2019 के चुनाव सम्पन्न होने के पश्चात मैंने
'शब्द' पर एक लेख प्रेषित किया था –“2019 के चुनाव अभियान में मर्यादाएं तार तार”।
अब 2024 के चुनाव भी पाँच वर्ष बाद फिर सम्पन्न हो गए हैं (लगभग)। ये समाज के अवलोकन का समय है कि अबकी बार कितनी तार तार हुईं मर्यादाएँ-पहले से कुछ कम या पहले से भी अधिक।
सब का अपना अपना दृष्टिकोण रहेगा।
चुनाव तो होते ही रहेंगे।
सत्ता चलाने वाले और media को चलाने वाले श्रेष्ठ पुरुष , कृपया सोचें। इस बार भी जनता के द्वारा चुने जाने वाले प्रतिनिधियों ने बिना
किसी उत्तरदायित्व के 'बोल' तो बोले ही हैं। यह आपका दृष्टिकोण है कि मर्यादाओं की
धज्जियाँ कितनी उड़ीं।