नई दिल्लीः इसे केंद्रीय मंत्रालय की लेटलतीफी कहें या फिर नियम-कायदों को ठोंक-बजाकर बहुत बारीक पड़ताल। फॉरेस्ट क्लियरेंस न मिल पाने के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने ड्रीम प्रोजेक्ट की आधारशिला रखने की हसरत फिलहाल नहीं पूरी कर सकेंगे। शिमला के नाहन स्थित धौला कुआं इलाके में मैनेजमेंट शिक्षा के लिए आईआईएम जैसा संस्थान बनाया जाना है। मोदी अपने हाथों से इसकी नींव का पत्थर रखना चाहते थे। जमीन पहले ही खोज ली गई थी, सब कुछ तैयार था। मोदी का हिमांचल दौरा तय हुआ तो पता चला कि वन मंत्रालय ने तो अब तक जमीन को फॉरेस्ट क्लियरेंस ही नहीं दी। जिससे अब जब 18 अक्तूबर को मोदी हिमांचल प्रदेश के दौरे पर जाएंगे तो महज मंडी में तीन बिजली परियोजनाओं का ही शुभारंभ कर सकेंगे।
इसलिए जरूरी है फॉरेस्ट क्लियरेंस
अगर वन या पहाड़ी इलाकों में किसी विकासीय परियोजना की शुरुआत की जाती है तो केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाणपत्र(एनओसी) जरूरी है। मंत्रालय टीम से संबंधित स्थल का निरीक्षण कराकर रिपोर्ट लेता है कि वहां पर निर्माण से कहीं पर्यावरण को किसी प्रकार का नुकसान पहुंचने की तो आशंका नहीं है। अगर ऐसी कोई बात नहीं है तो मंत्रालय एनओसी सर्टिफिकेट जारी करता है। जिसके बाद ही प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारा जा सकता है। दरअसल पहाड़ी और वनीय क्षेत्रों में अंधाधुंध निर्माण से पेड़ कटते हैं। जिससे हरियाली नष्ट होने से पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है। भूस्खलन सहित अन्य तमाम आपदाओं की भी आशंका होती है। यही वजह है कि एनओसी की सख्त व्यवस्था है।
2183 सड़कों का निर्माण लटकने से मुश्किल
हिमांचल प्रदेश के ज्यादातर इलाके आज भी मुख्यधारा से नहीं जुड़ सके हैं। वजह है कि दुर्गम इलाकों मे रोड कनेक्टिविटी न होना। फॉरेस्ट क्लियरेंस न मिल पाने के कारण सूबे में 2183 सड़कों का निर्माण ठप है। वहीं राज्य के लोकनिर्माण विभाग के मंडी जोन में भी 917 सड़कें इसी कारण नहीं बन पा रहीं हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कहते हैं कि पांच हेक्टेयर तक वन भूमि निर्माण का अधिकार राज्य सरकार को होना चाहिए। ताकि जरूरी विकास पर प्रभाव न पड़े।