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सरल गीता ज्ञान -भाग 8 -कर्म करने की प्रक्रिया ---

2 जून 2023

6 बार देखा गया 6

 मित्रो,  

सप्रेम व सादर  नमस्ते।  

आशा है आप सभी कुशल व शांत होंगे। 

यह भाग पिछले अर्थात 7वें भाग से connected है। अत:  इन दोनों भागों में निरंतरता होने के कारण इस भाग के लिए पहले, कृपया 7वां  भाग भी पढ़ें । 

7वें भाग में हम चर्चा कर रहे थे कि आप एक formal visit पर कहीं गए हैं - स्थिति में चाय –व्यंजन और आपका
रसगुल्ले से आपका मोह इत्यादि।  

आइये स्थिति को थोड़ा modify किया जाए।  

तब आप एक formal मीटिंग में थे और सामाजिक शिष्टाचार का पालन आपका एक उद्देश्य था।  

अब नयी स्थिति में formal visit के स्थान पर आप एक पार्टी में गए हैं। चाय व्यंजन इत्यादि सभी हैं। 

सामाजिक शिष्टाचार के मापदंड में अंतर आ गया। यहाँ पर आपको पार्टी शिष्टाचार का पालन करना है अर्थात : 

· किसी को impress नहीं करना है; 

· परंतु सभी के साथ अपना व्यवहार शालीन रखना है। 

· और किसी को नाराज़ भी नहीं करना है और न ही कोई खराब impression डालना है।   

आप एक रसगुल्ला खा चुके हैं। कोई गिनती थोड़े ही कर रहा है कि आपने कितने रसगुल्ले खाये। तो आपने एक और तो ले ही लिया –स्वाद का आनंद लिया अर्थात सुख प्राप्त किया । 

अब तीसरे के लिए मन मचल रहा है । 

परंतु, अब आपकी बुद्धि ने याद दिलाया कि अभी एक मास पहले ही डॉक्टर ने कहा था कि आप का अपनी आयु के अनुसार sugar level कुछ बढ़ोत्तरी की तरफ है। अत: उन्होने मीठे पर कम करने को कहा था।  

यहाँ आपके मन-बुद्धि के निर्णय का समय है।  

बुद्धि ने कहा कि नहीं खाना है। मन तो मचल रहा है। 

तो दो options हैं:  

1.    यदि आपका मन uncontrolled-असंयमित है –जैसा प्राय: बच्चों का या immature व्यक्तियों का होता है;  तो
मन insist करेगा और बुद्धि की बात का विरोध करके एक और रसगुल्ला खा लेगा। (स्थिति ‘अ’) 

2.    बुद्धि के निर्णय को आपका controlled –संयमित मन स्वीकार करेगा।(स्थिति 'ब') 

ध्यान दीजिये; मन के लिए दो शब्द; असंयमित और संयमित, उपयोग किए गए हैं   

स्थिति ‘ब’ में क्या होगा? बुद्धि ने मना किया, मन ने माना और मन की इच्छा का संकल्प नहीं बनने दिया। इच्छा और भोग का cycle समाप्त हो गया।  

स्थिति ‘अ’ में अर्थात uncontrolled मन ने नहीं माना –एक और रसगुल्ला खाया गया –स्वाद का सुख भोग प्राप्त
हुआ।  
स्थिति ‘अ’ और आगे भी बढ़ सकती  है; अर्थात एक रसगुल्ला और खाया जा सकता है। सुख प्राप्त किया जा रहा है।   

परंतु परिणाम -घर पहुँच कर sugar level बढ़ा हुआ मिला और दवाई खानी पड़ी या और कोई दुख
प्राप्त हुआ । तो उस समय का सुख भोग, अब दुख भोग में change हो गया।  

निष्कर्ष यह है कि संयमित मन ही बुद्धि की बात को स्वीकार करेगा।  

गीता में कहीं भी बुद्धि को संयमित करने की चर्चा नहीं है।  बार बार मन को ही संयमित करने का उपदेश है। साथ में यह भी है कि यह बहुत कठिन है।  

अध्याय 6 श्लोक 26 में ; श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि: 

यतो यतो निश्चरति मनश्चंचलमस्थिरम् |
ततस्तो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नएत् || 26|| 

अर्थ: मन अपनी चंचलता तथा अस्थिरता के कारण जहाँ कहीं भी विचरण  करता हो,मनुष्य को चाहिए कि उसे वहाँ से खींचे और अपने वश में लाए |
इस स्थिर न रहने वाले,  चंचल मन को भली प्रकार शांत करना है, तब अर्जुन कहते हैं (अध्याय 6 श्लोक 33-34 में) कि : 

अर्जुन उवाच 

योSयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन | 

 एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम् || ३३|| 

अर्जुन ने कहा – हे मधुसूदन! आपने जिस योगपद्धति का संक्षेप में वर्णन किया
है, वह मुझे अव्यावहारिक लगती है , क्योंकि मन चंचल तथा अस्थिर है | 

चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् | 

 तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् || ३४ || 

हे कृष्ण! चूँकि मन चंचल (अस्थिर), उच्छृंखल, हठीला तथा अत्यन्त बलवान है, अतः मुझे इसे वश में
करना वायु को वश में करने से भी अधिक कठिन लगता है | “हे मधुसूदन, मन के चंचल होने से मैं इसकी शांत स्थिति नहीं देख पा रहा हूँ। मन को वश में करना वायु को रोकने की बराबर मुश्किल है। 

अगले श्लोक में श्री कृष्ण क्या कहते हैं –क्या कोई कार्य कठिन होने के कारण उसे करने का प्रयत्न ही न किया जाए।  

नहीं। वे कहते हैं कि:   

श्रीभगवानुवाच 

असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहंचलम् | 

 अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते || ३५|| 

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा – हे महाबाहो कुन्तीपुत्र! निस्सन्देह चंचल मन को वश में करना अत्यन्त कठिन है; किन्तु उपयुक्त अभ्यास द्वारा तथा विरक्ति द्वारा ऐसा सम्भव है | 

ये कार्य कठिन अवश्य है, परंतु असंभव नहीं है और अभ्यास एवं वैराग्य द्वारा ही सफलता पूर्वक किया जा सकता है”।     

थोड़ा बहुत मन पर संयम तो सभी लगते हैं –अपने अपने अनुसार। परंतु अधिकांश व्यक्ति , यदि थोड़ा भी संयम और बढ़ाएँ तो अपने स्वभाव में आश्चर्यजनक बदलाव पा सकते हैं । 

इन सरल उदाहरणों के साथ ही हम ये आज का वार्तालाप समाप्त करते हैं। अगले वार्तालाप में इस कठिन कार्य के बारे में ही चर्चा की जाएगी। 

कृपया सोचें कि क्या आप का मन और संयमित हो सकता है –यदि हाँ तो कैसे?? 

सब कुशल, शांत व प्रसन्न रहें।   

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