shabd-logo

दावत

3 मई 2022

38 बार देखा गया 38

रात-कुड़ी ने दावत दी

सितारों के चावल फटक कर

यह देग किसने चढ़ा दी


चाँद की सुराही कौन लाया

चाँदनी की शराब पीकर

आकाश की आँखें गहरा गयीं


धरती का दिल धड़क रहा है

सुना है आज टहनियों के घर

फूल मेहमान हुए हैं


आगे क्या लिखा है

आज इन तक़दीरों से

कौन पूछने जायेगा


उम्र के काग़ज़ पर

तेरे इश्क़ ने अँगूठा लगाया,

हिसाब कौन चुकायेगा !


क़िस्मत ने एक नग़मा लिखा है

कहते हैं कोई आज रात

वही नग़मा गायेगा


कल्प-वृक्ष की छाँव में बैठकर

कामधेनु के छलके दूध से

किसने आज तक दोहनी भरी !


हवा की आहें कौन सुने,

चलूँ, आज मुझे

तक़दीर बुलाने आई है

33
रचनाएँ
कविताएँ
0.0
अमृता प्रीतम साहित्य जगत् में एक ऐसी ‘ शख्सियत रही हैं जिनकी लेखनी ने भाषाओं की सीमाओं को तोड़ा और यह प्रमाणित किया कि लेखक की ‘ शैली भाषा , बोली देश की सीमाओं में बाँधी नहीं रहती। साहित्य में उनके द्वारा सृजित रचनाओं ने सभी वर्ग के पाठकों को आकर्षित किया। उनकी लेखन - ’ शैली पाठकों के कोमल मन पर सीधा प्रभाव छोडती है। अमृता प्रीतम हिन्दी साहित्य जगत में एक बहुचर्चित नाम है। साहित्य में उनके द्वारा सृजित रचनाओं ने पाठकों को काफी आकर्षित किया है। इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुए नरसंहार का अत्यंत मार्मिक चित्रण है. यह रचना ना सिर्फ भारत बल्कि पाकिस्तान में भी बहुत सराही गयी. अमृता प्रीतम का जन्म 31 अगस्त 1919 को गुजरांवाला पंजाब में हुआ था. 86 वर्ष की उम्र में उनका निधन 31 अक्तूबर 2005 को हुआ था
1

दावत

3 मई 2022
6
0
0

रात-कुड़ी ने दावत दी सितारों के चावल फटक कर यह देग किसने चढ़ा दी चाँद की सुराही कौन लाया चाँदनी की शराब पीकर आकाश की आँखें गहरा गयीं धरती का दिल धड़क रहा है सुना है आज टहनियों के घर फूल मे

2

रोजी

3 मई 2022
5
0
0

नीले आसमान के कोने में रात-मिल का साइरन बोलता है चाँद की चिमनी में से सफ़ेद गाढ़ा धुआँ उठता है सपने — जैसे कई भट्टियाँ हैं हर भट्टी में आग झोंकता हुआ मेरा इश्क़ मज़दूरी करता है तेरा मिलना ऐ

3

कुफ़्र

3 मई 2022
4
0
0

आज हमने एक दुनिया बेची और एक दीन ख़रीद लिया हमने कुफ़्र की बात की सपनों का एक थान बुना था एक गज़ कपड़ा फाड़ लिया और उम्र की चोली सी ली आज हमने आसमान के घड़े से बादल का एक ढकना उतारा और एक

4

मुकाम

3 मई 2022
4
0
0

क़लम ने आज गीतों का क़ाफ़िया तोड़ दिया मेरा इश्क़ यह किस मुकाम पर आ गया है देख नज़र वाले, तेरे सामने बैठी हूँ मेरे हाथ से हिज्र का काँटा निकाल दे जिसने अँधेरे के अलावा कभी कुछ नहीं बुना वह मु

5

राजनीति

3 मई 2022
3
0
0

सुना है राजनीति एक क्लासिक फिल्म है हीरो: बहुमुखी प्रतिभा का मालिक रोज अपना नाम बदलता है हीरोइन: हकूमत की कुर्सी वही रहती है ऐक्स्ट्रा: लोकसभा और राजसभा के मैम्बर फाइनेंसर: दिहाड़ी के मज़दूर, का

6

चुप की साज़िश

3 मई 2022
4
0
0

रात ऊँघ रही है किसी ने इन्सान की छाती में सेंध लगाई है हर चोरी से भयानक यह सपनों की चोरी है। चोरों के निशान  हर देश के हर शहर की हर सड़क पर बैठे हैं पर कोई आँख देखती नहीं, न चौंकती है। सिर

7

मेरा पता

3 मई 2022
5
0
0

आज मैंने अपने घर का नम्बर मिटाया है और गली के माथे पर लगा गली का नाम हटाया है और हर सड़क की दिशा का नाम पोंछ दिया है पर अगर आपको मुझे ज़रूर पाना है तो हर देश के, हर शहर की, हर गली का द्वार खटख

