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मौन आहों में बुझी तलवार

16 जुलाई 2022

21 बार देखा गया 21

1

मौन आहों में बुझी तलवार

तैरती है बादलों के पार।

चूमकर ऊषाभ आशा अधर

गले लगते हैं किसी के प्राण।

गह न पाएगा तुम्हें मध्याह्न :

छोड़ दो न ज्योति का परिधान!

2

यह कसकता, यह उभरता द्वंद्व

तुम्हें पाने मधुरतम उर में,

तोड़ देने धैर्य-वलयित हृदय

उठा।


परम अंतर्मिलन के उपरांत

प्राप्त कर आनंद मन एकांत

खिला मृदु मधु शांत।


शमशेर बहादुर सिंह की अन्य किताबें

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रचनाएँ
शमसेर बहादुर सिंह की रचनाएँ
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जीवन-परिचय-शमशेर बहादुर सिंह हिंदी-साहित्य की नई कविता के प्रमुख कवि माने जाते हैं। इनका अज्ञेय के तार सप्तक में महत्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म13 जनवरी, सन 1911 ई० को उत्तराखंड के देहरादून जिले के एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून के एक स्कूल में हुई। शमशेर बहादुर सिंह में अपने बिम्बों, उपमानों और संगीतध्वनियों द्वारा चमत्कार और वैचित्र्यपूर्ण आधात् उत्पन्न करने की चेष्टा अवश्य उपलब्ध होती है, पर किसी केन्द्रगामी विचार-तत्व का उनमें प्रायः अभाव-सा है। अभिव्यक्ति की वक्रता द्वारा वर्ण-विग्रह और वर्ण-संधि के आधार पर नयी शब्द-योजना के प्रयोग से चामत्कारिक आघात देने की प्रवृत्ति इनमें किसी ठोस विचार तत्त्व की अपेक्षा अधिक महत्त्व रखती है
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अम्न का राग / भाग 1

15 जुलाई 2022
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सच्चाइयाँ जो गंगा के गोमुख से मोती की तरह बिखरती रहती हैं हिमालय की बर्फ़ीली चोटी पर चाँदी के उन्मुक्त नाचते परों में झिलमिलाती रहती हैं जो एक हज़ार रंगों के मोतियों का खिलखिलाता समन्दर है उमंगों

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अम्न का राग / भाग 2

15 जुलाई 2022
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देखो न हक़ीक़त हमारे समय की जिसमें होमर एक हिन्दी कवि सरदार जाफ़री को इशारे से अपने क़रीब बुला रहा है कि जिसमें फ़ैयाज़ खाँ बिटाफ़ेन के कान में कुछ कह रहा है मैंने समझा कि संगीत की कोई अमर लता हि

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अम्न का राग / भाग 3

15 जुलाई 2022
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हर घर में सुख शांति का युग हर छोटा-बड़ा हर नया पुराना आज-कल-परसों के आगे और पीछे का युग शांति की स्निग्ध कला में डूबा हुआ क्योंकि इसी कला का नाम भरी-पूरी गति है। मुझे अमरीका का लिबर्टी स्टैचू

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अम्न का राग / भाग 4

15 जुलाई 2022
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आज मैंने गोर्की को होरी के आँगन में देखा और ताज के साए में राजर्षि कुंग को पाया लिंकन के हाथ में हाथ दिए हुए और ताल्स्ताय मेरे देहाती यूपियन होंठों से बोल उठा और अरागों की आँखों में नया इतिहास मे

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अम्न का राग / भाग 5

15 जुलाई 2022
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आज न्यूयार्क के स्काईस्क्रेपरों पर शांति से 'डवों' और उसके राजहंसों ने एक मीठे उजले सुख का हल्का-सा अंधेरा और शोर पैदा कर दिया है। और अब वो अर्जेन्टीना की सिम्त अतलांतिक को पार कर रहे हैं पाल रा

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अम्न का राग / भाग 6

15 जुलाई 2022
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यह सुख का भविष्य शांति की आँखों में ही वर्तमान है इन आँखों से हम सब अपनी उम्मीदों की आँखें सेंक रहे हैं ये आँखें हमारे दिल में रौशन और हमारी पूजा का फूल हैं ये आँखें हमारे कानून का सही चमकता हुआ

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बात बोलेगी

15 जुलाई 2022
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बात बोलेगी, हम नहीं। भेद खोलेगी बात ही। सत्य का मुख झूठ की आँखें क्या-देखें! सत्य का रूख़ समय का रूख़ हैः अभय जनता को सत्य ही सुख है सत्य ही सुख। दैन्य दानव; काल भीषण; क्रूर स्थिति

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सूरज उगाया जाता

15 जुलाई 2022
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सूरज उगाया जाता फूलों में: यदि हम एक साथ हँस पड़ते। चाँद आँगन बनता: आँखों में रासभूमि यदि - सौर मंडल की मिलती। सार हम होते काव्‍य के अनुपम भूत-भविष्‍य के: यदि हम वर्तमान में एक

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चित्तप्रसाद की 'बहार

15 जुलाई 2022
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फिर बहार के आते न आते सितारों में महक थी दूरियों का हृदय झिलमिझ आईना था शब्‍दों में गुँधे हुए सेहरे बहारों की नयी रिमझिम दिखाते थे पुलक में गीत का-सा स्‍पर्श आँखें खोलता फिर मूँद लेता था फूल में ख

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एक आदमी दो पहाड़ों को कुहनियों से ठेलता

15 जुलाई 2022
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एक आदमी दो पहाड़ों को कोहनियों से ठेलता पूरब से पच्छिम को एक कदम से नापता बढ़ रहा है कितनी ऊंची घासें चांद-तारों को छूने-छूने को हैं जिनसे घुटनों को निकालता वह बढ़ रहा है अपनी शाम को सुबह से मि

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वाम वाम वाम दिशा

15 जुलाई 2022
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वाम वाम वाम दिशा, समय साम्यवादी। पृष्ठभूमि का विरोध अन्धकार-लीन। व्यक्ति .. कुहास्पष्ट ह्रदय - भार, आज हीन। हीनभाव, हीनभाव मध्यवर्ग का समाज, दीन। किन्तु उधर पथ-प्रदर्शिका मशाल कमकर की मुट्ठी म

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हमारे दिल सुलगते हैं

15 जुलाई 2022
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लगी हो आग जंगल में कहीं जैसे, हमारे दिल सुलगते हैं। हमारी शाम की बातें लिये होती हैं अक्‍सर जलजले महशर के; और जब भूख लगती है हमें तब इन्कलाब आता है। हम नंगे बदन रहते हैं झुलसे घोंसलों में, ब

