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भाग 11 : ईर्ष्या की आग

8 जून 2022

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जब से लाजो जी ने सुना था कि चौधराइन की बहू मेघांशी "पेट से है" उनके दिमाग में लावा सा दौड़ने लगा । एक कहावत है न कि "पाड़ौसन खावे दही तो मो पै कब जावा सही" । जब पड़ौसन की बहू जो कि अभी दो साल पहले ही आई है , वह मां बनने वाली है और लाजो जी की बहू रितिका को पांच साल हो गए इस घर में आए हुए । मगर उनकी झोली तो अभी तक खाली है । अब आप ही बताओ गुस्सा नहीं आयेगा क्या ? 

लाजो जी को भयंकर गुस्सा आ रहा था । चौधराइन से तो वे बड़ी मीठी मीठी बातें कर रही थीं मगर मन ही मन सैकड़ों गालियां भी बके जा रही थीं । ऐसा ही होता है जब हमारे किसी परिचित,  रिश्तेदार या मित्र मंडली में ऐसी खुशी का कोई समाचार जो हमारे यहां आने से पहले उनके यहां आ जाये तो हमारे सीने पर सांप लोटने लग जाते हैं । कितना ही अजीज क्यों न हो कोई , उसके घर कोई अच्छा सा समाचार आता है तो हमारे सीने में जलन होना शुरू हो जाती है और स्थान विशेष से धुंआ निकलना चालू हो जाता है । 

सीने पर पत्थर रखकर , मुंह में मिसरी घोलकर और होठों को एक इंच फैलाकर जिस तरह हम उसे बधाइयां देते हैं उसके उलट मन ही मन में उसे उतना ही या उससे अधिक कोसते रहते हैं । कैसा लगता है जब मन के अंदर लावा खौल रहा हो और मुंह में मिसरी घुली हुई हो ? कसम से अच्छे अच्छे अभिनेता , अभिनेत्रियां भी इतनी शानदार एक्टिंग नहीं कर पाते होंगे जितनी हम लोग रोजाना कर लेते हैं । पर हमारी इस सुपर एक्टिंग के कहीं चर्चे तक नहीं होते किसी मैग्जीन या अखबार में । और फिल्म वाले ऐंवयी पुरुस्कार ले जाते हैं । अपनी तो किस्मत ही खराब है जो कुछ यश नहीं मिलता है । 

लाजो जी भरी बैठी थीं । किस पर गुस्सा निकालें ? वैसे हकदार तो बेटा प्रथम और बहुत रितिका ही थे । घर का चिराग या परी तो वे ही दे सकते थे । मगर बहू रितिका को कहना तो बर्र के छत्ते में पत्थर फेंकने जैसा था । अपना हुलिया खराब नहीं करवाना चाहती थी वह इसलिए इतनी रिस्क नहीं ले सकती थीं लाजो जी । प्रथम तो आजकल रितिका की धुन पर डिस्को डांस करता रहता था । उससे कुछ भी कहने का कोई फायदा नहीं था । टीया अपने कॉलेज की सेमीनार में चली गई थी । अब बचे अमोलक जी । हां, यही तो वह बंदा है जिसे हर वक्त "धुना" जा सकता है रूई की तरह । आदमी की तो शादी ही इसीलिए होती है जिससे पत्नियों को एक खिलौना मिल जाये खेलने के लिये । जब कहो बैठ जाये और जब कहो , खड़ा हो जाये । जहां पर पति लोग ऐसा नहीं करते हैं वहां शादी टिकती कहां हैं ? 

कुम्हार का गुस्सा किस पर उतरता है ? गधे पर ही ना ? कोई जमाने में मर्द कुम्हार होता था और मर्द का गुस्सा औरत पर ही तो उतरता था । पर अब समय बदल चुका है । औरतें भला कब तक मार खातीं ? उनके स्टेटस में बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ है । अब पुरुष गधे की तरह धुने जाने लगे हैं और औरतें शेरनी बन गई हैं । तो , आजकल की औरतों की तरह लाजो जी भी अमोलक जी पर चढ बैठी "ये राबड़ी कहीं भाग कर नहीं जा रही है ? इसे तो बाद में भी गटक लेना । पहले एक बात बताओ कि प्रथम की शादी हुए कितने साल हो गए हैं" ? 

बेचारे अमोलक जी , बड़े मनोयोग से घाट की राबड़ी का आनंद ले रहे थे । आज कितने दिनों बाद उनकी पसंद की कोई डिश मिली थी उन्हें खाने के लिए । और वो भी शीला चौधराइन की बनी हुई  । इसलिए वे अपनी संपूर्ण एकाग्रता से उसका स्वाद ले रहे थे । मगर दाल भात में मूसलचंद की तरह से बीच में कबाब में हड्डी की तरह लाजो जी दांतों के नीचे आ गई  । सारा मजा किरकिरा हो गया । 

अमोलक जी ने प्रश्न वाचक निगाहों से लाजो जी की ओर देखा जैसे कि उन्होंने कुछ सुना ही नहीं हो । लाजो जी उन्हें इस तरह से देखते हुए देखकर और बिफर गईं । झल्लाकर बोलीं "मैंने कोई अंग्रेजी में नहीं पूछा था कि प्रथम की शादी को कितने साल हो गये हैं ? और ऐसा भी नहीं है कि आप अंग्रेजी नहीं जानते हों ? तो , बताइए कि कितने साल हो गए प्रथम की शादी को" ? 