8

आदि स्मृति

3 मई 2022
3
0
0

काया की हक़ीक़त से लेकर काया की आबरू तक मैं थी, काया के हुस्न से लेकर काया के इश्क़ तक तू था। यह मैं अक्षर का इल्म था जिसने मैं को इख़लाक दिया। यह तू अक्षर का जश्न था जिसने 'वह' को पहचान लिया

9

नाग पंचमी

3 मई 2022
3
0
0

मेरा बदन एक पुराना पेड़ है और तेरा इश्क़ नागवंश युगों से मेरे पेड़ की एक खोह में रहता है। नागों का बसेरा ही पेड़ों का सच है नहीं तो ये टहनियाँ और बौर-पत्ते देह का बिखराव होता है यूँ तो बिखर

10

अश्वमेध यज्ञ

3 मई 2022
3
0
0

एक चैत की पूनम थी कि दूधिया श्वेत मेरे इश्क़ का घोड़ा देश और विदेश में विचरने चला सारा शरीर सच-सा श्वेत और श्यामकर्ण विरही रंग के एक स्वर्णपत्र उसके मस्तक पर 'यह दिग्विजय घोड़ा कोई सबल है त

11

दाग़

3 मई 2022
2
0
0

मौहब्बत की कच्ची दीवार लिपी हुई, पुती हुई फिर भी इसके पहलू से रात एक टुकड़ा टूट गिरा बिल्कुल जैसे एक सूराख़ हो गया दीवार पर दाग़ पड़ गया यह दाग़ आज रूँ रूँ करता, या दाग़ आज होंट बिसूरे यह

12

निवाला

3 मई 2022
1
0
0

जीवन-बाला ने कल रात सपने का एक निवाला तोड़ा जाने यह खबर किस तरह आसमान के कानों तक जा पहुँची बड़े पंखों ने यह ख़बर सुनी लंबी चोंचों ने यह ख़बर सुनी तेज़ ज़बानों ने यह ख़बर सुनी तीखे नाखूनों ने

13

साल मुबारक!

3 मई 2022
1
0
0

जैसे सोच की कंघी में से एक दंदा टूट गया जैसे समझ के कुर्ते का एक चीथड़ा उड़ गया जैसे आस्था की आँखों में एक तिनका चुभ गया नींद ने जैसे अपने हाथों में सपने का जलता कोयला पकड़ लिया नया साल कुझ ऐस

14

ऐ मेरे दोस्त! मेरे अजनबी!

3 मई 2022
1
0
0

ऐ मेरे दोस्त! मेरे अजनबी! एक बार अचानक – तू आया वक़्त बिल्कुल हैरान मेरे कमरे में खड़ा रह गया। साँझ का सूरज अस्त होने को था, पर न हो सका और डूबने की क़िस्मत वो भूल-सा गया फिर आदि के नियम ने ए

15

ख़ाली जगह

3 मई 2022
1
0
0

सिर्फ़ दो रजवाड़े थे एक ने मुझे और उसे बेदखल किया था और दूसरे को हम दोनों ने त्याग दिया था। नग्न आकाश के नीचे मैं कितनी ही देर तन के मेंह में भीगती रही, वह कितनी ही देर तन के मेंह में गलता

16

माया

3 मई 2022
0
0
0

अप्सरा ओ अप्सरा! शहज़ादी ओ शहज़ादी! विंसेण्ट की गोरी! तुम सच क्यों नहीं बनती? यह कैसा हुस्न और कैसा इश्क़! और तू कैसी अभिसारिका! अपने किसी महबूब की तू आवाज़ क्यों नहीं सुनती? दिल में एक चि

17

मजबूर

3 मई 2022
0
0
0

मेरी माँ की कोख मज़बूर थी मैं भी तो एक इन्सान हूँ आज़ादियों की टक्कर में उस चोट का निशान हूँ उस हादसे की लकीर हूँ जो मेरी माँ के माथे पर लगनी ज़रूर थी मेरी माँ की कोख मज़बूर थी मैं वह लानत ह

18

एक सोच

3 मई 2022
0
0
0

भारत की गलियों में भटकती हवा चूल्हे की बुझती आग को कुरेदती उधार लिए अन्न का एक ग्रास तोड़ती और घुटनों पे हाथ रखके फिर उठती है चीन के पीले और ज़र्द होंटों के छाले आज बिलखकर एक आवाज़ देते हैं

19

ऐश ट्रे

3 मई 2022
2
0
0

इलहाम के धुएँ से लेकर सिगरेट की राख तक उम्र की सूरज ढले माथे की सोच बले एक फेफड़ा गले एक वीयतनाम जले और रोशनी अँधेरे का बदन ज्यों ज्वर में तपे और ज्वर की अचेतना में हर मज़हब बड़राये हर फ़ल

20

आत्ममिलन

3 मई 2022
0
0
0

मेरी सेज हाज़िर है पर जूते और कमीज़ की तरह तू अपना बदन भी उतार दे उधर मूढ़े पर रख दे कोई खास बात नहीं बस अपने अपने देश का रिवाज़ है