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ऐसा ही प्रण

15 जुलाई 2022
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सॉनेट और त्रिलोचन : काठी दोनों की है एक । कठिन प्रकार में बंधी सत्य सरलता । साधे गहरी सांस सहज ही...ऎसा लगता जैसे पर्वत तोड़ रहा हो कोई निर्भय सागर-तल में खड़ा अकेला; वज्र हृदयमय । नै

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वसन्त पंचमी की शाम

15 जुलाई 2022
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डूब जाती है, कहीं जीवन में, वह सरल शक्ति. (म्‍यान सूनी है आज) ...क्‍यों मृत्‍यु बन आयी आसक्ति, आज? शुष्‍क हैं पल। अग्नि है घन। सुनो वह 'पीयूऽ! - पीयूऽ!' चिंता-सा बन कर रहा क्रन्‍दन।

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माई

15 जुलाई 2022
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तरु गिरा जो झुक गया था, गहन छायाएँ लिये। अब हो उठा है मौन का उर और भी मौन. दुख उठा है करुण सागर का हृदय, साँझ कोमल और भी अपनाव का... आँचल डलती है दिवस के मुख पर। 2 बोलती थी जो उदासी

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कुछ मुक्तक

15 जुलाई 2022
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भाव थे जो शक्ति-साधन के लिए, लुट गये किस आंदोलन के लिए? यह सलामी दोस्‍तों को है, मगर मुट्ठियाँ तनती हैं दुश्‍मन के लिए! धूल में हमको मिला दो, किंतु, आह, चालते हैं धूल कन-कन के लिए। तन ढँका जाएगा

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तड़पती हुई-सी ग़ज़ल कोई लाए

15 जुलाई 2022
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वही उम्र का एक पल कोई लाए तड़पती हुई-सी गजल कोई लाए हकीकत को लाए तखैयुल से बाहर मेरी मुश्किलों का जो हल कोई लाए कहीं सर्द खूँ में तड़पती है बिजली जमाने का रद्दो-बदल कोई लाए उसी कम-निगाही क

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कुछ शेर

15 जुलाई 2022
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जी को लगती है तेरी बात खरी है शायद वही शमशेर मुज़फ़्फ़रनगरी है शायद आज फिर काम से लौटा हूँ बड़ी रात गए ताक़ पर ही मेरे हिस्से की धरी है शायद मेरी बातें भी तुझे ख़ाबे-जवानी-सी हैं तेरी आ

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चाँद से थोड़ी-सी गप्पें

15 जुलाई 2022
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गोल हैं खूब मगर आप तिरछे नजर आते हैं जरा। आप पहने हुए हैं कुल आकाश तारों-जड़ा; सिर्फ मुँह खोले हुए हैं अपना गोरा चिट्टा गोल मटोल, अपनी पोशाक को फैलाए हुए चारों सिम्‍त। आप कुछ तिरछे नजर आते हैं

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होली : रंग और दिशाएँ

15 जुलाई 2022
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जँगले जालियाँ, स्‍तंभ धूप के, संगमर्मर के, ठोस तम के। कँटीले तार हैं गुलाब बाड़ियाँ। दूर से आती हुई एक चौपड़ की सड़क अंतस् में खोयी जा रही। धूप केसर आरसी ...बाँहें। आँखें अनझिप खुलीं वक्

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धूप कोठरी के आईने में खड़ी

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धूप कोठरी के आईने में खड़ी हँस रही है पारदर्शी धूप के पर्दे मुस्कराते मौन आँगन में मोम सा पीला बहुत कोमल नभ एक मधुमक्खी हिलाकर फूल को बहुत नन्हा फूल उड़ गई आज बचपन का उदास मा का मुख

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घिर गया है समय का रथ

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मौन संध्या का दिए टीक रात काली आ गई सामने ऊपर, उठाए हाथ-सा पथ बढ गया । घेरने को दुर्ग की दीवार मानों- अचल विंध्या पर कुंडली खोली सिहरती चांदनी ने पंचमी की रात । घूमता उत्तर दिशा को सघन पथ स

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लौट आ ओ धार

15 जुलाई 2022
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लौट आ ओ धार टूट मत ओ साँझ के पत्‍थर हृदय पर (मैं समय की एक लंबी आह मौन लंबी आह) लौट आ, ओ फूल की पंखड़ी फिर फूल में लग जा चूमता है धूल का फूल कोई, हाय।

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पैमान वफ़ा का बाँधा

15 जुलाई 2022
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फिर निगाहों ने तेरी दिल में कहीं चुटकी ली फिर मेरे दर्द ने पैमाना वफा का बाँधा और तो कुछ न किया इश्‍क में पड़कर दिल ने एक इनसान से इनसान वफा का बाँधा एक फाहा भी मेरे जख्म पे रक्‍खा न गया और स

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निराला के प्रति

15 जुलाई 2022
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भूलकर जब राह- जब-जब राह...भटका मैं तुम्हीं झलके, हे महाकवि, सघन तम की आंख बन मेरे लिए, अकल क्रोधित प्रकृति का विश्वास बन मेरे लिये जगत के उन्माद का परिचय लिए, और आगत-प्राण का संचय लिए, झलके प्रम

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राग

15 जुलाई 2022
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1 मैंने शाम से पूछा               या शाम ने मुझसे पूछा :                   इन बातों का मतलब? मैंने कहा  शाम ने मुझसे कहा :               राग अपना है।  2 आँखें मुँद गयीं। सरलता का आकाश था जैस

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एक नीला आईना बेठोस

15 जुलाई 2022
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एक नीला आईना बेठोस-सी यह चाँदनी और अंदर चल रहा हूँ मैं उसी के महातल के मौन में । मौन में इतिहास का कन किरन जीवित, एक, बस । एक पल की ओट में है कुल जहान । आत्मा है अखिल की हठ-सी । चाँदनी में घु

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पूर्णिमा का चाँद

15 जुलाई 2022
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चाँद निकला बादलों से पूर्णिमा का।         गल रहा है आसमान। एक दरिया उबलकर पीले गुलाबों का         चूमता है बादलों के झिलमिलाते         स्वप्न जैसे पाँव।

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उषा

15 जुलाई 2022
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प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है) बहुत काली सिल जरा-से लाल केशर से कि धुल गयी हो स्लेट पर या लाल खड़िया चाक         मल दी हो किसी ने नी

