आज शब्द पर मई कि यह आखिरी डायरी है सोचा क्या लिखा जाये शुरुआत कहां से कि जाये कभी कभी ऐसा लगता है कि मन बहुत विचलित होता जा रहा है किसी काम में मन ही नहीं लगता चाहें कितनी भी कोशिश कर ले काम में मन लगाने कि ऐसा लगता है मन में कोई बोझ है पर यह किस का बोझ है यही समझ में नहीं आता बस ऐसा लगता है कि मन में कुछ दबा-दबा हुआ सा है लिखने से यह मन का बोझ कुछ कम हो जाता है पर जैसे फिर लिखना बंद करो तो फिर से मन बहुत उदास और परेशान सा हो जाता है आज के लिए बस इतना ही लिखने को मन हो रहा है आप सबसे फिर मुलाक़ात होगी जब तक के लिए आप सभी को मेरा नमस्कार