आपसे शादी कर लेते-
फौरन!
आप हँसते हैं, मगर
यों भी दिल खींच तो लेते ही हैं आप
(हाँ, जी) समुंदर की तरह,
ओ' मैं बेचैन-सी हो जाती हूँ
उसकी लहरों की तरह;
ज्वार-भाटा-सा अजब, जाने क्यों
उठने लगता है खयालों में मेरे
खाहमखाह!
जाओ, हटो!
ऐसे इनसान को हम प्यार नहीं करते हैा
मुँह-दिखाई ही फकत
जो मेरा सरबस माँगे,
और फिर हाथ न आये;
मुफ्त कविताएँ सुने,
अपने दिल की न बताये;
जब भी आये,
यूँ ही उलझाये!
ऐसे इनसान को हम आखिर तक
प्यार नहीं करते हैं,
हाँ! समझ गये?