चैतू उन दिनों हरा ताजा जवान हुआ था कि मुहल्ले के एक शाखा प्रमुख की बिटिया गुड्डी के लिये इश्क की कोपलें फूट पड़ीं।
चैतू ने गुड्डी की गली के बल्ब घूर घूर कर फ्यूज कर दिये.. गली की इंटरलाकिंग तक गिन डाली लेकिन पलट के रिस्पान्स न मिला। उल्टे जब गुड्डी को चैतू में डर का शारुख खान नजर आया तो बप्पा से अलग कह दिहिस..
फिर क्या था.. शाखा के लौंडों ने उसे धोया, निचोड़ा और सुखा दिये.. लेकिन चैतू तो ठहरा चैतू! कपड़े उतर गये मगर इशक का भूत न उतरा।
तब उसने गुड्डी के इश्क के अफसाने अपने फेसबुक पर शायरियों के रूप में उड़ेलने शुरू कर दिये। फेसबुकी मित्रों ने उसे बहुत समझाया कि जज्बात में जान चली जायेगी छोटू .. लेकिन चैतू न माना।
और जब उसकी शायरी ने फेसबुक पर आग लगा दी, तब उसे जान से मारने की कई धमकियाँ मिलीं.. तब उसे लगा कि मसला टेढ़ा है, तो उसने सोचा कि नाकाम इश्क की क्वालिफिकेशन तो है ही.. क्यों न प्रापर शायरी सीख ले।
उसने गूगल बाबा से प्रार्थना की... हाऊ टू बिकम ए शायर लाईक जान बहेलिया। जवाब आया.. यह तो जान बहेलिया ही बता सकते हैं।
और यूँ जान का पता अपनी सूनी कलाई पर लिख कर, चटनी रोटी बांध के वह चल पड़ा.. जान बहेलिया की खोज में।
पता चला एक गाँव में जान चिड़ियों को शायरी सुनाया करते हैं.. चैतू के पैरों में छाले पड़ गये लेकिन जिद का पक्का अपना चैतू चिड़ियों के अतालिक तक पंहुच कर रहा।
उसे देखते ही जान ने अपना कलाम पेश किया..
'हम हैं मसरूफ-ए-इंतजाम मगर
जाने क्या इंतजाम कर रहे हैं'
चैतू ने फौरन जवाब पेश किया,
'कह कर कि जान का एहतराम कर रहे हैं
हम फेसबुकियों का जीना हराम कर रहे हैं...'
जवाब से संतुष्टि मिलने पर जान ने मिजाजपुर्सी की तो चैतू ने सारी रूदाद कह सुनाई और जान से उस्ताद बनने की गुजारिश की। जान ने पास बैठे तोते को एक शायरी पेश करने को कहा तो चैतू ने बहर जांची परखी, रदीफ काफिया एडजस्ट किया और पहली तान लगाई..
'तेरी फितरत में नहीं वफा है
ए सियासत तू बड़ी बेवफा है
काम निकलते ही आंख फेर ले
तोताचश्म नही, वो तो नेता है'
'ऊंहू.. पत्ती थोड़ी ज्यादा हो गयी, चैतू.. थोड़ा और उबालो। वह फाख्ता दिख रही.. उसे सुनाओ।'
'जी गुरू जी.. तो पेश है विराट के कवर ड्राइव जैसा स्मूद कट..
तुझे अदा कहूँ वफा कहूँ बला कहूँ
तू बता के मैं तुझे आखिर क्या कहूँ
तेरी सादगी पे लपड़झंडू बन गया
ऐ गुड्डी क्यों न तुझे मैं बस फाख्ता कहूँ'
'ऊंहू.. इसमें तो चीनी ही नहीं है।'
'गुरू, थोड़े कन्फ्यूज हो गये.. हम शायरी बना रहे कि चाय बना रहे हैं।'
'शायरी भी संजीव कुमार की तरह फुल हुनर की डिमांड करती है चैतू.. शायरी हो या चाय, परफेक्ट बननी चाहिये।'
'अब यह संजीव कुमार कौन है'
'अरे वही जो आल इंडिया मुशायरे में सब तरह की डिश पकाता है।'
'संजीव कपूर.. उसे छोड़ो गुरू, कुछ हमारी शायरी में वजन लाने का आइडिया दो।'
'खूब है शौक का यह पहलू भी
मैं भी बर्बाद हो गया तू भी..
स्किल ड्वेलपमेंट का प्रोग्राम बड़े पीर साहब के तत्वावधान में चल रहा है। शायद वही तुम्हारी स्किल तराश पायें।'
'अब यह बड़े पीर कौन हैं..'
'मिर्चा गालिब साहब.. आओ चलते हैं उनकी आराम गाह में।'
और चैतू चल पड़ा जान बहेलिया का हाथ थामे..
