लक्ष्मी जी को अपनी कही हुई बात पर जवाब देते हुए नहीं बना तो यह कहते हुए बचने की कोशिश करने लगीं कि "एक बात बताओ जिज्जी कि पति के साथ घूमने में भी कोई आनंद आता है क्या ? अरे, एक ही सूरत देखते देखते बोर हो जाते हैं , एक की आवाज सुन कर कान पक जाते हैं । घर में भी वही और बाहर भी वही । अब आप ही बताओ जिज्जी कि क्या आप रोज रोज एक ही सब्जी खाते खाते बोर नहीं होती हैं " ?
लक्ष्मी जी की बात पर सब औरतें हंस पड़ी । ललिता जी कहने लगीं "तुमने गजब कर दिया लक्ष्मी जी । पति और सब्जी को एक ही तराजू में तोल दिया । सब्जी की तरह क्या पति भी सुबह शाम बदला जा सकता है ? फिर , सब्जियां भी ले देकर वही पांच सात होती हैं। घूम फिरकर उन्हीं को बनाना पड़ता है" ।
"पांच सात तो होती हैं कम से कम । रोज तो एक ही नहीं खानी पड़ती है जिज्जी" । अब लक्ष्मी जी भी पूरे मूड में आ गईं ।
अब तक लाजो जी चुप बैठी थीं । अब उनसे चुप नहीं रहा गया । कहने लगीं "इतना तंग आ गई है क्या अपने पति से ? एक बार उनसे भी पूछ ले कि वे भी तेरे से तंग हैं कि नहीं । अगर मर्द लोग भी यही सोचें तो तुमको कैसा लगेगा" ?
"अगर मेरा मर्द ऐसा सोचेगा तो मैं मुंह नोंच लूंगी उसका" ललिता जी हाथों के इशारे करते हुए बोलीं जैसे कि वे अभी मुंह नोचने वाली ही हैं ।
चौधराइन ने कहा "जो बात हमें मर्दों की गलत लगती है, वही बात मर्दों को भी तो हम औरतों की गलत लगेगी न । इसीलिए तो यह "विवाह" नामक संस्कार बनाया है । एक दूसरे से प्यार, समर्पण, इज्जत यही तो इसकी विशेषता है । गृहस्थ आश्रम का पालन करना सबसे कठिन तप है । इससे बड़ी और कोई तपस्या नहीं है । इस तप में हम महिलाएं बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं । अगर गृहस्थ की गाड़ी पटरी से उतर भी जाती है तो हम औरतें अपने प्यार, त्याग, धैर्य, संवेदनाओं के प्रकटीकरण से उसे वापस पटरी पर ले आती हैं । पुरुषों का मन थोड़ा चंचल होता है । उनका संपर्क का दायरा भी थोड़ा विस्तृत होता है । इसलिए उनके संपर्क में महिलाएं अधिक आती हैं । महिलाओं में शारीरिक चुंबकीय क्षमता होती है जो पुरुषों को बरबस अपनी ओर खींच लेती है । कुछ पुरुषों का नियंत्रण खुद पर होता है और कुछ पुरुष "हुस्न की खाई" में फिसल जाते हैं । आजकल महिलाएं भी घर से बाहर निकल रही हैं , काम कर रही हैं । तो वे भी पर पुरुष की ओर आकर्षित हो रही हैं और वे भी विवाहेत्तर संबंध बना रही हैं । गलत गलत है वह चाहे पति करे या पत्नी" ।
चौधराइन ने बड़ी पते की बात कह दी थी । अब कहने को कुछ बाकी नहीं रहा था । लक्ष्मी जी ने मजाक मजाक में जो बात कह दी थी वह इतने बड़े दर्शन पर जाकर खत्म होगी, किसी ने सोचा नहीं था । मजाक मजाक में कभी कभी बहुत सी गूढ बातें कह दी जाती हैं । चौधराइन की बातें इसका प्रत्यक्ष प्रमाण थीं ।
लाजो जी ने विषय बदलते हुए कहा "एक बात बताओ दीदी, आपने मेघांशी को कहा था क्या बच्चे के लिए" ?
"नहीं । मेघांशी और यश ने ही इसका फैसला किया था , हमने इसमें कुछ नहीं किया । पर मेरा मानना है कि शादी के दो साल के बाद में तो बच्चा होना ही चाहिए । बाकी तो आजकल के बच्चे हैं , अपने मन का ही करते हैं । हमारे कहने या नहीं कहने से उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है । उन्होंने खुद ही ये निर्णय किया है और ये जानकर हमें और भी ज्यादा खुशी हुई है" । चौधराइन की प्रसन्नता उनके चेहरे से नजर आ रही थी ।
"सही कह रही हो दीदी । शादी के साल दो साल तक खूब मौज मस्ती कर लो , घूम फिर लो । उसके बाद अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए । बच्चे पैदा करना भी गृहस्थ आश्रम का एक बहुत महत्वपूर्ण कार्य है । इससे पितृ ऋण भी चुकता हो जाता है । अगर समय पर बच्चे हों तो समय पर उनके विवाह भी हो जायें । बुढापे में बच्चे होने पर रिस्क बढ जाती है और रिटायर्मेंट तक उनकी पढाई लिखाई और शादी नहीं हो पाती है इससे बाद में अनेक समस्याएं पैदा होती हैं । इसलिए समझदार युगल बच्चे पैदा करने में अत्यधिक विलंब नहीं करते हैं" ।
लाजो जी बहुत देर तक अपने दर्द को सहन करती रहीं मगर अब वह सहन नहीं हो पा रहा था । एक जोर की आह भरते हुए वे बोलीं "अपना अपना नसीब है दीदी । प्रथम की शादी को पांच साल हो गए मगर अभी तो दूर दूर तक कोई चांस नजर नहीं आ रहे हैं बच्चा होने के । आप समझाओ ना दीदी रितिका को" लाजो जी ने चहक कर कहा
"नहीं लाजो , जब मैंने अपने बेटे बहू से कुछ नहीं कहा तो तुम्हारे बेटे बहू से क्या कहूंगी" ?
इस जवाब से लाजो जी थोड़ी निराश हुईं । मगर अगले ही पल वे बोलीं "मेघांशी को कहो ना कि वह हमारी रितिका को समझा दे" ।
"देख लाजो , ये बच्चों का काम है और इसे बच्चों को ही करने दे । बच्चे समझदार हैं , कोई न कोई तो प्लान होगा ही उनका । एक साल और देख ले । अगर बच्चा नहीं लगा तो फिर कहेंगे हम दोनों" । चौधराइन ने अब इस विषय पर पूर्ण विराम लगा दिया था ।
क्रमश :
हरिशंकर गोयल "हरि"
13.6.22