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लेकर सीधा नारा

15 जुलाई 2022
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लेकर सीधा नारा कौन पुकारा अंतिम आशाओं की संध्याओं से ? पलकें डूबी ही-सी थीं  पर अभी नहीं; कोई सुनता-सा था मुझे कहीं; फिर किसने यह, सातों सागर के पार एकाकीपन से ही, मानो-हार, एकाकी उठ मुझे पुक

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एक पीली शाम

15 जुलाई 2022
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एक पीली शाम       पतझर का जरा अटका हुआ पत्ता शान्त मेरी भावनाओं में तुम्‍हारा मुखकमल कृश म्‍लान हारा-सा      (कि मैं हूँ वह मौन दर्पण में तुम्‍हारे कहीं?)      वासना डूबी      शिथिल पल में

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अंतिम विनिमय

15 जुलाई 2022
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हृदय का परिवार काँपा अकस्मात । भावनाओं में हुआ भूडोल-सा । पूछता है मौन का एकांत हाथ वक्ष छू, यह प्रश्न कैसा गोल-सा: प्रात-रव है दूर जो "हरि बोल!"-सा, पार, सपना है--कि धारा है--कि रात ? कुहा में

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शाम होने को हुई

15 जुलाई 2022
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शाम होने को हुई, लौटे किसान दूर पेड़ों में बढ़ा खग-रव। धूल में लिपटा हुआ है आसमान : शाम होने को हुई, नीरव।   तू न चेता। काम से थक कर फटे-मैले वस्‍त्र में कमकर लौट आये खोलियों में मौन। चेतने वा

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मौन आहों में बुझी तलवार

15 जुलाई 2022
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1 मौन आहों में बुझी तलवार तैरती है बादलों के पार। चूमकर ऊषाभ आशा अधर गले लगते हैं किसी के प्राण।  गह न पाएगा तुम्हें मध्याह्न : छोड़ दो न ज्योति का परिधान! 2 यह कसकता, यह उभरता द्वंद्व तुम्हे

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छिप गया वह मुख

15 जुलाई 2022
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 छिप गया वह मुख     ढँक लिया जल आँचलों ने बादलों के (आज काजल रात-भर बरसा करेगा क्‍या?)     नम गयी पृथ्‍वी बिछा कर फूल के सुख सीप सी रंगीन लहरों के हृदय में, डोल            चमकीले पलों में,    

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दूब

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मोटी, धुली लॉन की दूब, साफ़ मखमल की कालीन ठंडी धुली सुनहरी धूप हलकी मीठी चा-सा दिन, मीठी चुस्की-सी बातें, मुलायम बाहों-सा अपनाव पलकों पर हौले-हौले तुम्हारे फूल से पाँव मानो भूलकर पड़ते हृ

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सागर-तट

15 जुलाई 2022
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यह समन्दर की पछाड़           तोड़ती है हाड़ तट का            अति कठोर पहाड़।  पी गया हूँ दृश्‍य वर्षा का : हर्ष बादल का हृदय में भर कर हुआ हूँ हवा-सा हलका। धुन रही थीं सर व्‍यर्थ व्‍याकुल मत्त

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कठिन प्रस्तर में

15 जुलाई 2022
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कठिन प्रस्‍तर में अगिन सूराख। मौन पर्तों में हिला मैं कीट। (ढीठ कितनी रीढ़ है तन की                    तनी है!)   आत्‍मा है भाव भाव-दीठ       झुक रही है अगम अंतर में       अनगिनत सूराख-सी करत

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यादें

15 जुलाई 2022
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(एक गीत) कैन बिहान   बीते जन्म के      आज की संध्या में गतिमान? झिलमिल दीप-से जल आज की   सुंदरताओं में लयमान? अलस तापस मौन भर स्वर में    करते क्षीण निर्झर का-सा आह्वान.

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योग

15 जुलाई 2022
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सूर्य मेरी पुतलियों में स्नान करता केश-वन में झिलमला कर डूब जाता स्वप्न-सा निस्तेज गतचेतन कुमार कमल तल में खिले सर के, शीर्षासन से। जागरण की चेतना से मैं नहा उट्ठा। हवा है मेरी असंख्य दृष्ट

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सारनाथ की एक शाम

15 जुलाई 2022
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ये आकाश के सरगम हैं खनिज रंग हैं बहुमूल्य अतीत हैं या शायद भविष्य। तू किस गहरे सागर के नीचे के गहरे सागर के नीचे का गहरा सागर होकर भिंच गया है अथाह शिला से केवल अनिंद्य अवर्ण्य मछलियों के व

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सूर्यास्त

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मेरी अस्थियों के मौन में डूबा      गुट्ठल जड़ें प्रस्तरों के सघन पंजर में              मुड़ गईं। व्योम में फैले हुए महराब के विस्तार स्तूप औ’ मीनार नभ को थामने के लिए             उठते गए। विक

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गजानन मुक्तिबोध

15 जुलाई 2022
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ज़माने भर का कोई इस क़दर अपना न हो जाए कि अपनी ज़िंदगी ख़ुद आपको बेगाना हो जाए। सहर होगी ये शब बीतेगी और ऐसी सहर होगी कि बेहोशी हमारे होश का पैमाना हो जाए। किरन फूटी है ज़ख़्मों के लहू से : यह

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हवा में सन् सन्

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हवा में सन् सन्       ज्योति के जो हरे तीखे बान                   चल रहे हैं सुलगते आकाश वन में: लाल गौहर और ज़मुर्रद के निशान उड़ रहे हैं। आख़िर क्यों मुस्कुराते हैं शराबी अधर?  वातावरण हेम क

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वह शख़्स(1)

15 जुलाई 2022
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आग बुझ गई वह काला पत्थर रह गया धुआँ बन गया- वह चित्र अपना जो न था। डूब भी गया वह बोझ, भारी मन के अतल तम में। वह छल रँग न सका - सत्य को दु:ख दे गया दु:खमय भाव का विषाद, मौन, बन गया। क्यों न व

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वह शख़्स(2)

15 जुलाई 2022
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मौन वह उर में -एक घुटी हाय-सा कसा। अन्त तक जो फिर, क्रूर विषम घास -सा बसा। केवल तम वह,एक मौन धूम एक छल-क्रम वह। व्यर्थ पांथ-अनादर भाव, जो छिप-छिप कर हँसा अन्दर-अन्दर।

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वह शख़्स(3)

