माना तुममे भाव बहुत है
जिनको तुम व्यक्त नहीं कर पाते
बात बहुत हैं अंतर्मन में
जिनको तुम कह नहीं पाते
लो मैं इन सबका तुमको हल देती हू
मैं कविता हु
लो मैं तुमको अपना स्वर देती हू
समीर कुमार शुक्ल
30 दिसम्बर 2015
माना तुममे भाव बहुत है
जिनको तुम व्यक्त नहीं कर पाते
बात बहुत हैं अंतर्मन में
जिनको तुम कह नहीं पाते
लो मैं इन सबका तुमको हल देती हू
मैं कविता हु
लो मैं तुमको अपना स्वर देती हू
समीर कुमार शुक्ल
11 फ़ॉलोअर्स
अपनी लिखी यू ही पढ़ देता हूँ
अंदाज़ मे मुझे गज़ल कहने नहीं आते,अपनी लिखी यू ही पढ़ देता हूँ
अंदाज़ मे मुझे गज़ल कहने नहीं आतेDबहुत खूब
30 दिसम्बर 2015
धन्यवाद
30 दिसम्बर 2015
"मैं कविता हूँ...लो मैं तुमको अपना स्वर देती हूँ " बहुत सुन्दर कविता !
30 दिसम्बर 2015