जिस देश में कोई अभागा अपने कंधे पर अपनी पत्नी का शव रख कर दस किलोमीटर तक पैदल चलता जाए ...और रास्ते में हज़ारों हज़ार आँखें उसकी बेबसी बस देखती रहें ...कोई प्रतिक्रिया न हो, कोई सहारा देने के लिए आगे न बढ़े ...तो ऐसे देश, ऐसे प्रदेश को लूटना , जीतना और उस पर राज करना कितना आसान हो सकता है.
ओडिशा के कालाहांडी जिले की झकझोरने वाली तस्वीरें देखकर सुबह से विचलित हूँ. गाँव का एक गरीब अपने कंधे पर पत्नी की लाश रखकर चलता जा रहा है. साथ में छोटी से बेटी चल रही है..रुक रुक कर रो रही है..माँ की मौत देखकर ...बाप की लाचारी देख कर ...बाप जो शहर के अस्पताल से दस किलोमीटर दूर अपने गाव, माँ के शव को अपने कंधे पर लेकर चलता जा रहा है. बाप के पास एम्बुलेंस के लिए पैसे नही हैं. सरकारी मदद तक उसकी पहुँच नही है. रस्ते पर खड़े हज़ारों राहगीर उसके लिए बेरहम चश्मदीद से ज्यादा कुछ नही हैं. सरे राह, सरी दोपहर कहीं कोई प्रतिक्रिया दूर दूर तक दिखाई भी नही देती. ये कैसा समाज है. ये कैसा प्रान्त है. और ये प्रान्त मेरे ही देश का प्रदेश है. इसलिए जवाबदेही मेरी भी है. गुनाहगार मै भी हूँ. आप भी हैं.
लेकिन मित्रों, कालाहांडी के इस घिनोने सच ने आज मुझे कुछ सवालों के जवाब ज़रूर दिए हैं.
आज मुझे एहसास हुआ है की...
ओडिशा के जंगल बरसों से कटते गए लेकिन किसी ने आवाज नही उठायी.
ओडिशा के खनिज सम्पदा, कॉर्पोरेट और माफिया लूटते रहे लेकिन किसी ने प्रतिरोध नही किया
ज्यादातर चिट फंड कम्पनियों ने सबसे ज्यादा जालसाजी ओडिशा में की और ठगे गए, पर राज्य ने सुध नही ली
एक ऐसा मुख्यमंत्री जो रात में अपने सरकारी बंगले के दरवाजे बन्द कर साड़ी पहनकर नाचता हो ..उसे 16 साल से प्रदेश में लोग बहुमत देते गए
ओडिशा में माओवादी जाल बिछाते रहे, आम आदमी से माहवारी वसूलते रहे किसी को ऐतराज़ नही था
हे ओडिशा वालों, अब तो जागो ...कालाहांडी की इस घटना ने अगर झकझोरा हे तुम्हे तो उठो, आगे बढ़ो...घेर लो इस साड़ी वाले के घर को और कहो कि उस गरीब से माफ़ी मांगे जिसे समूचा राज्य दस किलोमीटर की लम्बी सड़क पर, एक पल के लिए, पत्नी के शव के लिए, एक भी कन्धा न दे सका.
घेरो ...
वरना फिर कोई तुम्हारे ही बीच से किसी अपने का शव, कंधे पर अकेले लेकर चलने को मजबूर होगा.