जैसे नमक रहित भोजन
जैसे मधु रहित रस
जैसे शीतलता रहित जल
वैसे ही प्रेम रहित मैं मनुष्य
सूखे बीज़ की भांति रह गया हूँ
स्नेह जल बरसा कर
माँ
मुझे फिर से अंकुरित कर दो
समीर कुमार शुक्ल
9 जनवरी 2016
जैसे नमक रहित भोजन
जैसे मधु रहित रस
जैसे शीतलता रहित जल
वैसे ही प्रेम रहित मैं मनुष्य
सूखे बीज़ की भांति रह गया हूँ
स्नेह जल बरसा कर
माँ
मुझे फिर से अंकुरित कर दो
समीर कुमार शुक्ल
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अपनी लिखी यू ही पढ़ देता हूँ
अंदाज़ मे मुझे गज़ल कहने नहीं आते,अपनी लिखी यू ही पढ़ देता हूँ
अंदाज़ मे मुझे गज़ल कहने नहीं आतेD