कठिन प्रस्तर में अगिन सूराख।
मौन पर्तों में हिला मैं कीट।
(ढीठ कितनी रीढ़ है तन की
तनी है!)
आत्मा है भाव
भाव-दीठ
झुक रही है
अगम अंतर में
अनगिनत सूराख-सी करती।
15 जुलाई 2022
कठिन प्रस्तर में अगिन सूराख।
मौन पर्तों में हिला मैं कीट।
(ढीठ कितनी रीढ़ है तन की
तनी है!)
आत्मा है भाव
भाव-दीठ
झुक रही है
अगम अंतर में
अनगिनत सूराख-सी करती।
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शमशेर बहादुर सिंह आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख कवियों में से एक हैं। उन्हें नागार्जुन और त्रिलोचन के साथ हिंदी कविता की ‘प्रगतिशील त्रयी’ में शामिल किया जाता है। वह नई कविता के महत्त्वपूर्ण कवि हैं। नई कविता का आरंभ अज्ञेय के ‘दूसरा सप्तक’ से माना जाता है जहाँ शमशेर एक प्रमुख कवि के रूप में शामिल हैं। शमशेर का जन्म 13 जनवरी 1911 को देहरादून में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून में ही हुई, फिर वह उच्च शिक्षा के लिए गोंडा और इलाहबाद विश्वविद्यालय गए। 18 वर्ष की आयु में उनका विवाह धर्मवती से हुआ। छह वर्षों के सहजीवन के बाद 1935 में उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। अल्पायु में माता की मृत्यु और युवपन में पत्नी की मृत्यु से उनके जीवन में उत्पन्न हुआ यह अभाव सदैव उनके अंदर बना रहा। शमशेर की संवेदनशीलता उन्हें एक बड़ा और विशिष्ट कवि बनाती है। प्रतिगातिवादी चेतना और प्रयोगवादी चेतना के परस्पर अंतर्विरोध उनकी कविताओं में घुल जाते हैं और एक आकर्षक सामंजन का सृजन करते हैं। उनकी रचनात्मकता का एक विशेष दृष्टिकोण यह है कि वह अनुभूति की सच्चाई पर बल देते हैं। यह सच्चाई ही उन्हें फिर यथार्थपरक अभिव्यक्ति और मानवीय भावनाओं का कवि बनाती है। शमशेर बहादुर सिंह में अपने बिम्बों, उपमानों और संगीतध्वनियों द्वारा चमत्कार और वैचित्र्यपूर्ण आधात् उत्पन्न करने की चेष्टा अवश्य उपलब्ध होती है, पर किसी केन्द्रगामी विचार-तत्व का उनमें प्रायः अभाव-सा है। अभिव्यक्ति की वक्रता द्वारा वर्ण-विग्रह और वर्ण-संधि के आधार पर नयी शब्द-योजना के प्रयोग से चामत्कारिक आघात देने की प्रवृत्ति इनमें किसी ठोस विचार तत्त्व की अपेक्षा अधिक महत्त्व रखती है। शमशेर बहादुर सिंह हिन्दी साहित्य में माँसल एंद्रीए सौंदर्य के अद्वीतीय चितेरे और आजीवन प्रगतिवादी विचारधारा के समर्थक रहे। उन्होंने स्वाधीनता और क्रांति को अपनी निजी चीज़ की तरह अपनाया। इंद्रिय सौंदर्य के सबसे संवेदनापूर्ण चित्र देकर भी वे अज्ञेय की तरह सौंदर्यवादी नहीं हैं। उनमें एक ऐसा ठोसपन है, जो उनकी विनम्रता को ढुलमुल नहीं बनने देता। साथ ही किसी एक चौखटे में बंधने भी नहीं देता। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' उनके प्रिय कवि थे।D