गीत
कोई तो सच सच बतलाये ,
राम राज में पग धरने को ,
कितना अभी और चलना है |
दोनों पांवों में छाले हैं ,
होटों पर जकड़े ताले हैं |
दूर दूर तक कहीं जरा भी ,
नहीं दीखते उजियाले हैं |
चारों ओर घिरी आंधी में ,
भूख प्यास से जर्जर तन को ,
अभी और क्या क्या सहना है |
ताल ताल जमघट बगुलों का ,
डाल डाल कागों का आसन |
कैसे कोई लाज बचाये ,
हर पथ पर कपियों का शासन | .
भीड़ तन्त्र के इस नव युग में ,
प्रजातंत्र के घायल तन को ,
कब तक नित तिल तिल दहना है | .
सुरपति ध्यान मग्न निज तप में ,
अंध भक्ति स्वच्छंद हो गईं |
नीड़ उजाड़े सब उपवन के ,
करुणा जाने कहाँ खो गई |
ऋषि मुनियों की तपो भूमि पर ,
तम औ’ यह झंझा का मौसम , .
कब तक अभी और रहना है |
आलोक सिन्हा