भदोही : वाराणसी से कोई 45 किलोमीटर दूर, हज़ारों हज़ार हाथ अपने हुनर से दुनिया की सबसे शानदार कालीन बुनते हैं. लाजवाब डिजाईन और लाजवाब बारीक़ काम. शायद इसलिए कारपेट सिटी के नाम से मशहूर भदोही से हर साल 3000 करोड़ रूपए से ज्यादा के कालीन निर्यात किये जाते हैं. शायद इसीलिए यहाँ के मुस्लिम उद्यमियों की गिनती दक्षिण एशिया के सबसे अमीर मुस्लिम उद्यमियों में होती हैं. लेकिन यूपी के गर्म होते चुनावी माहौल में यहाँ के कारपेट किंग कुछ-कुछ कंफ्यूज दीखते हैं. मानो इस बार लखनऊ की सरकार बनाने में वे किंग मेकर की भूमिका खो रहे हों.
भदोही के गोपीगंज के कारपेट कारोबारी मुहम्मद असलम कहते हैं कि इस बार का इलेक्शन बंद है. बंद से उनका मतलब है कि कौन आगे है और कौन पीछे इसे लेकर कुछ भी खुला नही है. यानी बंद मुट्ठी की तरह चुनाव के नतीजे पुरी तरह बंद है और कोई कुछ भी भांप नही पा रहा है. जलालपुर के मुहम्मद गुल बताते हैं कि चार-पांच महीने पहले उन्हें लग रहा था कि मायावती का हाथी तेज़ी से दौड़ रहा है लेकिन महीने भर पहले अखिलेश यादव और राहुल गाँधी की जोड़ी ने समीकरण बदल दिये. पर हफ्ते भर से अखिलेश की साईकिल की रफ्तार कुछ धीमी पड़ रही है. यानी आम मुसलमान इस कारपेट बेल्ट की कई सीटों को लेकर मुहम्मद गुल की तरह भ्रमित है. भ्रम ये कि आखिर मोदी को यूपी में रोकने के लिए किसको वोट दें ...बसपा को या सपा को ?
भदोही के आसपास कई इलाकों में मुस्लिम जनसँख्या 45 फीसदी से भी ज्यादा है. मुस्लिम वोट के इस प्रतिशत में अगर दलित वोट भी जुड़ जाए तो जनतंत्र की कोई भी ताकत यहाँ मायावती को चुनौती नही दें सकती है. लेकिन नोटबंदी के बाद मायावती का हाथी कुछ थका सा दिखाई दे रहा है जैसे कुछ महीने से उसे खाने को चारा कम मिल रहा हो. बिक्रमगंज के घोसिया कलां मोहल्ले के मुहम्मद अश्फाकुल ने कहा, “ अभी हम कुछ नही बता सकते. मतदान से एक रात पहले हम लोग तय करेंगे कि वोट बसपा को दें या सपा को.” दरअसल अश्फाकुल का मानना था कि मुस्लिम बिरादरी उनके हल्के में ये फैसला नही कर पा रही है कि एकमुश्त वोट मायावती को दें या अखिलेश को. बिरादरी ये तो चाहती है कि बीजेपी को हर कीमत पर हराया जाए लेकिन विकल्प को लेकर असमंजस की स्थिति है. इसीलिए अंतिम निर्णय अंतिम दिन के लिए आरक्षित है.
बहरहाल मुस्लिम बाहुल्य वाली डेढ़ सौ से ज्यादा सीटों पर सपा और बसपा ने जिस तरह उमीदवार खड़े किये हैं उसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है. खासकर उन सीटों पर जहाँ सपा बसपा दोनों ने मुस्लिम उमीदवारों को टिकट दिया है. बीजेपी ने चुनावी बिसात पर एक चाल और खेल ी है. पार्टी के स्टार प्रचारक मोदी ने प्रत्यक्ष तौर पर अपनी टक्कर अखिलेश से दिखाने की कोशिश की है लेकिन सच ये है कि ज्यादातर सीटों पर बीजेपी को चुनौती बसपा से मिल रही है. यानी कमजोर को मजबूत दिखाकर बीजेपी ने मजबूत को कमजोर कर दिया है.