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आह तुम क्यों न धँसे तम-पाषाण मेरे मानस-तल में कसमस? बरस चुके वे बाण अग्नि के पावक-पल के बाण, जो गिर कर नीरव आँचल में क्षिति के व्यर्थ बुझे! मेरा हृदय जला न, यद्यपि तपा बहुत वह अनल छाँह में

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कथा मूल

15 जुलाई 2022
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एक गाय-सानी।संध्या। मुन्नी-मासी! दूध!दूध! चूल्हा,आग,भूख। मा। प्रेम। रोटी। मृत्यु। दो औरत। अँधेरा। जोड़ों का दर्द। बच्चे। पाप। पुनर्जन्म। आत्मोन्नति। पुलिस। आज़ादी। स्वाहा। तीन गुरुजन। हिमश

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काल तुझ से होड़ है मेरी

15 जुलाई 2022
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काल, तुझसे होड़ है मेरी: अपराजित तू तुझमें अपराजित मैं वास करूं । इसीलिए तेरे हृदय में समा रहा हूं सीधा तीर-सा, जो रुका हुआ लगता हो कि जैसा ध्रुव नक्षत्र भी न लगे, एक एकनिष्ठ, स्थिर, कालोपरि भा

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परम्परा

15 जुलाई 2022
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लोक - भावना ने जिनको आगे रक्खा चुन  'रेणु' फणीश्वरनाथ, साथ यात्री' नागार्जुन कथाकार कवि दो बिहार के जाग्रत सपने सत्साहित्यिक, भारत की जनता के अपने यह बात दिला दी याद फिर दोनों के कारागार ने

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नाविक ’विद्रोहियों’ पर बमबारी

16 जुलाई 2022
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लगी हो आग जंगल में कहीं जैसे, हमारे दिल सुलगते हैं । हमारी शाम की बातें लिए होती हैं अक्सर ज़लज़ले महशर के; और जब भूख लगती है हमें तब इंक़लाब आता है । हम नंगे बदन रहते हैं, झुलसे घोंसलों से

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चीन

16 जुलाई 2022
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मैंने क्षितिज के बीचोबीच खिला हुआ देखा कितना बड़ा फूल! देखकर गम्भीर शपथ की एक तलवार सीधी अपने सीने पर रखी और प्रण लिया कि  वह आकाश की माँग का फूल जब तक मैं चूम न लूँगा चैन से न बैठूँगा।

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य' शाम है

16 जुलाई 2022
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य' शाम है कि आसमान खेत है पके हुए अनाज का। लपक उठीं लहू-भरी दरातियाँ,             कि आग है  धुआँ धुआँ सुलग रहा गवालियार के मजूर का हृदय।  कराहती धरा कि हाय मय विषाक्‍त वायु         धूम्र ति

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मन

16 जुलाई 2022
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मोह मीन गगन लोक में बिछल रही लोप हो कभी अलोप हो कभी छल रही। मन विमुग्ध नीलिमामयी परिक्रमा लिये, पृथ्वी-सा घूमता घूमता  (दिव्यधूम तप्त वह) जाने किन किरणों को चूमता, झूमता- जाने किन. मुग्ध ल

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पाब्लो नेरूदा

16 जुलाई 2022
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एक मैं निछावर हूँ तुम पर, नेरूदा ! उस पर भी यह महज चार दाने चावल के हैं तुम्हारी प्रतिभा की उत्तुंग शुभ्र पर्वत वेदी पर ! मैं अपनी छोटी सी नौका छोड़ देता हूँ तुम्हारे सात समुन्दरों के ऊपर !

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टूटी हुई, बिखरी हुई

16 जुलाई 2022
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टूटी हुई बिखरी हुई चाय             की दली हुई पाँव के नीचे                     पत्तियाँ                        मेरी कविता बाल, झड़े हुए, मैल से रूखे, गिरे हुए,                 गर्दन से फिर भी च

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दिल, मेरी कायनात अकेली है—और मैं

16 जुलाई 2022
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दिल, मेरी कायनात अकेली है—और मैं ! बस अब ख़ुदा की जात अकेली है, और मैं ! तुम झूठ और सपने का रंगीन फ़र्क थे  तुम क्या, ये एक बात है, और मैं ! सब पार उतर गए हैं, अकेला किनारा है  लहरें अकेली रा

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न पलटना उधर

16 जुलाई 2022
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न पलटना उधर कि जिधर ऊषा के जल में सूर्य का स्तम्भ हिल रहा है न उधर नहाना प्रिये । जहां इन्द्र और विष्णु एक हो -अभूतपूर्व! यूनानी अपोलो के स्वरपंखी कोमल बरबत से रती का हिया कंपा रहे हैं और भी अ

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राह तो एक थी

16 जुलाई 2022
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राह तो एक थी हम दोनों की आप किधर से आए गए हम जो लुट गए पिट गए, आप तो राजभवन में पाए गए किस लीला युग में आ पहुँचे अपनी सदी के अंत में हम नेता, जैसे घास फूस के रावण खड़े कराए गए जितना ही लाउडस्प

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तुमने मुझे

16 जुलाई 2022
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तुमने मुझे और गूँगा बना दिया एक ही सुनहरी आभा-सी सब चीज़ों पर छा गई मै और भी अकेला हो गया तुम्हारे साथ गहरे उतरने के बाद मैं एक ग़ार से निकला अकेला, खोया हुआ और गूँगा अपनी भाषा तो भूल ही गय

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क्यों बाकी है

16 जुलाई 2022
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उलट गए सारे पैमाने कासागरी क्यों बाकी है। देस के देस उजाड़ हुए दिल की नगरी क्यों बाकी है। कौन है अपना कौन पराया छोड़ो भी इन बातों को इक हम तुम हैं खैर से अपनी पर्दादरी क्यों बाकी है। शायद भूले

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वह सलोना जिस्म

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शाम का बहता हुआ दरिया कहाँ ठहरा! साँवली पलकें नशीली नींद में जैसे झुकें चाँदनी से भरी भारी बदलियाँ हैं, ख़ाब में गीत पेंग लेते हैं प्रेम की गुइयाँ झुलाती हैं उन्हें उस तरह का गीत, वैसी नींद, वैसी

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मकई-से वे लाल गेहुँए तलवे

16 जुलाई 2022
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मकई-से वे लाल गेहुँए तलवे मालिश से चिकने हैं।. सूखी भूरी झाड़ियों में व्यस्त चलती-फिरती पिंडलियाँ। (मोटी डालें, जांघों से न अड़ें!) सूरज को आईना जैसे नदियाँ हैं  इन मर्दाना रानों की चमक 'उन

