"आज नाश्ते में क्या बनाऊं,मम्मी" लाजो जी जैसे नींद से जाग पड़ी । इतनी मीठी आवाज ! उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि यह आवाज उसकी बहू रितिका की है । उसने कन्फर्म करने के लिये अपना चेहरा आवाज की ओर घुमाया । सामने रितिका ही खड़ी थी । उसके चेहरे पर प्रश्न साफ दिखाई दे रहा था । लाजो को अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि आज रितिका इतनी सुबह जग गई और नाश्ता बनाने के लिए नीचे आ गई । लाजो जी की उन निगाहों से रितिका को समझ में आ गया कि उनके मन में क्या चल रहा है, इसलिए रितिका ने अपने होठों को थोड़ा चौड़ा करते हुए, बालों को झटकते हुए और जुबान में मिसरी घोलते हुए पूछा "क्या बनाऊं मम्मी नाश्ते में" ?
अब तो शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी । लाजो जी के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं था । आज रितिका को क्या हो गया है ? इसे तो किचन के नाम से ही चक्कर आने लगते हैं । लेकिन आज तो सूरज खुद चलकर आया है उसके आंगन में । लाजो की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा । आलसी बहू अपने-आप किचन में आ जाए तो हर सास खुशी से मर ही जायेगी । इसलिए बहुएं अपनी सासों का इतना ध्यान रखती हैं कि वे बुलाने पर ही किचन में आती हैं । आज तो सूरज पश्चिम से निकल रहा था शायद । लाजो जी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था लेकिन उनके मन में एक शंका जरूर रही कि आज रितिका उससे क्या काम निकलवाने वाली है ? वैसे तो वह कभी कुछ काम किचन में करती नहीं है । आज नाश्ता बनाने जा रही है तो कुछ तो खास बात है । वह खास बात क्या हो सकती है ? यही तो पता लगाना है । लाजो जी का खोजी दिमाग घूमने लगा ।
"आपने बताया नहीं, मम्मी" ? रितिका के स्वर की मिठास ने फिर से उनका ध्यान भंग किया तो लाजो जी कल्पना लोक से पुनः धरती पर अवतरित हुईं ।
"कुछ भी बना लो, बेटा" । उन्होने इन शब्दों में रितिका से भी ज्यादा शक्कर घोलते हुए कहा ।
"ओहो मम्मी , आप ही बता दो ना प्लीज" । एक बच्चे की तरह ठिनकते हुए रितिका बोली ।
अब सास बहू में "एक्टिंग कंपटीशन" होने लगा । दोनों ही औरत और दोनों ही महान अभिनेत्रियां । जैसे कि देवदास मूवी में माधुरी दीक्षित और ऐश्वर्या राय के बीच जबरदस्त अभिनय प्रतियोगिता हुई थी । अब बारी लाजो जी की थी । थोड़ा सोचने की एक्टिंग करते हुए वे बोलीं
"ऐसा करो, पोहे बना लो" और उन्होंने विजयी भाव से रितिका की ओर देखा ।
"पोहे तो कल ही खाये हैं न मम्मी" ? रितिका की आंखों में स्पष्ट रूप से अवज्ञा नजर आ रही थी ।
"ऐसा क्या ? तो ऐसा करो , सैंडविच बना लो" । अब तो जीत पक्की । यह सोचकर लाजो जी बोली ।
"सैंडविच में कितना आलू होता है मम्मी ? क्या आप जानती हैं कि आलू से कितनी "ओबेसिटी" आती है ? तभी तो लोग कहते हैं कि 'खाओ आलू और बन जाओ भालू' । ना बाबा ना , मुझे नहीं बनना भालू । कुछ और बताओ" । रितिका का चेहरा देखने लायक था ।
लाजो जी को अब जीत बहुत दूर दिखाई देने लगी । लेकिन इतनी आसानी से मैदान छोड़ने वाली नहीं थीं वे । फिर सोचकर बोलीं ।
"तो फिर हलवा बना लो । सूजी का थोड़ा हैवी हो जाएगा इसलिए आटे का बना लेना" ।
