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भाग 3 : महाभारत

19 मई 2022

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लाजो जी की हालत खस्ता कचौरी जैसी हो गई  । सारा काम उन्हें ही करना पड़ेगा , यह सोच सोचकर ही उनका दिल बैठा जा रहा था । काम करने की आदत रही नहीं । बस, अब तो सोशल मीडिया पर ही समय गुजरता है लाजो जी का । पर आज का दिन कैसे कटेगा , लाख टके का प्रश्न था । 
अचानक लाजो जी ने सामने देखा तो पाया कि अमोलक जी अखबार में आकंठ डूबे पड़े हैं । लाजो जी पहले से ही परेशान थीं और अमोलक जी को अखबार में निमग्न देखकर वे और परेशान हो गई  । फिर वे गुस्से से आग बबूला हो गईं । उनका सारा गुस्सा अमोलक जी पर टूट पड़ा । वैसे भी धोबी का गुस्सा गधे पर ही उतरता है और पत्नियों के गुस्से पर तो पति का ही एकाधिकार है । इसलिए गुस्सा अपने रस्ते चल पड़ा । 

उधर, अमोलक जी लाजो जी के क्रोध से बेख़बर होकर अखबार पढने में मस्त थे । 
"कैसे घुसे पड़े हैं अखबार में कि इनको दीन दुनिया की कुछ खबर ही नहीं है । अरे इतना तो कोई आशिक किसी हसीना की आंखों में भी नहीं डूबता होगा । कोई पियक्कड़ किसी बोतल में भी नहीं घुसा होगा । कोई नेता किसी कुर्सी पे भी नहीं चिपकता होगा । और ये साहब सुबह से चाटे जा रहे हैं इस अखबार को । जरा ठहरो, अभी मजा चखाती हूं इन्हें" । लाजो जी मन ही मन भुनभुनाते हुए बोली ।

"अखबार चाट चाट कर ही पेट भर लोगे क्या ? कुछ नाश्ता वाश्ता करना भी है या नहीं ? पर नाश्ता बने तो बने कैसे ? दीपिका तो आई नहीं है और बेटी तथा बहू दोनों तान खूंटी सो रही हैं । अब आप ही बताइए कि नाश्ता कैसे बनेगा" ? 

अमोलक जी को पता था कि घर में अगर कोई भी समस्या आती थी तो सबसे पहले उनका नाश्ता ही कट होता था । जैसे कि वह समस्या नाश्ता के कटने के लिए ही पैदा हुई थी । अब तो वे नाश्ता कटने के आदी हो चुके थे । किसी न किसी बहाने से महीने में कम से कम 15 दिन उनका नाश्ता कट जाता था । मगर अमोलक जी के चेहरे पर कभी शिकन की एक लकीर तक किसी ने नहीं देखी थी । इतना धैर्यवान व्यक्ति या तो कोई संत ही हो सकता है या फिर कोई अफसर । अमोलक जी अफसरों में संत हैं । मतलब , वैसे तो वे सरकारी अफसर हैं लेकिन प्रकृति से वे एक संत हैं ।  

अफसर होने के कारण वे नेताओं की डांट तो खाते ही रहते हैं साथ में बॉस की फटकार का भी एक अलग ही आनंद है । और तो और , कभी कभी तो मातहत भी खूब खरी खोटी सुना जाते हैं उन्हें । पर क्या मजाल कि किसी ने उनके चेहरे पे कभी कोई परेशानी की एक भी लकीर देखी हो । वे जब प्रशासन के गुर सीख रहे थे तब उन्हें सबसे खास गुर यही बताया गया था कि "सुनो सबकी और करो मन की" । तो अमोलक जी ने इसे गांठ बांध कर अपने पास रख लिया और वे छोटे बड़े सबकी सुनते रहते हैं मगर करते वही हैं जो उनका मन कहे । इसलिए वे "लोढ़े" की तरह चिकने हो गये हैं । इस चक्कर में वे बहुत सी बातें तो सुनते ही नहीं हैं । मतलब कि एक कान से सुनते हैं तो दूसरे से निकाल बाहर करते हैं । और जो कुछ सुनते भी हैं उन्हें घोलकर पी जाते हैं । ऐसे हैं अमोलक जी । अब इनका कोई क्या बिगाड लेगा ? 