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एक मुद्रा से

16 जुलाई 2022
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- सुंदर ! उठाओ निज वक्ष और-कस-उभर! क्यावरी भरी गेंदा की स्व र्णारक्तु क्यागरी भरी गेंदा की: तन पर खिली सारी - अति सुंदर! उठाओ...। स्वप्न--जड़ित-मुद्रामयि शिथिल करुण! हरो मोह-ताप, समुद

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सावन

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मैली, हाथ की धुली खादी सा है आसमान। जो बादल का पर्दा है वह मटियाला धुँधला-धुँधला एक-सार फैला है लगभग कहीं-कहीं तो जैसे हलका नील दिया हो। उसकी हलकी-हलकी नीली झाँइयाँ मिटती बनती बहती चलती हैं। उस

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गीत

16 जुलाई 2022
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सावन की उनहार आंगन पार। मधु बरसे, हुन बरसे, बरसे स्वांति धार आंगन पार। सावन की उनहार

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फिर भी क्यों

16 जुलाई 2022
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फिर भी क्यों मुझको तुम अपने बादल में घेरे लेती हो? मैं निगाह बन गया स्वयं जिसमें तुम आंज गईं अपना सुर्मई सांवलापन हो। तुम छोटा-सा हो ताल, घिरा फैलाव, लहर हल्की-सी, जिसके सीने पर ठहर शाम कुछ अपन

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फिर भी क्यों

16 जुलाई 2022
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फिर भी क्यों मुझको तुम अपने बादल में घेरे लेती हो? मैं निगाह बन गया स्वयं जिसमें तुम आंज गईं अपना सुर्मई सांवलापन हो। तुम छोटा-सा हो ताल, घिरा फैलाव, लहर हल्की-सी, जिसके सीने पर ठहर शाम कुछ अपन

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रुबाई

16 जुलाई 2022
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1. हम अपने खयाल को सनम समझे थे, अपने को खयाल से भी कम समझे थे! होना था- समझना न था कुछ भी, शमशेर, होना भी कहाँ था वह जो हम समझे थे! 2. था बहती सदफ में बंद यकता गौहर ऐसे आलम में किसको तकता गौह

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मन

16 जुलाई 2022
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मोह मीन गगन लोक में बिछल रही लोप हो कभी अलोप हो कभी छल रही। मन विमुग्ध नीलिमामयी परिक्रमा लिये, पृथ्वी-सा घूमता घूमता  (दिव्यधूम तप्त वह) जाने किन किरणों को चूमता, झूमता जाने किन मुग्ध लोल

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महुवा

16 जुलाई 2022
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यह अजब पेड़ है जिसमें कि जनाब इस कदर जल्द कली फूटती है कि अभी कल देखो मार पतझड़ ही पतझड़ था इसके नीचे और अब सुर्ख दिये,सुर्ख दियों का झुरमुट नन्हें-नन्हें,कोमल नीचे से ऊपर तक झिलमिलाहट का तनोब

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बादलो

16 जुलाई 2022
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ये हमारी तुम्‍हारी कहाँ की मुलाक़ात है, बादलो ! कि तुम दिल के क़रीब लाके,बिल्‍कुल ही दिल से मिला के ही जैसे अपने फ़ाहा-से गाल सेंकते जाते हो...। आज कोई ज़ख़्म‍ इतना नाज़ुक नहीं जितना यह वक़्त

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आकाशे दामामा बाजे

16 जुलाई 2022
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गर्दन झुकाए एकटक कुछ देखते,सोचते, निश्चय         ओ विद्रोही --क्या देखते, जाने क्या सोचते स्वतः अनजाने ही तीन देशों के एक साथ नागरिक तीन देशों की विप्लवी      एकता में      कहीं      चित्त ब

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धूप

16 जुलाई 2022
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धूप थपेड़े मारती है थप्-थप्         केले के हातों से पातों से केले के थंबों पर खसर-खसर एक चिकनाहट        हवा में मक्‍खन-सा घोलती है   नींद-भरी आलस की भोर का कुंज गदराया है यौवन के सपनों से

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सूर्योदय

16 जुलाई 2022
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प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है) बहुत काली सिल जरा-से लाल केशर से कि धुल गयी हो स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने नील जल में य

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मूंद लो आँखें

16 जुलाई 2022
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मूंद लो आँखें शाम के मानिंद। ज़िंदगी की चार तरफ़ें मिट गई हैं। बंद कर दो साज़ के पर्दे। चांद क्यों निकला, उभरकर...? घरों में चूल्हे पड़े हैं ठंडे। क्यों उठा यह शोर? किसलिए यह शोर? छोड़ दो

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एक आदमी दो पहाड़ों को कुहनियों से ठेलता

16 जुलाई 2022
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एक आदमी दो पहाड़ों को कोहनियों से ठेलता पूरब से पच्छिम को एक कदम से नापता बढ़ रहा है कितनी ऊंची घासें चांद-तारों को छूने-छूने को हैं जिनसे घुटनों को निकालता वह बढ़ रहा है अपनी शाम को सुबह से मि

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गीली मुलायम लटें

16 जुलाई 2022
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गीली मुलायम लटें आकाश साँवलापन रात का गहरा सलोना स्तनों के बिंबित उभार लिए हवा में बादल सरकते चले जाते हैं मिटाते हुए जाने कौन से कवि को... नया गहरापन तुम्हारा हृदय में डूबा चला जाता न जान

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घनीभूत पीड़ा

16 जुलाई 2022
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  जवाँद‍राजियाँ खुदी की रह गयीं :                       तेरी निगाहें कहना था सो कह गयीं।               कोई                 आँख मुँदी है न खुली!             एक ही चट्टान... लहर पार लहर, पार...    

