बहुत देर तक मैं कहा टिक पाऊँगा
मैं चिराग हु कुछ देर मे बुझ जाऊंगा
अभी जाने दो शहर मुझको
मैं लौटूँगा जब ऊब जाऊंगा
रख दो हाथ उफनती चिमनियों पे
बहुत धुआ है मैं डूब जाऊंगा
समीर कुमार शुक्ल
27 दिसम्बर 2015
बहुत देर तक मैं कहा टिक पाऊँगा
मैं चिराग हु कुछ देर मे बुझ जाऊंगा
अभी जाने दो शहर मुझको
मैं लौटूँगा जब ऊब जाऊंगा
रख दो हाथ उफनती चिमनियों पे
बहुत धुआ है मैं डूब जाऊंगा
समीर कुमार शुक्ल
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अपनी लिखी यू ही पढ़ देता हूँ
अंदाज़ मे मुझे गज़ल कहने नहीं आते,अपनी लिखी यू ही पढ़ देता हूँ
अंदाज़ मे मुझे गज़ल कहने नहीं आतेDबहुत खूब
28 दिसम्बर 2015