भारतीय राजनीति में मुक्त राजनीति का प्रतिपादन बीजेपी ने किया है। कांग्रेस मुक्त भारत। मगर मुक्त के चक्कर में बीजेपी कांग्रेस युक्त होती जा रही है। उत्तराखंड में यशपाल आर्या, उनके बेटे और रिश्तेदार को कांग्रेस से बीजेपी में लाकर टिकट दे दिया। तीन विधानसभाओं में जो कार्यकर्ता 24 साल से काम कर रहे होंगे वो मारे खुशी के झूम रहे होंगे कि पार्टी ने उनके बीच से किसी को उम्मीदवार लायक नहीं समझा। टिकट के कारण उनकी आपस की लड़ाई नहीं हुई। उत्तराखंड में बीजेपी जिस कांग्रेस को हरा कर सरकार बनाना चाहती है, उसके पास अपने उम्मीदवार तक नहीं हैं। इस तरह से तो बीजेपी अपने भीतर कांग्रेस को पाल रही है। बाहर कह रही है कि वो कांग्रेस मुक्त भारत बनाना चाहती है। कांग्रेस से जुड़े नेताओं की जयंती मनाते मनाते कहीं बीजेपी कांग्रेस पार्टी की स्थापना दिवस न मनाने लगे। उधार का उम्मीदवार तक तो ठीक था, मगर उधार का परिवारवाद पहली बार सुन रहे हैं। संघ परिवार से आने वाली बीजेपी परिवारवाद समझने लगी है। यही तो भारतीय संस्कृति है जिसकी एकमात्र पार्टी बीजेपी है।
बीजेपी उधार का उम्मीदवार लाने के लिए दूसरे दलों को भी अच्छी निगाह से देखती है। उसके लिए पार्टी बुरी होती है, उसके लोग नहीं। अच्छे लोगों से भरी बुरी पार्टी की पहचान बीजेपी ही बेहतर करती है या उसे ही दिख जाता है।बसपा से दहेज प्रताड़ना और बहू हत्या के आरोप में निकाले गए, जेल गए और वहां से बाहर आए नरेंद्र कश्यप को भी बीजेपी ने अपने भीतर ले लिया है। जबकि कहां तो प्रधानमंत्री लोकसभा चुनाव के दौरान वादा कर रहे थे कि एक साल के भीतर सांसदों पर लगे आरोपों की जांच करा कर,मुकदमा चलवा कर पूरी कर देंगे।जो दोषी होंगे उनकी सदस्यता जाएगी। वैसे ढाई साल बीत चुके हैं। तमाम दलों में दूसरे दलों से नेता विधायक और सांसद आते हैं मगर बीजेपी का कोई मुकाबला नहीं। पार्टी एक डिपो की तरह हो गई है। कहीं से कोई भी बस आकर लग जाती है।
बीजेपी को दूसरे दलों से आए नेताओं के लिए अलग से विंग बनाने चाहिए। समाजवादी विंग। बसपा विंग। जदयू विंग। कांग्रेस विंग। आम आदमी पार्टी विंग। मीडिया विंग। फिल्म स्टार विंग तो बनना ही चाहिए। जब तब कोई न कोई फिल्म स्टार बीजेपी ज्वाइन करके ग़ायब हो जाता है। फिर वो अचानक नालंदा या मेरठ में खुली जीप में पार्टी का प्रचार करता हुआ नज़र आता है। कांग्रेस के फिल्म स्टार भी इसी तरह पोलिटिकल सीन में एंटर करते हैं। जैसे कांग्रेस बीजेपी के नेता बीसीसीआई की पार्टी में एक साथ नज़र आते हैं वैसे ही इन दलों के फिल्म स्टार फिल्म फेयर पुरस्कार में नाचते नज़र आते हैं। साथ-साथ।
अगर अलग अलग दलों से आए नेताओं के लिए बीजेपी में विंग बन जाए तो इससे बीजेपी के मूल नेताओं को लाभ मिलेगा। ताकि उन्हें ये न लगे कि कहीं समाजवादी पार्टी में तो नहीं आ गए। बसपा या कांग्रेस में तो नहीं आ गए हैं। बीजेपी जानती है कि विरोधी को हराने में कौन मेहनत करे। उसके जीताऊ उम्मीदवार को ले आओ और जीत जाओ। असम में जिस हेमंता विश्वास शर्मा पर आरोप लगाए, उसे अपना लिया और मंत्री तक बना दिया। इन दिनों हेमंता विश्वास शर्मा भाजपाई से भी ज़्यादा भाजपाई लगते हैं। समझ ही नहीं आता है कि बीजेपी ने कांग्रेस को उधार दिया था या कुछ समय के लिए कांग्रेस ने बीजेपी को उधार दिया है। ऐसा न हो हेमंता एक दिन कांग्रेस में लौट आएं और कह दें कि मैं तो जन्मजात कांग्रेसी हूं। अगर ऐसा हुआ तो जन्म से भाजपाई होंगे वो क्या करेंगे। उनका तो ये वाला जन्म बीजेपी में बेकार ही गया न।
