एक समय की बात है। चंदनपुर के राजा को अपने राज्य के लिए एक सहायक की आवश्यकता थी। जिसकी वजह से राजा ने ढिंढोरा पिटवा दिया कि राज्य में एक निजी सहायक की आवश्यकता है। उचित पात्र की परीक्षा लेकर उसे राजकीय सहायक नियुक्त किया जाएगा।
राजा की इस घोषणा के बाद महल में उम्मीदवारों की भारी भीड़ जमा हो गई। राजा ने तय किया कि इनकी न्योचित्त परीक्षा ली जाए ताकि योग्य उम्मीदवार की नियुक्ति हो सके।
राजा ने उन सबके सामने एक घड़ा रखा और कहा- "इसे तालाब के पानी से भरना है।" लेकिन एक विशेष बात मैं आप सब को बताना चाहता हूं कि इस घड़े में छेद है।
कुछ लोग तो बिना कोशिश किए ही चले गए। कुछ लोगों ने कोशिश की, लेकिन उसके बाद भी असफल होने पर वे निराश होकर वापस लौट गए। लेकिन उन सभी में एक व्यक्ति ऐसा भी था, जिसने अपना धैर्य नहीं छोड़ा। वह घड़े में पानी भरता रहा, पूरा पानी जमीन पर फैल जाता। धीरे-धीरे तालाब खाली हो गया।
तालाब के खाली होते ही उसे वहां पर एक हीरे की अंगूठी मिली। उसने अंगूठी राजा को दे दी। राजा ने उसे अपना निजी सहायक नियुक्त किया। साथ ही साथ उसकी ईमानदारी से खुश होकर वह अंगूठी उसे ही रखने को दे दी।
शीर्षक:- सच ही कहा गया है धैर्य का फल मीठा होता है।