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सौंदर्य

16 जुलाई 2022
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एक सोने की घाटी जैसे उड़ चली जब तूने अपने हाथ उठाकर मुझे देखा एक कमल सहस्रदली होटों से दिशाओं को छूने लगा जब तूने आँख-भर मुझे देखा। न जाने किसने मुझे अतुलित छवि के भयानक अतल से निकाला...जब त

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एक मौन

16 जुलाई 2022
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सोने के सागर में अहरह एक नाव है (नाव वह मेरी है) सूरज का गोल पाल संध्या के सागर में अहरह दोहरा है... ठहरा है. (पाल वो तुम्हारा है) एक दिशा नीचे है एक दिशा ऊपर है यात्री ओ! एक दिशा आगे है ए

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भारत की आरती

16 जुलाई 2022
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भारत की आरती देश-देश की स्वतंत्रता देवी आज अमित प्रेम से उतारती । निकटपूर्व, पूर्व, पूर्व-दक्षिण में जन-गण-मन इस अपूर्व शुभ क्षण में गाते हों घर में हों या रण में भारत की लोकतंत्र भारती। गर

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फिर एक हिलोर उठी

16 जुलाई 2022
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फिर वह एक हिलोर उठी गाओ वह मज़दूर किसानों के स्वर कठिन हठी ! कवि हे, उनमें अपना हृदय मिलाओ ! उनके मिट्टी के तन में है अधिक आग, है अधिक ताप अपने विरह मिलन के पाप जलाओ ! काट बूर्जुआ भावों की गु

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जो तुम भूल जाओ तो हम भूल जाएँ

16 जुलाई 2022
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यहाँ कुछ रहा हो तो हम मुँह दिखाएँ उन्‍होंने बुलाया है क्‍या ले के जाएँ कुछ आपस में जैसे बदल-सी गयी हों हमारी दुआएँ तुम्‍हारी बलाएँ तुम एक खाब थे जिसमें खुद खो गये हम तुम्‍हें याद आएँ तो क्‍या

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सजल स्नेह का भूषण केवल

16 जुलाई 2022
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सजल स्नेह का भूषण केवल सरल प्रेम की सुंदरता; छिपी मर्म-सी कोमल उर में सहज, मिलन की आतुरता । ओठों पर विषाद की दृढ़ता, पलकों में आगत के प्रश्न; साँसों में स्वर बढ़ता करुणा का; अलकों में भावी स्

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साथ, सम, शांत

16 जुलाई 2022
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साथ,  सम,   शांत; स्वप्न - सी   सुंदर; सिर्फ़   दो  ममियाँ। कहाँ     जगतीतल? कहाँ  नभ   अमल? कल? आज?  कल? नायकता की दो भवें मिली; दो पलकें पीलीं; स्थिर, सोईं। वीतराग जीवन में गहरी भूलों की

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धूप कोठरी के आईने में

16 जुलाई 2022
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धूप कोठरी के आईने में खड़ी हँस रही है पारदर्शी धूप के पर्दे मुस्कराते मौन आँगन में मोम सा पीला बहुत कोमल नभ एक मधुमक्खी हिलाकर फूल को बहुत नन्हा फूल उड़ गई आज बचपन का उदास माँ का मुख याद आ

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पूरा आसमान का आसमान

16 जुलाई 2022
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पूरा आसमान का आसमान       एक इन्द्रधनुषी ताल नीला साँवला हलका-गुलाबी       बादलों का धुला             पीला धुआँ मेरा कक्ष, दीवारें, किताबें, मैं, सभी इस रंग में डूबे हुए-से मौन।   और फिर मानो

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सींग और नाख़ून

16 जुलाई 2022
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सींग और नाखून लोहे के बख़्तर कंधों पर। सीने में सूराख़ हड्डी का। आँखों में घास-काई की नमी। एक मुर्दा हाथ पाँव पर टिका उल्टी क़लम थामे। तीन तसलों में कमर का घाव सड़ चुका है। जड़ों का भी

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अज्ञेय से

16 जुलाई 2022
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जो नहीं है जैसे कि सुरुचि उसका ग़म क्या? वह नहीं है । किससे लड़ना ? रुचि तो है शांति, स्थिरता, काल-क्षण में एक सौन्दर्य की मौन अमरता । अस्थिर क्यों होना फिर ? जो है उसे ही क्यों न स

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सुन के ऐसी ही सी एक बात

16 जुलाई 2022
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क्‍या यही होगा जवाब एक कलाकार के पास रक्‍खा जाएगा कलम जूती ओ पैजार के पास क्‍या यही जोड़े हैं संस्‍कार के संस्‍कार के पास यही संकेत है साहित्‍य के व्‍यापार के पास         सुनके ऐसी ही-सी इक बात...

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घनीभूत पीड़ा

16 जुलाई 2022
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जवाँद‍राजियाँ खुदी की रह गयीं :                       तेरी निगाहें कहना था सो कह गयीं।       कोई                 आँख मुँदी है न खुली!             एक ही चट्टान... लहर पार लहर, पार.             सूर

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चुका भी हूँ मैं नहीं

16 जुलाई 2022
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चुका भी हूँ मैं नहीं कहाँ किया मैनें प्रेम अभी । जब करूँगा प्रेम पिघल उठेंगे युगों के भूधर उफन उठेंगे सात सागर । किंतु मैं हूँ मौन आज कहाँ सजे मैनें साज अभी । सरल से भी गूढ़, गूढ़तर

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मैं भारत गुण-गौरव गाता

16 जुलाई 2022
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मैं भारत गुण-गौरव गाता ! श्रद्धा से उसके कण-कण को उन्नत माथा नवाता । प्रथम स्वप्न-सा आदि पुरातन, नव आशाओं से नवीनतम, प्राणाहुतियों से युग-युग की चिर अजेय बलदाता ! आर्य शौर्य धृति, बौद्ध शांति द

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मेरे मन के राग नए-नए

16 जुलाई 2022
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मेरे मन के राग नए-नए, तुझे गीत में जो बुला गए, वो न जाने किस के गले लगे, वो न जाने किस को सुहा गए ! हमें आज यह भी ख़बर नहीं कि वही फलक हैं, वही ज़मीं वही चाँदनी है कि यह हमीं कोई ख़ाब है कि द

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आओ!

16 जुलाई 2022
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1 क्‍यों यह धुकधुकी, डर,       दर्द की गर्दिश यकायक साँस तूफान में गोया। छिपी हुई हाय-हाय में सुकून      की तलाश।                  बर्फ के गालों में है खोया हुआ                        या ठंडे

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ज़िन्दगी का प्यार

16 जुलाई 2022
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स्‍नेह-लताओं पर चिथड़े हैं लटके विगत प्रेमियों के!                                   ... अजब सरूर              मृत्‍यु की बाँहों में; अजब गरूर              जीवन की झुकती आँखों में।             

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वो चेहरा

16 जुलाई 2022
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बार-बार क्यों वह एक सुनहरी मोहर-सा बनकर वो चेहरा, एक सजीव ठप्पा-सा मेरे सीने पर, उभर-उभर उठता है— बार-बार एक सजीव ठप्पा-सा वो चेहरा ? वही चेहरा ? वो छवि मैंने तुम्हारे अन्दर देखी, जिसे मैं ढूँढ

