एक “आधुनिक” पौराणिक कहानी
आप सभी ने
पौराणिक कहानियों में
पढ़ा ही
होगा कि
देवताओं और
दानवों का
बार बार
युद्ध होता
था, और
बार बार
देवता हारते
हुए, भगवान् (अर्थात भगवान् विष्णु ) के दरबार
में गुहार
लगते थे
–त्राहि माम,
त्राहि माम.
भगवान् फिर
किसी नए
देवी या
देवता की
रचना करके
देवताओं को
शक्ति प्रदान
करते थे.
देवता विजयी
होते थे
और दानवों
को देवताओं
की सभी
शर्ते माननी
पड़ती थीं.
अब “शायद”
वर्तमान में
ये ही
कथा दोहराई
गयी है:
प्रकृति के सभी
घटक जैसे
पेड़, पौधे,
पर्वत, जंगल,
जलचर, पशु,
पक्षी, नदियाँ,
वातावरण इत्यादि त्राहि
माम त्राहि
माम करते
हुए भगवान्
के पास
पंहुचे और
गुहार लगाई
की हे
प्रभु ये
मनुष्य जाति
के दानव
तो हमें
जीने नहीं
दे रहे.
प्रभु को तो
सब ज्ञात
होता ही
है और
शायद प्रभु
इस समय
की प्रतीक्षा ही
कर रहे
थे; फिर
भी)प्रभु
ने बहुत
आश्चर्य प्रगट किया कि उन्होंने तो
मानव की
रचना यह
सोच कर
करी थी
कि मानव
जाति बुद्धिमान और
समझदार होगी
और स्वं
ही सम्पूर्ण पृथ्वी
से सामंजस्य बना
कर चलेगी.
प्रभु ने कहा
कि अपनी
मुख्य समस्याएँ बताएं.
सबका प्रतिनिधित्व करते
हुए पृथ्वी
बोली:
प्रभु हम लोग
क्या क्या
बताएं क्योंकि
आप तो
अन्तर्यामी हैं. आपको ज्ञात ही
होगा कि
किस प्रकार
सारी पृथ्वी
पर असामंजस्य फ़ैल
रहा है-ऊँचे पहाड़ों
से लेकर
समुन्द्र की
गहराइयों तक
और वातावरण
में वायु
से लेकर
ओजोन
परत तक त्राहि त्राहि
हो रही
है. पहाड़
कम हो
रहे हैं,
समुन्द्र बढ़
रहा है
परन्तु कितना
गंद समुन्द्र में
फैंका जा
रहा है
कि सभी
जलचर जीने
को तड़प
रहे हैं.
कई क्षेत्रों में
तो समुन्द्र,गन्दगी
से पूरा
ढका जा
चुका है
.
पहाड़ों और समुन्द्र के
हिमनद (glacier)
पिघल रहे
हैं, मौसम बदल रहे हैं; समुन्द्र में
पानी बढ़
रहा है,
फिर भी
नदियाँ सूख
रही हैं
और गन्दी
होती जा
रही हैं;पशु पक्षियों को
खाना तो
क्या शुद्ध
पानी भी
मिलना मुश्किल
हो गया
है.जंगल
काटे जा
रहे हैं.हवा भी
जीने लायक
नहीं रह
पा रही
है.
पशु पक्षियों को
खा-खा कर
इनकी कई
प्रजातियाँ मानव
ने नष्ट
ही कर
दी हैं और कई नष्ट होने ही वाली हैं.
सारा विवरण तो
प्रभु आप
अपनी दिव्य
ज्योति से
प्राप्त कर
ही चुके
होंगे और
हमारी पीड़ा
आपसे छुपी
नहीं रही
होगी.
अब आप से
हाथ जोड़
विनती है
कि प्रभु
हमें आशीर्वाद दें.
प्रभु चुप-चाप
सोचने लगे
कि क्या
किया जाय.
क्या ब्रह्मा
जी एवं
शिव जी
से मंत्रणा
की जाए,
या पहले
नारद मुनि
से?
प्रभु ने सब
को आश्वस्त
किया और
सोचने का
समय ले
कर सब
को विदा
किया.
पहले प्रभु ने
नारद मुनि
को मंत्रणा
के लिए
बुलाया.नारद
मुनि के
संवाद प्रभु
के लिए
और भी
पीड़ादायक थे.
मानव जाति
इतने अहंकार
में जी
रही है
परन्तु अपनी
ही जाति
में कितने
ही व्यक्तियों को
एकदम निराश्रित जीवन जीने
को छोड़
दिया और जाति का कुछ भाग केवल अपने लिए सत्ता,
धन और ज्ञान के
अहंकार की
तुष्टि करने
में लगा हुआ है. उन्हें किसी
से कोई
सरोकार नहीं
है; सब
केवल अपने
अपना सोचते
हैं.यहाँ
तक की
प्रभु का
ध्यान भी
लगभग छोड़ा
हुआ है
और यदि
करते भी
हैं तो
बिगड़े व सतही तरीकों से.
नाभिकीय (Nuclear) खतरे भी
इतने
एकत्रित किये हें हैं कि अपने आप (अर्थात मानव जाति को) कई बार समूल नष्ट कर सकते
हैं.
नारद मुनि ने
स्वीकार किया
कि पृथ्वी
अर्थात भूलोक,
ब्रह्माण्ड का
अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा
है और
मानव जाति
ने बड़े
उच्च कार्य
किये हैं
–समाज, विज्ञान
और अध्यात्म का
भी विकास
किया है.
कई प्रकार
की सोच
और अन्य
विभिन्नताओं के
बीच यह
आशा थी
कि प्रकृति
से सामंजस्य बना
कर ये
जाति और
पृथ्वी की
अन्य रचनाएं
अनंत काल
तक चलती
रहेंगी.
लेकिन अब ऐसा
संभव नहीं
लग रहा
था.
नारद जी का
स्पष्ट मत
था कि
मानव जाति
का पथ
प्रदर्शन करने
के लिए
कोई कदम
आवश्यक है.
हाँ यदि
प्रभु सोच
रहे हैं
कि इन्हें विघटनकारी मार्ग
पर चलने
दिया जाए
ताकि ये
स्वं ही
अपने आप
को नष्ट
करलें जैसा
कि डायनासोर परिवार की कई
प्रजातियों ने
मानव से
पहले किया
था; तो
जैसी प्रभु
इच्छा.
प्रभु ने ब्रह्मा
जी व
शिव जी
से मंत्रणा
की ठानी.
तीनो कैलाश पर्वत
पर मंत्रणा
में बैठे. (ब्रह्मा
जी राजहंस
पर और
विष्णु भगवान्
अपने गरुड़
पर चढ़
कर पंहुचे).
तीनों ने
मंत्रणा करी
और कुछ
निश्चय कर
लिए. हमेशा
की तरह
भगवन विष्णु
ही निर्णयों का
कार्यान्वन करते
हैं.
क्या कोरोना वायरस–कोविड-19
यही परिणाम है??
जो हुआ
अच्छा हुआ;
जो हो
रहा है
अच्छा हो
रहा है;
जो होगा
वह भी
अच्छा होगा.
इति.
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