तमाशा ए मौत के सैकड़ो फन देखे
भागती सड़कों के सर कफन देखे
सिहर जाता हु बेरूह जिस्म देख के
कभी आईना तो कभी अपना बदन देखे
फूल सी बच्चियो के चेहरे पे मुस्कान देखे की
चील सी आखो से छलनी बदन देखे
समीर कुमार शुक्ल
1 जनवरी 2016
तमाशा ए मौत के सैकड़ो फन देखे
भागती सड़कों के सर कफन देखे
सिहर जाता हु बेरूह जिस्म देख के
कभी आईना तो कभी अपना बदन देखे
फूल सी बच्चियो के चेहरे पे मुस्कान देखे की
चील सी आखो से छलनी बदन देखे
समीर कुमार शुक्ल
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अपनी लिखी यू ही पढ़ देता हूँ
अंदाज़ मे मुझे गज़ल कहने नहीं आते,अपनी लिखी यू ही पढ़ देता हूँ
अंदाज़ मे मुझे गज़ल कहने नहीं आतेDसिहर जाता हु बेरूह जिस्म देख के कभी आईना तो कभी अपना बदन देखे
1 जनवरी 2016