आज लाजो जी ने ठान लिया था कि वह प्रथम और रितिका से बच्चे के बारे में बात अवश्य करेगी । अमोलक जी भी घर पर आ गये थे इसलिए उनके कंधे पर बंदूक रखकर दागी जा सकती थी । उन्होंने प्रथम और रितिका को शाम की चाय के लिए आवाज दी । दोनों जने डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गए और चाय सिप करने लगे ।
नीरवता भंग करते हुए लाजो जी बोलीं "दोनों जने बैठे हो एक साथ , इसलिए आज मुझे साफ साफ बताओ कि मुझे मेरा पोता कब मिलेगा" ? भारत में अभी भी लड़के का चार्म बना हुआ है ।
तालाब में जैसे किसी ने पत्थर फेंक दिया हो और कंपन हो रही हो । ऐसे में लहरें उठना तो स्वाभाविक है । आजकल बच्चों को लगता है कि उनके निर्णयों में किसी का दखल नहीं होना चाहिए । किसी कि मतलब किसी का भी । आजकल माता पिता "किसी व्यक्ति" में तबदील हो गये हैं ।
लाजो जी कहने लगीं । दोनों जने ध्यान से सुन लो । शादी को पांच साल से भी ज्यादा हो गये हैं । मैं अब और अधिक इंतजार नहीं कर सकती हूं । इसलिए इसी साल मुझे एक बच्चा चाहिए । आप भी तो कुछ बोलिए ना । मैं ही बकबक किए जा रही हूं" । लाजो जी ने अब अमोलक जी को बीच में घसीटते हुए कहा
बेचारे अमोलक जी को बीच में दखल देना पड़ा । लाजो जी ने और कोई विकल्प छोड़ा नहीं था । थोड़ी तेज आवाज में कहा उन्होंने
"प्रथम , रितिका , बताओ भई ? चुप क्यों हो ? मम्मी ने कुछ पूछा है ना" ?
अमोलक जी कम बोलते हैं । मगर जब बोलते हैं तो जमकर बोलते हैं । प्रथम ने बात संभालते सुए कहा "हां पापा, हम भी इस पर विचार कर रहे हैं" ।
"विचार कर रहे हैं मतलब ? ये विषय कोई विचार करने का है क्या ? अब तो इस पर अमल करना है" ।
रितिका खामोश ही थी अब तक । मगर उसके चेहरे से उसके भाव समझ में आ रहे थे । उसे इस विषय पर बात करना ही अच्छा नहीं लगता है । अब ये बात वह पापा को तो कह नहीं सकती थी इसलिए वह चुपचाप ही बैठी रही ।
अमोलक जी को रितिका का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा । इसलिए थोड़ी तेज आवाज में बोलते हुए उन्होंने कहा "क्यों रितिका , तुम्हें नहीं चाहिए क्या बच्चा" ? यह आघात तो इंद्र के वज्र की तरह था रितिका के लिए ।
रितिका को अचानक से इस तरह के प्रश्न की उम्मीद नहीं थी इसलिए वह एक पल को चौंकी फिर कहने लगी "आपकी बात सही है पापा । हमें भी बच्चा चाहिए पर अभी नहीं । अभी थोड़ा और समय चाहिए उसके लिए तैयार होने में " । रितिका स्पाट स्वर में बोली
"पांच साल का वक्त कम होता है क्या ? और अभी तो लगभग साल भर और लग जाएगा बच्चा पैदा होने में । छः साल का वक्त बहुत ज्यादा होता है । अब क्या सोच विचार करना है , अब तो बस, बच्चा चाहिए इस घर को ।खानदान का वारिस । बोलो कब तक दोगे, बच्चा" ?
रितिका को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे ? वह चुपचाप ही बैठी रही । प्रथम ने बात संभालते हुए कहा "तारीख का तो हमें खुद पता नहीं , मगर इतना पता तो है कि जल्दी ही कोई खुशखबरी सुनने को मिलेगी" ।
इतना कहकर प्रथम और रितिका उठकर अपने कमरे में आ गये । रितिका का नजला प्रथम पर गिरने लगा । प्रथम ने साफ कर दिया था कि अब उसे भी बच्चा चाहिए । अब तक वह रितिका की हां में हां मिलाते का काम ही करता था । मगर आज तो सचमुच उसके भी तेवर बदले हुए थे ।
"मुझसे नहीं होग यह सब । अभी तो मौज मस्ती की ही कहां है ? आपको अगर जल्दी है तो आप ही कर लो बच्चा । मैं तो सोने चली । और हां , आज आप सोफे पर ही सोएंगे " । और रितिका जोर से दरवाजा बंद कर अपने बैडरूम में चली गई ।
पत्नियों की यह सुप्रसिद्ध आदत है कि वे जब अपने पति से नाराज होती हैं तो पहले "धड़ाम" की आवाज के साथ दरवाजा बंद करती हैं । यह एक साइकोलोजीकल ट्रीटमेंट है है जिसका असर दूर दूर तक होता है । कुछ पति तो बहुत "हल्के" होते हैं । इतने से "भूकंप" में पूरी तरह हिल जाते हैं । और फिर पत्नी के आगे पीछे दुम दबाए घूमते रहते हैं । पति के लिए सबसे बड़ी परेशानी सोफे पर सोना ही है । सोफे पर सोने के लिए थोड़ी ना शादी की है । इसलिए प्रथम ने भी ना ना तरीकों से रितिका को मनाना शुरू कर दिया । देखते है कि रितिका इस "प्रहसन" को कितना लंबा खींचती है ।
क्रमश:
हरिशंकर गोयल " हरि"
20.6.22