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गांव का बाजार भाग –1

30 जुलाई 2024

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सुबह सवेरे पांच बजे उठ कर चम्पा जब घर के बाहर झाड़ू लगा रही थी तो देखा कि उसके पड़ोस में जेठानी श्यामला घर के बाहर झाड़ू लगा चुकी थी। दोनों के घर के बीच मुंडेर थी। जिससे जब भी मौका मिलता था तो दोनों देवरानी जेठानी बातचीत में मगन हो जाती थी।

चम्पा अपनी जेठानी को रोक कर बोली," दीदी आज मंगलवार है, गांव में बाजार लगेगी। बिटिया सुमन और लड़के राजू के लिए आने जाने के कपड़े खरीदने हैं।"

जेठानी श्यामला गहरी सांस भरते हुए बोली,"आए जाए के कपड़े तो किरन और गोपाल के लिए हमका भी खरीदे का है। मुआ घर का काम खतम हो जाए। खेत पर चले जाए।खाना बना के रख देई।"

चम्पा हंसते हुए बोली," हम भी खाना बना कर धर दे। उसके बाद सुमन के पापा किराने की दुकान पर चले जायेंगे। बीच में थोड़ी देर नौकर दीपू सहारे छोड़ कर घर आकर खाना खा लेंगे। अच्छा दीदी तीन घंटे बाद सब काम खतम कर मिलते हैं।" ये सुनकर श्यामला गहरी सांस छोड़ते हुए चली गई।

श्यामला घर में पहुंच कर स्नान ध्यान पूजा के बाद खाना बना कर रख दी। अपने पतिदेव रामप्रसाद से शांत स्वर में बोली,"आज न हो तो गांव में बाजार जाकर किरन और गोपाल के लिए आए जाए के कपड़ा खरीद ले आई।"

रामप्रसाद उत्तेजित हो बोले," का करे जईहो, बहुत भीड़ भड़क्कर होत है। ऊपर से सयानी बिटिया किरन मालूम है ,१५बरस की हो गई है। हम दूनन के कपड़ा ले अइबे। बस बिटिया से सूट का रंग पूछ लियो। गोपाल का साथ लिए जाइत है। खेतन पर मजूर काम कर रहे हैं। पल्लेदार लच्छू का खेतन पर कही देब देखे रही। बैठो चुपचाप। बिटिया का घर के काम सिखाओ। अगले साल ब्याह कर देब ।"

श्यामला गहरी सांस छोड़ते हुए बोली," ठीक है।"

सोचने लगी कभी बाजार जाए की इजाजत न देहे। बस घरै मा रहो। सारा दिन खपो। न अपने साथ ले जईहैं और न ही छोटी के साथ जाय देहें।

रामप्रसाद अपने कमरे में गए और सफेद बुर्राक कुर्ता पायजामा काले जूते और सर पर साफा बांधे तैयार होकर बरामदे में आए। बोले,"अरे बिटिया जरा अपनी पसंद का सूट का रंग बताओ?"

किरन बाहर बरामदे में आकर बोली," बाबू हम साथ चले।"

रामप्रसाद बिटिया के सर पर हाथ रख कर बोले,"अच्छा चलो। लेकिन चीखे चिल्लाए न करो और गोपाल का भी बोल देओ, साथे तैयार होई जाए।"

श्यामला गुस्सा होकर बोली," बिटिया कहिस तो फौरन ले जाए का तैयार हुई गै। हम कहिन बच्चन के साथ चले जाई तो मना कर दिहीन। अरे जाइत छोटी और उके बच्चन के साथ तो का बिगड़ जाते। दिन भर घर के काम मा खपित है। थोड़ा सा मन बदल जाते।"

रामप्रसाद गुस्से में बोले," सुनो भागवान तुमका घर के काम खातीन लाए हन। न कि बाजार मा मंडरावे खातीन। रही बिटिया की बात तो बिटिया की कहा नहीं टाल सकित। बच्चन की खुशी खातिर जीत(जीते) है। चली जइहे बिटिया ससुराल तो मुंह देखे का तरस जइबे।"

कुछ देर में सुमन रानी रंग का सूट पहने और गोपाल नीली शर्ट और जींस पहन कर तैयार होकर आए और अपने बाबूजी जी के साथ लगभग १० बजे गांव की बाजार से कपड़े खरीदने चले गए।

क्रमश:


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गांव का बाजार
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गांव का बाजार जहां सब्जी मंडी के साथ साथ मिठाई , कपड़े, खेल खिलौने, हाट , मेला जिसका एक दिन निश्चित है। अमीरी और गरीबी का दर्पण, चौधरी और ठाकुर लोगों की हनक कैसी होती है।

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