21

हादसा

3 मई 2022
0
0
0

बरसों की आरी हँस रही थी घटनाओं के दाँत नुकीले थे अकस्मात एक पाया टूट गया आसमान की चौकी पर से शीशे का सूरज फिसल गया आँखों में कंकड़ छितरा गए और नज़र जख़्मी हो गई कुछ दिखाई नहीं देता दुनिया शा

22

जब मैं तेरा गीत लिखने लगी

3 मई 2022
0
0
0

मेरे शहर ने जब तेरे कदम छुए सितारों की मुठियाँ भरकर आसमान ने निछावर कर दीं दिल के घाट पर मेला जुड़ा , ज्यूँ रातें रेशम की परियां पाँत बाँध कर आई जब मैं तेरा गीत लिखने लगी काग़ज़ के ऊपर उभर

23

सिगरेट

3 मई 2022
0
0
0

यह आग की बात है तूने यह बात सुनाई है यह ज़िंदगी की वो ही सिगरेट है जो तूने कभी सुलगाई थी चिंगारी तूने दे थी यह दिल सदा जलता रहा वक़्त कलम पकड़ कर कोई हिसाब लिखता रहा चौदह मिनिट हुए हैं इस

24

धूप का टुकड़ा

3 मई 2022
0
0
0

मुझे वह समय याद है जब धूप का एक टुकड़ा सूरज की उंगली थाम कर अंधेरे का मेला देखता उस भीड़ में खो गया। सोचती हूँ: सहम और सूनेपन का एक नाता है मैं इसकी कुछ नहीं लगती पर इस छोटे बच्चे ने मेरा हाथ थाम

25

मैंने पल भर के लिए

3 मई 2022
1
0
0

मैंने पल भर के लिए --आसमान को मिलना था पर घबराई हुई खड़ी थी कि बादलों की भीड़ से कैसे गुजरूंगी कई बादल स्याह काले थे खुदा जाने -कब के और किन संस्कारों के कई बादल गरजते दिखते जैसे वे नसीब होते

26

पहचान

3 मई 2022
0
0
0

तुम मिले तो कई जन्म मेरी नब्ज़ में धड़के तो मेरी साँसों ने तुम्हारी साँसों का घूँट पिया तब मस्तक में कई काल पलट गए एक गुफा हुआ करती थी जहाँ मैं थी और एक योगी योगी ने जब बाजुओं में लेकर मेरी

27

वारिस शाह से

1 अगस्त 2022
0
0
0

आज वारिस शाह से कहती हूँ अपनी कब्र में से बोलो और इश्क की किताब का कोई नया वर्क खोलो पंजाब की एक बेटी रोई थी तूने एक लंबी दास्तान लिखी आज लाखों बेटियाँ रो रही हैं, वारिस शाह तुम से कह रही हैं

28

एक मुलाकात

1 अगस्त 2022
1
0
0

मैं चुप शान्त और अडोल खड़ी थी सिर्फ पास बहते समुन्द्र में तूफान था……फिर समुन्द्र को खुदा जाने क्या ख्याल आया उसने तूफान की एक पोटली सी बांधी मेरे हाथों में थमाई और हंस कर कुछ दूर हो गया हैरा

29

याद

1 अगस्त 2022
0
0
0

आज सूरज ने कुछ घबरा कर रोशनी की एक खिड़की खोली बादल की एक खिड़की बंद की और अंधेरे की सीढियां उतर गया… आसमान की भवों पर जाने क्यों पसीना आ गया सितारों के बटन खोल कर उसने चांद का कुर्ता उतार

30

हादसा

1 अगस्त 2022
0
0
0

बरसों की आरी हंस रही थी घटनाओं के दांत नुकीले थे अकस्मात एक पाया टूट गया आसमान की चौकी पर से शीशे का सूरज फिसल गया आंखों में ककड़ छितरा गये और नजर जख्मी हो गयी कुछ दिखायी नहीं देता दुनिया शा

31

आत्ममिलन

1 अगस्त 2022
0
0
0

मेरी सेज हाजिर है पर जूते और कमीज की तरह तू अपना बदन भी उतार दे उधर मूढ़े पर रख दे कोई खास बात नहीं बस अपने अपने देश का रिवाज है 

32

शहर

1 अगस्त 2022
1
0
0

मेरा शहर एक लम्बी बहस की तरह है सड़कें - बेतुकी दलीलों-सी और गलियाँ इस तरह जैसे एक बात को कोई इधर घसीटता कोई उधर हर मकान एक मुट्ठी-सा भिंचा हुआ दीवारें-किचकिचाती सी और नालियाँ, ज्यों मुँह स

33

एक सोच

1 अगस्त 2022
2
0
0

भारत की गलियों में भटकती हवा चूल्हे की बुझती आग को कुरेदती उधार लिए अन्न का एक ग्रास तोड़ती और घुटनों पे हाथ रखके फिर उठती है चीन के पीले और ज़र्द होंटों के छाले आज बिलखकर एक आवाज़ देते ह

---

किताब पढ़िए