डाकिया अब भी आता है बस्तियों में थैले में नीरस डाक लेकर, पहले आता था जज़्बातों से लबालब थैले में आशावान सरस डाक लेकर। गाँव से शहर चला बेटा या चली बेटी तो माँ कहती थी -पहुँचने पर चिट्ठी ज़रूर भेजना बेटा या बेटी चिट्ठी लिखते थे क़ायदे भरपूर लिखते थे बड़ों को प्रणाम छो