मेरे जीवन कविता का अलंकार हो तुम
सृजन के शिखर का आधार हो तुम
मै शून्य, मेरा आकार हो तुम
तुम्हारी छाया मे वटवृक्ष की भाति फैल जाना चाहता हु
माँ, तुम्हारे लिए स्नेह गीत गाना चाहता हु
तुम्हारी कल्पना का साकार हु मैं
तुम्हारी वीणा का झंकार हु मै
तुम वसुंधरा,भार हु मैं
तुम्हारे गोद मे निश्च्छल निष्कपट सोना चाहता हु
माँ, तुम्हारे लिए स्नेह गीत गाना चाहता हु
समीर कुमार शुक्ल