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वो चेहरा

16 जुलाई 2022
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बार-बार क्यों वह एक सुनहरी मोहर-सा बनकर वो चेहरा, एक सजीव ठप्पा-सा मेरे सीने पर, उभर-उभर उठता है— बार-बार एक सजीव ठप्पा-सा वो चेहरा ? वही चेहरा ? वो छवि मैंने तुम्हारे अन्दर देखी, जिसे मैं ढूँढ

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भुवनेश्वर

16 जुलाई 2022
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1 न जाने कहाँ किस लोक में आज, जाने किस सदाव्रत का हिसाब बैठे तुम लिख रहे होगे (अपनी भवों में?) - जहाँ पता नहीं प्राप्तप भी होगा तुम्हेंं कोरी चाय या एक हरी पुड़िया का बल भी? ...हिसाब; मसलन्: ताड़

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उषा

16 जुलाई 2022
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प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है) बहुत काली सिल जरा-से लाल केशर से कि धुल गयी हो स्लेट पर या लाल खड़िया चाक         मल दी हो किसी ने नी

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मौन आहों में बुझी तलवार

16 जुलाई 2022
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1 मौन आहों में बुझी तलवार तैरती है बादलों के पार। चूमकर ऊषाभ आशा अधर गले लगते हैं किसी के प्राण। गह न पाएगा तुम्हें मध्याह्न : छोड़ दो न ज्योति का परिधान! 2 यह कसकता, यह उभरता द्वंद्व तुम्हें

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मैं आप से कहने को ही था,

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मैं आपसे कहने को ही था, फिर आया खयाल एकायक कुछ बातें समझना दिल की, होती हैं मोहाल एकायक साहिल पे वो लहरों का शोर, लहरों में वो कुछ दूर की गूँज कल आपके पहलू में जो था, होता है निढाल एकायक जब बा

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दिन किशमिशी-रेशमी, गोरा

16 जुलाई 2022
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दिन किशमिशी रेशमी गोरा        मुसकराता आब मोतियों की छिपाए अपनी        पाँखड़ियों तले   सुर्मयी गहराइयाँ       भाव में स्थिर जागते हों स्‍वप्‍न जैसे माँगते हों कुछ...       खिलौना जागता-सा

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लौट आ, ओ धार!

16 जुलाई 2022
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लौट आ, ओ धार! टूट मत ओ साँझ के पत्थर हृदय पर। (मैं समय की एक लंबी आह! मौन लंबी आह!) लौट आ, ओ फूल की पंखडी! फिर फूल में लग जा। चूमता है धूल का फूल कोई, हाय!!

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गीत है यह गिला नहीं

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'आये भी वो गये भी वो' 'गीत है यह, गिला नहीं।' हमने ये कब कहा भला, हमसे कोई मिला नहीं। आपके एक ख़याल में मिलते रहे हम आपसे ये भी है एक सिलसिला गो कोई सिलसिला नहीं। गर्मे-सफर हैं आप, तो हम भी है

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मुझे–न मिलेंगे–आप

16 जुलाई 2022
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मुझे        न मिलेंगे आप, आपका        एकाकी क्षण हूँ मैं; आपका        भय और पाप, आपका        एकाकीपन हूँ मैं।             आसमान                  ढँके हुए है             समुद्र का         

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थरथराता रहा

16 जुलाई 2022
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थरथराता रहा जैसे बेंत मेरा काय...कितनी देर तक आपादमस्तक एक पीपल-पात मैं थरथर । काँपती काया शिराओं-भरी झन-झन देर तक बजती रही और समस्त वातावरण मानो झंझावात ऐसा क्षण वह आपात स्थिति का

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वसन्त आया

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फिर बाल वसन्त आया, फिर लाल वसन्त आया,        फिर आया वसन्त! फिर पीले गुलाबों का, रस-भीने गुलाबों का                                आया वसन्त!        सौ चाँद से मसले हुए जोबन पर        श्रृंगार की

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धूप

16 जुलाई 2022
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धूप थपेड़े मारती है थप्-थप्         केले के हातों से पातों से केले के थंबों पर खसर-खसर एक चिकनाहट        हवा में मक्‍खन-सा घोलती है   नींद-भरी आलस की भोर का कुंज गदराया है यौवन के सपनों से

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शिला का खून पीती थी

16 जुलाई 2022
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शिला का खून पीती थी वह जड़ जो कि पत्थर थी स्वयं सीढियां थी बादलों की झूलती टहनियों-सी और वह पक्का चबूतरा ढाल में चिकना  सुतल था आत्मा के कल्पतरु का ?

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शाम होने को हुई

16 जुलाई 2022
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शाम होने को हुई, लौटे किसान दूर पेड़ों में बढ़ा खग-रव। धूल में लिपटा हुआ है आसमान शाम होने को हुई, नीरव।   तू न चेता। काम से थक कर फटे-मैले वस्‍त्र में कमकर लौट आये खोलियों में मौन। चेतने वाला

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यह विवशता

16 जुलाई 2022
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यह विवशता कभी बनती चाँद कभी काला ताड़ कभी ख़ूनी सड़क कभी बनती भीत, बांध कभी बिजली की कड़क, जो क्षण प्रतिक्षण चूमती-सी पहाड़। यह विवशता बना देती सरल जीवन को ख़ून की आंधी यह विवशता मौन में भी

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वकील करो

16 जुलाई 2022
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1 वकील करो अपने हक के लिए लड़ो | नहीं तो जाओ मरो | 2 रटो, ऊँचे स्वर में, बातें ऊँची-ऊँची न सही दैनिक पत्रों से लेकर, खादी के उजले मंचों से दिन के, तो रेस्तराओं-गोष्ठियों में ही उन्हें सु

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रुद्रदत्त भारद्वाज की शहादत की पहली वर्षी पर

16 जुलाई 2022
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वह हँसी का फूल       ऊषा का हृदय बस गया है याद में : मानो अहर्निश् साँस में एक् सूर्योदय हो!       जागता व्‍यक्तित्‍व!       बोलता पाण्डित्‍य! आज भारद्वाज के विश्‍वास की लाली रक्‍त का स्‍प

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फाल्गुन शुक्ला सप्तमी की शाम

16 जुलाई 2022
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रेती पार स्निग्धर अचल धारा में धीरे-धीरे डूब रहा था.. सूर्य पीछे छूट रही थीं गाती हुई टिटिहरियाँ और सघन करती-सी रुकी हवा का धुँधला नीला मौन। दूर से निकट आता धीरे-धीरे भारी छायाओं की महराब

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कहो तो क्या न कहें, पर कहो तो क्योंकर हो

