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सामाजिक

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मन को झकझोरती और सोचने को मजबूर करती एक कहानी जो समाज के कुरूप चेहरे पर एक जोर का तमाचा है। Victim Blaming&Victim Shaming का कड़े शब्दों में विरोध। कहानी का सर्वाधिकार सुरक्षित©®रामरक्षित आदि वर्तिका

अतृप्त आत्मा की आवाज़    आलोक कपूर अपने आफिस में बैठे हैं , अचानक दरवाजा खुलता है ।एक खूबसूरत लड़की लगभग  20-25 साल की उम्र दरवाजे पर खड़ी अन्दर आने की इज़ाजत मांग रही है। अलोक कपू

तेरी मोहब्बत का आलम है दिवाना कर देता है,तेरे इश्क में ये दिल जिंदगी को भर देता है।

तेरे साथ कितनी हसीन थी ज़िंदगीअब तेरे बिना बस सज़ा है ज़िंदगीतेरे साथ कितने मज़े में थी ज़िंदगीअब तेरे बिना बड़ी बेमज़ा है ज़िंदगीकभी तूने ही संवारी थी मेरी ज़िंदगीफिर क्यों तूने उज़ाड़ दी मेरी ज़िंदग

एक था जादूगर, दिखाता था वो रंगीन दुनिया। खेत खलिहान, और दूध की नदियां। चारो ओर खुशियों, की बहार। जादूगर का जादू, थे जो कुछ खास। रहते थे जो सदा, उसके पास। करता था उन पर ही काम, बाकी सब मुरख और अनजान। ज

वो पुराने दिन, वो सुहाने दिन जब टीवी घर आया, तो लोग किताबें पढ़ना भूल गए । जब कार दरवाजे पर आई, तो चलना भूल गए । हाथ में मोबाइल आते ही चिट्ठी लिखना भूल गए । जब घर में ac आया, तो ठंडी हवा के लिए पे

मुझे पता नहीं किसने रचाया इस ब्रह्माण्ड को लेकिन मेरे एक बात जरुर समझ आ रही है। प्रकृति के हर रूप ने बनाया है मुझको । मैंने इसे ही ईश्वर मान लिया है। जल वायु धरा गगन, आग पंच तत्व प्रकृति में ह

माँ का आँचलएक छोटे से गाँव में लीला नाम की एक महिला अपने तीन बच्चों के साथ मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार का पालन - पोषण कर रही थी। साथ ही अपने बच्चों को गाँव के स्कूल में पढ़ने को भेजती थी। उसके बच्चे

एक लड़की मेरे इतने करीब आकर चली गयी, जैसे कि मुझको मुझसे ही चुराकर चली गयी, उसके बिना मैं खुद को अधूरा - सा समझता हूं, पतंग संग डोरी का रिश्ता निभाकर चली गयी, कुछ अपने थे खिलाफ तब

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ऑफिस की सीढ़ी चढ़ते समय बगल की टूटी सीट पर बैठे एक वृद्ध व्यक्ति पर नजर गई।चेहरे के भाव बता रहे थे कि सज्जन काफी हताश और दुखी थे। मैने कोई खास गौर नहीं किया क्योंकि आज इस ऑफिस में मेरा पहला दिन था

**माँ, मुझे कोख में रहने दो**  *(माँ-बेटी का संवाद)*  "माँ, मुझे कोख में रहने दो,  मैं भी देखना चाहती हूँ दुनिया की रौशनी को।  मैं भी जीना चाहती हूँ,  

बरसों से सहेजा ख्वाब,सूखे पत्ते-सा उड़ जायेगा। सोचा नहीं था, इक आंधी के झौंके-से,दो हंसों का जोड़ा बिछुड़ जायेगा...!        आह ! इंदु.. तुम भी ना ! ऐसे, ऐसे कौन बिछुड़ता

निष्कर्ष के कहने पर काश्वी ने उत्कर्ष को रिप्लाई किया और एडमिशन के लिये हां कर दिया… कुछ घंटे बाद ही रिप्लाई आया जिसमें कंफरमेशन के साथ काश्वी को 15 दिन में ज्वाइन करने को कहा गया रिप्लाई आते ही काश्

अब तक आपने पढ़ाशशांक को एक बार के लिए कुछ समझ नहीं आया कि ये क्या कर रहे है 🙁 , अचानक से वो लोग आकर उठा लिए थे उसे 😄 ।  फिर उसे याद आया कि लोग दुल्हे को ऐसे उठा कर ले जाते है .....😄😄 अब

छत्तीसगढ़ की वीरांगना बिलासा केवट जिनके नाम पर बसा है बिलासपुर शहर…छत्तीसगढ़ में बिलासा एक देवी के रुप में देखी जाती हैं । कहते हैं कि उनके ही नाम पर बिलासपुर शहर का नामकरण हुआ। बिलासा केवट की एक आदमक़

सिकंदर को हराने वाली कठगणराज्य की राजकुमारी कार्विका के बारे में जानिये सच।राजकुमारी कार्विका सिंधु नदी के उत्तर में कठगणराज्य की राज्य की राजकुमारी थी । राजकुमारी कार्विका बहुत ही कुशल योद्धा थी। रणन

शरत-हमारी सगाई पक्की हो गई थी।  हमारे घर खुशियों के रंगों से सराबोर हो गया  था।रिश्ते करने वाले लोगों के चले जाने के बाद भी हमारे कुटुम्ब, परिवार और गांव के लोग बैठकर आपस में बातें कर रहे थे

शरत और सोनू दोनों ही अपनी बाल्यावस्था की जिंदगी जी रहे थे।शरत- इस समय हमारी पढ़ाई करने का समय था और पढ़ाई के साथ-साथ खेल कूद और मौज मस्ती करने का समय था।लेकिन जिस समाज में हम रहते हैं वह समाज हमारे वि

अब तक आपने पढ़ा— ओ ... हेलो ... दुल्हा ये है तुम लोग नहीं ... भैया इसे ( शशांक के तरफ इशारा करके बोला ) रेडी होने को बोल कर गए है । तुम लोग क्यों इतना उड़ रहे हो ।       अब आग

अब तक आपने पढ़ावो अपने सोच कि दुनियां से बाहर आया और फिर  फ्रेश होने चला गया । थोड़ी देर में वो अच्छे से तैयार होकर नीचे आया ।अब आगे      प्रशांत को नीचे आते देख कर उसकी मॉम उसके ड

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