"कितना घी डलता है हलवे में मम्मी ? ये कहते रहते हैं कि हेल्दी हो रही हो , हेल्दी हो रही हो, वेट थोड़ा कम करो । और आप हलवा बनाने को कह रही हैं । क्यों, है ना प्रथम" ? । सामने से प्रथम को आते देखकर रितिका बोली ।
"हां रितु, सही कह रही हो । हलवे में घी बहुत ज्यादा होता है मम्मी । इसलिए कोई हल्का फुलका ही बना लो" । प्रथम ने रितिका की बात को और पुष्ट कर दिया ।
लाजो जी के पैर अब उखड़ने लगे थे । बेटा इतना नालायक निकलेगा , यह तो सोचा ही नहीं था उन्होंने । शादी से पहले तो हलवा की ही डिमांड रहती थी कमबख्त की । अब लुगाई के सामने एकदम से पलटी मार ली है नालायक ने । पर अब वे कर भी क्या सकती हैं । मां का लाडला शादी तक ही रहता है बेटा । बाद में तो वह "बेबी का शोना बाबू" बन जाता है । और शादी को पांच साल होते होते पूरा "पालतू" ही बन जाता है । लाजो जी प्रथम को रितिका के सामने पूंछ हिलाते हुए कई बार देख चुकी थीं । अब लाजो जी का धैर्य जवाब दे गया । आत्म समर्पण करते हुए बोलीं
"जो तुम्हारे मन में आये वो बना लो" ।
अब रितिका के होठों पर एक विजयी मुस्कान खेलने लगी । आखिर शांत दिमाग, मिसरी सी बोली, तिरछी मुस्कान, धैर्य और बुद्धि के प्रयोग से बड़े से बड़े शत्रु को भी पराजित किया जा सकता है । रितिका ने भी वही फॉर्मूला अपनाया था । अब वह अपना आखिरी वार करते हुए कहने लगी "तो फिर ब्रेड पिज्जा बना लूं ? इन्हें और दीदी को भी बहुत पसंद है और पापा भी शौक से खा लेते हैं" ।
प्रथम ने रितिका को घूरते हुए ऐसे देखा जैसे कह रहा हो कि मैंने कब कहा कि मुझे ब्रेड पिज्जा पसंद है । मगर जब रितिका ने आंखें तरेर कर प्रथम की ओर देखा तो वह डर के मारे सहम गया । एक "मेमने" की क्या औकात है जो एक "शेरनी" के सामने अपना मुंह खोले ? इसलिए वह चुप ही रहा ।
रही बात अमोलक जी की । तो वो ठहरे संत आदमी । वे अफसर जरूर थे मगर ऑफिस में । घर पे तो उन्हें कोई पूछने वाला भी नहीं था । उनकी गिनती ना तीन में होती थी और ना तेरह में । उनकी भलमनसाहत का फायदा हर कोई उठा लेता था । अपनी बात मनवाने के लिए हर कोई अमोलक जी का नाम लेकर कह देता था कि "उन्हें" भी पसंद है । और फिर अमोलक जी मना भी नहीं करते थे । इस प्रश्न पर भी अमोलक जी चुप्पी साध गये तो रितिका को मौका मिल गया कहने का कि पापा को भी ब्रेड पिज्जा पसंद है । बेचारे अमोलक जी , जब उन्होंने अपनी बीवी का कभी विरोध नहीं किया तो वे बहू का कैसे करते ?
लाजो जी को अब सब समझ में आ गया । "अच्छा , तो आज रितिका को नाश्ते में "ब्रेड पिज्जा" खाना था इसलिए वह आज जल्दी से जगकर नीचे आ गई और नाश्ते की तैयारी करने लगी थी । चूंकि उसे पता था कि लाजो जी को ब्रेड पिज्जा कुछ खास पसंद नहीं है इसलिए वे नाश्ते में ब्रेड पिज्जा तो नहीं बनाऐंगी । तो रितिका ने यह सब ताना बाना "ब्रेड पिज्जा" के लिए बुना था । एक बार तो लाजो जी रितिका के द्वारा बुने गये मायाजाल की कायल हो गई कि कितनी सुंदरता से रितिका ने अपनी बात मनवा ली थी । मगर लाजो जी अपनी हार का दंश भूल नहीं पा रही थी । लेकिन अब बाजी उनके हाथ से निकल चुकी थी ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
29.5.22