आधी रात का वक्त और कब्रिस्तान का पुरअसरार समां.. हवा बदन का पसीना सुखाने को अपर्याप्त थी, सूखे पत्ते कदमों की चाप पर चरचरा कर डरावना साउंड इफैक्ट पैदा कर रहे थे.. कब्र की गर्मी से परेशान सारे मुर्दे कब्रों से बाहर निकल कर बीड़ी पी रहे थे।
और गालिब की कब्र जैसे खुली हुई उन्हीं का इंतजार कर रही थी।
'तो अब का कब्र के भीतर चलना पड़ेगा गुरू..'
'दादो तहसीन का यह शोर है क्यों
हम तो खुद से कलाम कर रहे हैं
मुर्दा हैं तो हम चैन की बस्ती में हैं
वर्ना जिंदा तो जीना हराम कर रहे हैं
चले चलो चैतू.. शायरी का रा मटेरियल यहीं से मिलता है और बड़े पीर की कोई ब्रांच भी नहीं है।'
और चैतू कब्र में उतर पड़ा...
कब्र का समां बाहर से थोड़ा बेहतर था, शायरी के बड़े पीर मिर्चा गालिब साहब सामने ही दीवान पर मसनद के सहारे अधलेटे से चंगेजी हुक्के में मार्लबोरो फंसा के धुआंधार कश ले रहे थे..
और सरहाने लुंगी बांधे खड़ा एक जिन पंखा झल रहा था, जिसके दो दांत मर्यादा तोड़ के, अपनी औकात से बाहर फूटे पड़ रहे थे.. शास्त्रों में इस प्रकार के लोगों को हबड़ा कहा गया है।
'वो आये हमारी कब्र में, करतूते बहेलिया है
कभी हम उन्हें कभी अपने हंटर को देखते हैं।'
दोनों को देखते ही गालिब ने थोड़ी सी शायरी रिलीज की।
'हंटर क्यों?' बहेलिया कन्फ्यूज हुए।
'ये उन नामुरादों में से है जो मेरी रूह निचोड़ देते हैं
लिख के ट्रकछाप शायरी मेरा नाम जोड़ देते हैं
सुनो विन्दू दारा सिंह.. इसने मेरे नाम से बहुत सी घटिया शायरी चेपी है। इसकी खाल उधेड़ दो।'
विन्दु ने देर नहीं की और चैतू की खाल उधेड़ दी.. चैतू ने भी एडवांस गुरुदक्षिणा समझ कर प्रसाद ग्रहण कर लिया और तब बहेलिया ने चैतू का मिशन बताया।
'तो अब शुरू करें बड़े पीर साहब।' चैतू ने दांतों का प्रदर्शन किया।
बड़े पीर नियम कायदों की फाईल उसकी हार्ड डिस्क में ट्रांसफर करने लगे।
'तो अब आओ चैतू.. तुम मेरी शायरियों के बच्चे पैदा करो। मतलब उन्हें आगे बढ़ाओ..
चंद तस्वीरें बुतां चंद हसीनों के खतूत
बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला'
'समझ के सलमा जिसे दिन रात की चैटिंग
दिन खराब थे कि वह भी सलमान निकला।' चैतू ने सिलसिला आगे बढ़ाया।
'तीन कोड़े लगाये जायें।'
हुक्म की तालीम हुई।
'अगला शेर पेश है..
फिर तेरे कूचे को जाता है ख्याल
दिल -ऐ -ग़म गुस्ताख़ मगर याद आया
कोई वीरानी सी वीरानी है
दश्त को देख के घर याद आया।'
'जिक्र छेड़ा जब बड़े पीर ने इश्क का
मुझे अपने इश्क का सफर याद आया
सुजाया पिछवाड़ा इस कदर संघियों ने
दर्दे छेड़खानी फिर उम्र भर याद आया।' चैतू ने फिर दुम बढ़ाई शायरी की।
'पांच कोड़े तशरीफ के बांये पहलू पे।' बड़े पीर की ख्वाहिश पर विन्दू ने बांया पहलू लाल कर दिया।
'मेरी शायरी में भला कौन सी कमी रह गयी पीर साहब।'
'खाली तुकबंदी मिलाने को तुम शायरी समझ रहे हो नामाकूल.. चलो आखिरी मौका लो..
बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब
जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है।'
'जान बहेलिया हो या मिर्चा गालिब मगर
शायरी सिखाने के नाम पे भाव खाता जरूर है।'
'हम्म.. बची खुली खाल भी उधेड़ दो। इसके जिस्म से रूह खींच कर डंबलडोर के विद्यालय में पंहुचा दो, जहां हैरी पोटर इसे वह बदरूह बना देगा जो फेसबुक पर हमेशा मंडराती रहेगी और अपनी खूनी शायरियों से आतंकवाद फैलायेगी।'
फिर हुक्म की तामील हुई.. और आज यह चैतू हमें फेसबुक पर हर तरफ शायरी का इनफेक्शन फैलाता पाया जाता है।