एक तो आदमी अपनी मनपसंद की चीज पूरी तल्लीनता के साथ खा रहा हो और उस पर उसकी बीवी बिल्ली की तरह गुर्राये तो बेचारे पति की तो ऐसी की तैसी होनी तय है ना । अमोलक जी अवाक होकर लाजो जी को देखने लगे । 

"अरे मेरे भोले भंडारी , कुछ तो बोलो ? इतनी देर में तो हमारे पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जी भी बोल जाते थे ? मैं कबसे गला फाड़ रही हूं और आपको कोई परवाह ही नहीं है" । 

अमोलक जी को अब थोड़ा थोड़ा माजरा समझ में आने लगा । वैसे तो लाजो जी उन्हें बोलने का अवसर देती ही कहां थीं ? मगर आज तो जैसे सारा कुछ उनसे ही बुलवाकर छोड़ना था लाजो जी को । 

अमोलक जी में धैर्य गजब का था । लाजो जी को झेलना हर किसी के बस की बात भी नहीं थी । बड़े शांत भाव से अमोलक जी ने कहा "मैडम, आप तो ऐसे पूछ रही हो जैसे मैं कोई दुनिया भर की बातों का ज्ञाता होऊं ?अरे, जिस आदमी को खुद की शादी की तारीख,  महीना और वर्ष याद नहीं रहते हों उस आदमी से उसके बेटे की शादी के साल पूछ रही हो ? जाओ और प्रथम से पूछो या फिर रितिका से पूछो । उन्हें तो पक्का याद होगा" । 

अमोलक जी के मुखारविन्द से निकले इन अनमोल शब्दों ने लाजो जी की आग में घी का काम किया । लौ और भड़क गई  । लाजो जी तमतमाकर बोली "आपको कुछ याद रहता है क्या ? थोड़ा दीन दुनिया की भी खबर रखा करो । जब देखो तब सरकारी फाइलों में खोये रहते हो । घर में, पड़ौस में क्या हो रहा है कुछ पता भी है आपको " ? 

अब की बार अमोलक जी चौंके । जब लाजो जी ने इतना कुछ कहा है कि घर - बाहर में क्या हो रहा है, इसका पता तो होना चाहिए उन्हें ।  बात सच भी थी । इसका मतलब है कि बात कुछ गंभीर है । ऐसी क्या बात हो सकती है भला ? उन्होंने दिमाग पर बहुत जोर डाला मगर कुछ याद नहीं आया । उन्होंने अंधेरे में तीर छोड़ते हुए कहा "छमिया किसी के साथ भाग गई है क्या" ? 

लाजो जी का मुंह खुला का खुला रह गया । अमोलक जी ने छमिया को क्या खूब पहचाना है ? उसके लटके झटके हैं ही ऐसे कि हर कोई आदमी उसके बारे में ऐसा ही सोचेगा ? पर लाजो जी को उम्मीद नहीं थी कि अमोलक जी छमिया तक पहुंच जायेंगे । इसलिए कहने लगीं "वैसे एक बात बता दूं, छमिया अभी तक भागी नहीं है । मगर आपको ऐसा क्यूं लगा कि छमिया किसी के साथ भागने वाली है" ? 

अब अमोलक जी फंस गये थे । वे लाजो को यह कैसे कह देते कि एक दिन छमिया रास्ते में मिल गई थी और अमोलक जी से कह रही थी "कितने हैंडसम हैं भाईसाहब आप ? अगर मेरी शादी नहीं होती तो मैं आपको भगा ले जाती" । और ऐसा कहकर वह लजाकर चली गई थी । उन्होंने तो इस वाकिये के कारण ऐसा कहा था मगर अब लाजो जी को ये बात बताकर "कोहराम" थोड़ी मचवाना था उन्हें घर में" ? इसलिए कह दिया "मैंने तो ऐसे ही कह दिया था । अगर छमिया नहीं भागी है तो क्या कोई और लड़की भागी है" ? 

"इस उम्र में भी आप ये भागने और भगाने की बातें कर रहे हैं ? थोड़ी बहुत शर्म बची है कि नहीं ? या वो भी बेच खाई है" ? 
"मैडम जी, बात का बतंगड़ मत बनाओ और मूल विषय पर आ जाओ । कितने साल हो गए प्रथम की शादी को" ? 

"पूरे पांच साल हो गए हैं प्रथम की शादी को और अभी तक रितिका को बच्चा नहीं लगा है  ।  जबकि चौधराइन की बहू मेघांशी पेट से है" । लाजो जी ने अपना सारा गुबार निकालते हुए  कहा । 

क्मश: 

हरिशंकर गोयल "हरि"
8.6 22 

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रचनाएँ
बहू पेट से है
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एक परिवार और आसपास के मौहल्ले में रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाली घटनाओं , बातों और कथाओं से हास्य पनपता है । हास्य कभी भी अकेला नहीं होता है उसके साथ व्यंग्य उसी तरह चिपका होता है जैसे किसी लड़की पर किसी आशिक की दो आंखें चिपकी होती हैं । बात में से बात निकालने की कला में महिलाओं ने महारथ हासिल कर रखी है और,उसी कला का भरपूर प्रयोग कर पाठकों को गुदगुदाने के लिए लेकर आया हूं यह धारावाहिक । उम्मीद है कि आपको पसंद आयेगा । कृपया समीक्षा अवश्य करें । धन्यवाद।
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