फिर वह एक हिलोर उठी
गाओ
वह मज़दूर किसानों के स्वर कठिन हठी !
कवि हे, उनमें अपना हृदय मिलाओ !
उनके मिट्टी के तन में है अधिक आग,
है अधिक ताप
अपने विरह मिलन के पाप जलाओ !
काट बूर्जुआ भावों की गुमठी को
गाओ !
अति उन्मुक्त नवीन प्राण स्वर कठिन हठी !
कवि हे, उनमें अपना हृदय मिलाओ !
सड़े पुराने अंध-कूप गीतों के
अर्थहीन हैं भाव, मूक मीतों के
उन्हें अपरिचय का लाँछन दे बिल्कुल आज भुलाओ !
नूतन प्राण-हिलोर उठी !
तुम, वह जिस ओर उठी, उठ जाओ !
कवि हे !..