जिधर से आए थे उधर जाएँगे
परिंदे शाम लौट के घर जाएँगे
तुम अपने वादा ए वफा की फिक्र करो
हमारा क्या है हम फिर मुकर जाएँगे
इस उम्र ए सफर मे और चल नहीं सकता
जरा सी छाव जो मिले की ठहर जायेंगे
सालों महकती रहेगी सुबहो की पहली हवा
इस शहर ए विरां मे कुछ ऐसा कर जाएँगे
समीर कुमार शुक्ल