बीजेपी आठ करोड़ से अधिक सदस्यता वाली दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है। लगता है कि उम्मीदवार बनने लायक लोग बीजेपी की सदस्यता नहीं ले पाए। बीजेपी सत्ताधारी दल है। इसलिए यह संकट ज़्यादा बड़ा गहरा संकट है। ये संकट है तो सभी के लिए मगर बीजेपी के लिए ज़्यादा है। क्या काडर आधारित पार्टी ने अपने काडर को विकसित करना छोड़ दिया है? हर पार्टी नीचे के स्तर पर प्रतिभाओं को कुचल रही है। चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस या बसपा या सपा ताकि चोटी पर एक ही प्रतिभा चमकती रहे। इस तरह से बीजेपी कांग्रेस बनती चली जाएगी। संघ एक दिन कांग्रेस बन रही बीजेपी से बोर हो जाएगा और कांग्रेस को बीजेपी बनाने की दिशा में काम करने लगेगा। याद रखियेगा कि बोर लोग कुछ भी कर सकते हैं। वे बोर होते हैं तो बोर होते हैं।
चुनाव आते ही बीजेपी के इस भर्ती अभियान से मीडिया का बनाया मिथक ध्वस्त हो जाता है कि इस पार्टी में संघ नेता तैयार करता है। लगता है कि संघ ने भी कुछ ख़ास नहीं किया है। 24 घंटे पहले कांग्रेस से आए बाप बेटे को टिकट देना अपने आप में प्रमाण है कि संघ बीजेपी के लिए उम्मीदवार पैदा नहीं कर पा रहा है। आज भी वो बाहर से उम्मीदवार लाने के लिए कांग्रेस को सबसे अच्छी पार्टी समझता है। बीजेपी कांग्रेसी नेताओं को अपने यहां लाकर उनके गुनाहों का राष्ट्रीकरण कर देती है!
संघ को भी लगता होगा कि हिन्दू राष्ट्र के लिए कब तक इंतज़ार करें। उधार के उम्मीदवारों को लेकर लर्निंग लाइसेंस की तरह लर्निंग हिन्दू राष्ट्र बना लेते हैं। बाद में परमानेंट का देखेंगे। मैं गंभीर होकर लिख रहा हूं मगर आप चाहें तो हंस सकते हैं। हंसेंगे तो मुझे ज़्यादा खुशी होगी।बीजेपी के भीतर कांग्रेस, सपाई और बसपाई मिलते होंगे तो कैसे मिलते होंगे। क्या कहते होंगे ? यह सोच कर हंसी आती हैं। क्या बीजेपी बैंक है? पांच सौ हज़ार के पुराने नोट की तरह दूसरे दलों से नेता बीजेपी में आए और नए नोट में बदल गए।अभी तक सब कहते थे कि कांग्रेस में भी भाजपाई हैं। पहली बार हो रहा है जब लोग कह सकते हैं कि भाजपा में भी कांग्रेसी हैं।
दूसरी तरफ राहुल गांधी जब नवजोत सिद्धू से मिल रहे हैं तो वो तस्वीर देखकर डर गया। इतने सुनसान जगह पर दोनों मिल रहे हैं कि लगता है कि सारे कांग्रेसी बीजेपी में जा चुके हैं। सिद्धू साहब वहां से निकल राहुल गांधी के पास आ गए हैं। नवजोत सिद्धू ने ख़ुद को जनम से कांग्रेस कहकर सबको डरा दिया है। कांग्रेस से इतने लोग जा चुके हैं कि कोई आता है तो लगता है कि अरे ये क्यों आया। वो भी बीजेपी से कोई आता है तो। रुकिये। आम आदमी पार्टी में भी अकाली दल से आए लोग भर्ती हुए हैं। जब अकाली से ही नेताओं को लेना है तो फिर लड़ना ही क्यों। मौकापरस्त नेताओं के लिए हर पार्टी है। मेहनतकश नेताओं के लिए उनकी ही पार्टी अपनी पार्टी नहीं है।