कोई खत पैगाम सुनाने नहीं आते
कबूतर अब मेरे घर रहने नहीं आते
अपने लिखी युही पढ़ देता हूँ
अंदाज़ मे मुझे गजल कहने नहीं आते
एक तहजीब सी आ गयी उनमे
वो अपनी बातों से मुकरने नहीं आते
समीर कुमार शुक्ल
18 दिसम्बर 2015
कोई खत पैगाम सुनाने नहीं आते
कबूतर अब मेरे घर रहने नहीं आते
अपने लिखी युही पढ़ देता हूँ
अंदाज़ मे मुझे गजल कहने नहीं आते
एक तहजीब सी आ गयी उनमे
वो अपनी बातों से मुकरने नहीं आते
समीर कुमार शुक्ल
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अपनी लिखी यू ही पढ़ देता हूँ
अंदाज़ मे मुझे गज़ल कहने नहीं आते,अपनी लिखी यू ही पढ़ देता हूँ
अंदाज़ मे मुझे गज़ल कहने नहीं आतेD