गर्दन में स्थित रीढ़ की हड्डियों में लंबे समय तक कड़ापन रहने, उनके जोड़ों में घिसावट होने या उनकी नसों के दबने के कारण बेहद तकलीफ होती है। इस बीमारी को सर्वाईकल स्पौण्डिलाइटिस कहा जाता है। इसमें गर्दन एवं कंधों में दर्द तथा जकड़न के साथ-साथ सिर में पीड़ा तथा तनाव बना रहता है।
आधुनिक चिकित्सा में सर्वाइकल स्पौण्डिलाइटिस का इलाज फिजियोथेरेपी तथा दर्द निवारक गोलियां हैं। इनसे तात्कालिक आराम तो मिल जाता है, किंतु यह केवल अस्थायी उपचार है। योग इस समस्या का स्थाई समाधान है, क्योंकि यह इस बीमारी को जड़ से ठीक कर देता है। लेकिन जब रोगी को चलने-फिरने में दिक्कत आने लगे तो एलोपैथिक दवाएं, फिजियोथेरेपी तथा आराम ही करना चाहिए। इस स्थिति में यौगिक क्रियाओं का अभ्यास नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह स्थिति रोग की गंभीर स्थिति होती है। आराम आते ही इससे पूरी तरह मुक्ति के लिए किसी कुशल मार्गदर्शक की निगरानी में यौगिक क्रियाओं का अभ्यास प्रारम्भ करना चाहिए।
सूक्ष्म व्यायाम रामबाण
सीधे बैठकर चेहरे को धीरे-धीरे दाएं कंधे की ओर ले जाएं। इसके बाद चेहरे को धीरे-धीरे सामने की ओर लाकर बाएं कंधे की ओर ले जाएं। इस क्रिया को प्रारम्भ में 5-7 बार करें। धीरे-धीरे बढ़ाकर इसे 15-20 बार तक करें। अब सिर को पीछे की ओर झुकाएं। सिर को आगे की ओर झुकाना इस रोग में वजिर्त है। इसके पश्चात सिर को दाएं-बाएं कंधे की ओर झुकाएं। यह क्रिया भी धीरे-धीरे 15 से 20 बार तक करें।
सीधे बैठकर या खड़े होकर दोनों हाथों की हथेलियों को आपस में गूंथें। इसके बाद हथेलियों को सिर के पीछे मेडुला पर रखें। अब हथेलियों से सिर को तथा सिर से हथेलियों को एक-दूसरे की विपरीत दिशा में पूरे जोर से इस प्रकार दबाएं कि सिर थोड़ा भी आगे या पीछे न झुकने पाए। इसके पश्चात् हथेलियों को माथे पर रखकर इसी प्रकार का विपरीत दबाव दीजिए। ये क्रियाएं 8 से 10 बार करें। अब दाईं हथेली को दाएं गाल पर रखकर एक-दूसरे के विपरीत दबाव डालिए। यही क्रिया बाएं गाल से भी करें। इन्हें भी 8 से 10 बार करें।
सीधे खड़े होकर दोनों हाथों को घड़ी की सुई की दिशा में तथा इसके बाद विपरीत दिशा में 10 से 15 बार गोल-गोल घुमाएं। इसके पश्चात् दोनों हाथों को कंधे की ऊंचाई तक अगल-बगल उठाकर उन्हें कोहनी से मोड़ लें। इस स्थिति में हाथों को 10 से 15 बार वृत्ताकार घुमाएं। इसके पश्चात् वापस पूर्व स्थिति में आएं।
आसन
एक-दो सप्ताह तक इन क्रियाओं का अभ्यास करने के बाद अपने अभ्यास में आसनों को जोड़ देना चाहिए। इसके लिए वज्रासन, मत्स्यासन, सुप्त वज्रासन, कुक्कुरासन, मकरासन, धनुरासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन तथा भुजंगासन बहुत उपयोगी हैं।
मत्स्यासन
पीठ के बल लेट जाएं। अब अपनी कुहनियों के सहारे सिर तथा धड़ के भाग को जमीन पर रखें। इस स्थिति में पीठ का ऊपरी हिस्सा तथा गर्दन जमीन से ऊपर उठ जाते हैं। हाथों को सीधा कर पेट पर रख लें। इस स्थिति में जितनी देर आसानी से रुक सकते हैं रुकें। उसके बाद वापस पूर्व स्थिति में आ जाएं।
प्राणायाम
रोग की गंभीर स्थिति में झटके वाले किसी भी प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए। इस रोग में नाड़ियों को शांत तथा स्थिर करने के लिए नाड़ीशोधन, उज्जयी एवं भ्रामरी प्राणायाम बहुत लाभकारी है।
भ्रामरी
पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन में या कुर्सी पर रीढ़ व सिर को सीधा कर बैठ जाएं। दोनों हाथों को जमीन से ऊपर उठाकर अंगूठे या किसी अन्य अंगुली से कान को बंद कर लें। एक गहरी श्वास अंदर लेकर नाक या गले से भौंरे के गुंजार जैसी आवाज तब तक निकालें, जब तक पूरी श्वास बाहर न निकल जाए। यह भ्रामरी की एक आवृत्ति है। इसकी 15 से 20 आवृत्ति का अभ्यास कीजिए।
ध्यान और योग निद्रा
रीढ़ की हड्डी की बीमारी में ध्यान और योग निद्रा का अभ्यास बहुत लाभकारी है। इस स्थिति में शरीर को पूरी क्रिया के दौरान बिल्कुल स्थिर रखते हुए अपनी सहज श्वास-प्रश्वास पर मन को एकाग्र करना चाहिए। इसका अभ्यास आरामदायक अवधि तक करें।
सावधानियां
गर्दन में दर्द होता हो तो पट्टा बांधना बहुत ही लाभकारी होता है I कड़े बिछावन पर सोना चाहिए ताकि रीढ़ की हड्डी ठीक रहे I तकिया लगाकर न सोएं I भारी वज़न नहीं उठाना चाहिए और न ही सर झुकाकर काम करना चाहिए I कम्प्यूटर पर काम करते हैं तो कुर्सी इतनी नीची रखें कि आपको गर्दन उठाकर काम करना पड़े I