
नई दिल्ली ; धर्म की बात आते ही यूपी की जिस धरती को भगवान राम और लक्ष्मण के चरण पड़ने को लेकर याद किया जाता है आज वही धर्म का स्थान चित्रकूट की जब बात आती है तो सबसे पहले दस्यु सम्राट ददुआ का नाम लिया जाता है. लेकिन अब दधुआ तो नहीं. इसलिए उनके बेटे और समाजवादी पार्टी से चित्रकूट की सदर सीट से MLA चुने गए वीर सिंह पटेल का नाम भगवान राम लक्ष्मण की इस धर्म की नगरी में लिया जाता है.
पिता से विरासत में मिली वीर को रंगदारी
गौरतलब है कि यह वही भगवान राम लक्ष्मण कि नगरी है. जहां कभी बड़े-बड़े माफिया हो या डकैत ददुआ का नाम सुनते ही थर्रा जाते थे, आज वही स्थिति उनके मरने के बाद उनके MLA बेटे वीर सिंह पटेल की है. वीर का नाम सुनते ही पूरे चंबल के इलाके में सन्नाटा पसर जाता है. पिता से विरासत में मिली इस शोहरत को आज भी वीर ने बचाकर रखा हुआ है. यहां बिहार के शाहबुद्दीन जैसे कई बड़े माफिया आये और आकर चले गए, लेकिन वीर ने हमेशा अपनी रंगबाजी और ख़लीफ़ागिरी से सबको पछाड़कर जंग में जीत हासिल की और वीर- वीर हो गए.
वीर की इजाजत के बगैर नहीं हिलता पत्ता
जिले का कोई बड़ा ठेका हो या बालू के खनन का काम सब पर ददुआ के इस बेटे की धाक है. अखिलेश सरकार में MLA चुने जाने के बाद तो वीर के साम्राज्य का वर्चस्व पूरे जिले में ही नहीं बल्कि समूचे चंबल इलाके में फ़ैल गया है. बताया जाता है कि अब तो वीर मध्य प्रदेश में भी अपना एक विशाल
साम्राज्य खड़ा कर रहा है. सूत्रों के मुताबिक वीर के इस बड़े कारोबार कि देख रेख उसके चाचा बाल कुमार पटेल संभालते है. लेकिन कारोबार की वसूली का काम वीर खुद देखता है.
ददुआ डकैत नहीं भगवान
सूत्रों के मुताबिक सरकार का तमका वीर पर लग जाने के बाद से तो उसने पीछे मुड़कर देखा ही नहीं. यही नहीं पिछले दिनों उसने अपने इलाके में एक भव्य मन्दिर अपने पिता ददुआ का बना दिया. जैसे ददुआ डकैत नहीं भगवान हो. बताया जाता है कि बिहार के सहाबुद्दीन हो या यूपी के बड़े-बड़े बाहुबली, इन सबकी भी बोलती वीर सिंह के आगे बंद हो जाती है. इलाके के लोगों कि मानें तो जमीन का अवैध कब्जा खाली कराना हो. अवैध कब्जा करना हो या किसी को उसकी औकात दिखानी हो तो उसकी इजाजत पहले वीर से ली जाती है. मसलन वीर की इजाजत के बगैर चिटकुट में पत्ता भी नहीं हिलता.
क्या अखिलेश सुधार पाएंगे सरकार की छवि ?
फिलहाल यूपी के सीएम एक तरफ जहां अपनी सरकार की छवि जनता की नजरों में अच्छी बनाने की कोशिश कर रहे है वहीँ सरकार के ऐसे MLA मुख्यमंत्री की आशाओं पर पानी फेरते नजर आ रहे हैं. बहरहाल सवाल इस बात का है कि क्या अखिलेश अपने मकसद में कामयाब हो पाएंगे या उनके चाचा शिवपाल आने वाले दिनों में उन पर भारी पड़ेंगे.