16 जुलाई 2022
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कहो तो क्‍या न कहें, पर कहो तो क्‍योंकर हो, जो बात-बात में आ जायँ वो, तो क्‍योंकर हो! हमारी बात हमीं से सुनो तो कैसा हो, मगर ये जाके उन्‍हीं से कहो तो क्‍योंकर हो! ये बेदिली ही न हो संगे-आस्‍त

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छिप गया वह मुख

16 जुलाई 2022
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छिप गया वह मुख     ढँक लिया जल आँचलों ने बादलों के (आज काजल रात-भर बरसा करेगा क्‍या?)     नम गयी पृथ्‍वी बिछा कर फूल के सुख सीप सी रंगीन लहरों के हृदय में, डोल            चमकीले पलों में,     

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रात्रि

16 जुलाई 2022
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1. मैं मींच कर आँखें कि जैसे क्षितिज       तुमको खोजता हूँ।   2. ओ हमारे साँस के सूर्य! साँस की गंगा             अनवरत बह रही है।       तुम कहाँ डूबे हुए हो?

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यह शाम है

16 जुलाई 2022
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यह शाम है कि आसमान खेत है पके हुए अनाज का। लपक उठीं लहू-भरी दरातियाँ,                    कि आग है धुआँ धुआँ सुलग रहा गवालियार के मजूर का हृदय। कराहती धरा कि हाय मय विषाक्‍त वायु         धूम

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चांद से थोड़ी-सी गप्पें

16 जुलाई 2022
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गोल हैं ख़ूब मगर आप तिरछे नज़र आते हैं ज़रा । आप पहने हुए हैं कुल आकाश तारों-जड़ा; सिर्फ़ मुंह खोले हुए हैं अपना गोरा-चिट्टा गोल-मटोल, अपनी पोशाक को फैलाए हुए चारों सिम्त । आप कुछ तिरछे नज़र आ

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अन्तिम विनिमय

16 जुलाई 2022
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हृदय का परिवार काँपा अकस्‍मात। भावनाओं में हुआ भू-डोल-सा। पूछता है मौन का एकान्त हाथ वक्ष छू, यह प्रश्‍न कैसा गोल-सा  प्रात-रव है दूर जो 'हरि बोल!' सा, पार, सपना है - कि धारा है - कि रात? कुहा म

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निंदिया सतावे

16 जुलाई 2022
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निंदिया सतावे मोहे सँझही से सजनी। सँझही से सजनी ॥1॥ प्रेम-बतकही तनक हू न भावे सँझही से सजनी ॥2॥ निंदिया सतावे मोहे...। छलिया रैन कजर ढरकावे सँझही से सजनी ॥3॥ निंदिया सतावे मोहें...। दुअि नैन

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निंदिया सतावे

16 जुलाई 2022
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निंदिया सतावे मोहे सँझही से सजनी। सँझही से सजनी ॥1॥ प्रेम-बतकही तनक हू न भावे सँझही से सजनी ॥2॥ निंदिया सतावे मोहे...। छलिया रैन कजर ढरकावे सँझही से सजनी ॥3॥ निंदिया सतावे मोहें...। दुअि नैन

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गीली मुलायम लटें

16 जुलाई 2022
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गीली मुलायम लटें आकाश साँवलापन रात का गहरा सलोना स्तनों के बिंबित उभार लिए हवा में बादल सरकते चले जाते हैं मिटाते हुए जाने कौन से कवि को.. नया गहरापन तुम्हारा हृदय में डूबा चला जाता न जाने

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एक मौन

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सोने के सागर में अहरह एक नाव है (नाव वह मेरी है) सूरज का गोल पाल संध्या के सागर में अहरह दोहरा है. ठहरा है... (पाल वो तुम्हारा है) एक दिशा नीचे है एक दिशा ऊपर है यात्री ओ! एक दिशा आगे है ए

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ये लहरें घेर लेती हैं

16 जुलाई 2022
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ये लहरें घेर लेती हैं ये लहरें .. उभर कर अर्द्ध द्वितीया टूट जाता है.. अंतरिक्ष में ठहरा एक दीर्घ रहेगा समतल - मौन दू्र... उत्तर पूर्व तक तीन ब्रह्मांड टूटे हुए मिले चले गये हैं अगिन व्यथा

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उत्तर

16 जुलाई 2022
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बहुत अधिक, बहुत अधिक तुम्‍हें याद करता मैं रहा; यह भी था कारण जो पत्र मैं लिख नहीं सका; लिख नहीं सका, बस। भावों का भार उन शब्‍दों से उठ नहीं सका, लिखे-पढ़े जाते जो पत्रों में। अन्‍य रूप शब्‍दों क

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बँधा होता भी

16 जुलाई 2022
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बँधा होता भी मौन यदि उस व्यथा के रूप से कोमल जो कि तुम हो समय पा लेता उसे तब भी।

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ओ मेरे घर

16 जुलाई 2022
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ओ मेरे घर ओ हे मेरी पृथ्वी साँस के एवज़ तूने क्या दिया मुझे -ओ मेरी माँ ? तूने युद्ध ही मुझे दिया प्रेम ही मुझे दिया क्रूरतम कटुतम और क्या दिया मुझे भगवान दिए कई-कई मुझसे भी निरीह मुझसे भी न

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मेरा दिल अब आज़माया जाएगा

16 जुलाई 2022
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मेरा दिल अब आज़माया जाएगा मुफ़्त इक महशर उठाया जाएगा जाने-जाँ यह ज़िन्दगी होगी न जब ज़िन्दगी से तेरा साया जाएगा आज मैं शायद तुम्हारे पास हूँ और किसके पास आया जाएगा कौन मरहम दिल पे रक्खेगा

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दिन तमाशा ख़्वाब हैं रातें मेरी

16 जुलाई 2022
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दिन तमाशा ख़्वाब हैं रातें मेरी फिर ग़ज़ल में ढल गईं बातें मेरी दिल के आईने में मुस्तक़बिल उदास क्या ख़ुशी देंगी मुलाक़ातें मेरी गर्मियाँ, आहों भरी तनहाइयाँ आंसुओं की याद बरसातें मेरी मेरी

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उत्तर

16 जुलाई 2022
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बहुत अधिक, बहुत अधिक तुम्‍हें याद करता मैं रहा; यह भी था कारण जो पत्र मैं लिख नहीं सका; लिख नहीं सका, बस। भावों का भार उन शब्‍दों से उठ नहीं सका, लिखे-पढ़े जाते जो पत्रों में। अन्‍य रूप शब्‍दों क

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