नई दिल्ली : तकनीक के क्षेत्र में भारतीय युवाओं में अपनी प्रतिभा का लोहा पूरी दुनिया में मनवाया है लेकिन सरकार आने वाले समय में इन युवाओं की प्रतिभा को सही दिशा पायेगी? इस सवाल का जवाब देना थोड़ा मुश्किल जरूर लगता है। वर्तमान में सामने आये कुछ आंकड़ों ने सरकार को भी मुश्किल में डाल दिया है। केंद्र सरकार की अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) की हाल में ही हुई बैठक में इस पर बेहद चिंता जताई गई।
आंकड़ों में सामने आया है कि देशभर में करीब 3,365 इंजीनियरिंग शिक्षण संस्थान हैं। जहाँ 16,32,470 सीटें हैं लेकिन इस शिक्षा सत्र में इनमें से सिर्फ 8,36,640 सीटें ही भर सकीं। इन कॉलेजों में मात्र 3,40,531 बच्चों का प्लेसमेंट हुआ। यानी देशभर के इंजीनियरिंग कॉलजों में होने वाले दाखिलों में करीब एक लाख तक की कमी आई है।
बुरे दौर में भारतीय आईटी कंपनियां
इसका सबसे बड़ा कारण नैसकॉम के इन आंकड़ों से पता चलता है जिसमे कहा गया है कि देश में 25 फीसदी इंजीनियरिंग ग्रेजुएट ही नौकरी के लायक होते हैं और यह हालात देश में कई समय से ज्यों के त्यों बने हुए हैं। भारतीय आईटी सेक्टर में नौकरियों की बात करें तो पिछले कुछ समय से भारत की आईटी और सॉफ्टवेयर उद्योग की बड़ी कंपनियों इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो में नौकरियों का सूखा पड़ा हुआ है। कहा जा रहा है कि ये आईटी सेक्टर की कंपमियां पिछले दो दशकों में मुनाफे के लिए तरस रही हैं।
क्या है छात्रों में डर ?
एक रिपोर्ट की माने तो वर्तमान में भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग 110 अरब अमरीकी डॉलर का है और इसमें। 42.5 लाख लोग काम कर रहे हैं। लेकिन हालही में आये आईटी सेक्टर के बदलाव ने इस क्षेत्र में जाने वाले छात्रों के मन में एक भय पैदा कर दिया है। कहा जा रहा है कि आईटी सेक्टर में आये ऑटोमेशन की तकनीक से इस सेक्टर की लाखों नौकरियां खतरे में आ गई हैं।
मनिपाल ग्लोबल एजुकेशन के चेयरमैन मोहनदास पाई की माने तो भारत में आईटी सेक्टर में काम करने वाले ज्यादातर लोग 30 से 70 लाख सालाना के बीच कमाते हैं लेकिन आगामी 10 सालों में कई लोग अपनी नौकरियां गंवा देंगे।