लाजो जी ने देखा कि उनकी बातों का अमोलक जी पर कोई असर नहीं हुआ है और उनका तीर खाली चला गया है तो वे बिफर गईं । उनका सारा नजला अमोलक जी पर गिरने लगा "दीन दुनिया की खबर तो खूब रखते हो मगर घर में क्या हो रहा है , इसका अता पता नहीं है । ये तो मेरे ही करम फूटे थे जो मेरे पल्ले तुम जैसा "खड़ूस" आदमी पड़ा । ना घर के और ना घाट के । अब मेरी तरफ टुकुर टुकुर क्या देख रहे हो ? चलो उठो और मेरे साथ साथ काम करो " । लाजो जी ने आदेशात्मक भाषा में कहा ।

अमोलक जी ने अपना ध्यान अखबार से हटाकर लाजो जी पर सेन्टरलाइज कर लिया । चश्मे को उतारा और झाड़ पोंछकर साफ किया । फिर दुबारा से आंखों पर चढाते हुए बोले 
"लगता है कि आज मूसलाधार बारिश होने वाली है । टीया, बेटा मेरा छाता तो लाना" । बडे ही शांत भाव से कहा था अमोलक जी ने । 

छाते का नाम सुनकर लाजो जी और उखड़ गई  । तुनक कर बोलीं "मूसलाधार बारिश के साथ ओले भी पड़ने वाले हैं । जरा अपने सिर को बचाना, नहीं तो आधे से पूरे गंजे आज ही हो जाओगे । और हां , वो दीपिका आज नहीं आई है इसलिए आज तुम्हें झाड़ू पोंछा करना है । चलो, शुरू हो जाओ अब । और देर मत करो " । अमोलक जी के हाथ में झाड़ू पकड़ाते हुए लाजो जी ने कहा । 

अमोलक जी ठहरे अफसरों में संत आदमी । मतलब ऐसे अफसर कि जिन्हें दो गाली भी दे दो तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है । तो वे चुपचाप उठे और झाड़ू उठाकर बाहर की ओर जाने लगे । 

हरिशंकर गोयल "हरि" 
19.5.22 

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रचनाएँ
बहू पेट से है
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एक परिवार और आसपास के मौहल्ले में रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाली घटनाओं , बातों और कथाओं से हास्य पनपता है । हास्य कभी भी अकेला नहीं होता है उसके साथ व्यंग्य उसी तरह चिपका होता है जैसे किसी लड़की पर किसी आशिक की दो आंखें चिपकी होती हैं । बात में से बात निकालने की कला में महिलाओं ने महारथ हासिल कर रखी है और,उसी कला का भरपूर प्रयोग कर पाठकों को गुदगुदाने के लिए लेकर आया हूं यह धारावाहिक । उम्मीद है कि आपको पसंद आयेगा । कृपया समीक्षा अवश्य करें । धन्यवाद।
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भाग 1 : लेडीज क्लब

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शीला चौधरी का अहाता दोपहर को आबाद होता था । जब लोग लंच के बाद आराम कर रहे होते हैं तब मौहल्ले की "बातूनी" औरतें शीला चौधरी के घर पर इकठ्ठे होकर गपशप करती हैं । दरअसल शीला चौधरी का मकान ठीक टी पॉइंट पर

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आज लाजो जी बड़ी परेशान थीं । शीला चौधरी के मकान के सामने ही कोने का मकान है उनका । चौधराइन और लाजो जी में बहुत शानदार पटती थी । यहां तक कि कामवाली बाई भी दोनों की एक ही थी । कामवाली बाई दीपिका पहले चौ

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भाग 4 : सिलेंडर

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अमोलक जी जैसे ही झाड़ू उठाकर बाहर जाने लगे तो लाजो जी ने उन्हें पीछे से पकड़कर खींचा "भगवान ने थोड़ी बहुत भी अक्ल नहीं दी है क्या ? पता नहीं किस मूर्खानंद ने आपको अफसर बना दिया ? गुण तो घास खोदन

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भाग : 5 : गंभीर समस्या

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आज शीला चौधरी के अहाते में "लेडीज क्लब" का मेला लग रहा था । कई दिनों के बाद आज लेडीज क्लब सरसब्ज हुआ था । इसलिए सब महिलाओं के चेहरे चमक रहे थे । कुछ तो गपशप करने के कारण और,कुछ मेकअप करने के कारण । कु

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भाग : 6 : आज नाश्ते में क्या बनाऊं मम्मी

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"आज नाश्ते में क्या बनाऊं,मम्मी" लाजो जी जैसे नींद से जाग पड़ी । इतनी मीठी आवाज ! उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि यह आवाज उसकी बहू रितिका की है । उसने कन्फर्म करने के लिये अपना चेहरा आवाज की ओर घुमाया । सा

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भाग -7 : ब्रेड पिज्जा और घाट की राबड़ी

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भाग 9 : रानी का महाराजा या हुक्म का गुलाम

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अमोलक जी कब से इंतजार कर रहे थे कि लाजो फोन पर बात करना बंद करे तो वे "घाट की राबड़ी" का सेवन करें । जब से चौधराइन जी ने घाट की राबड़ी भेजी है तब से उनका मन उसी में अटका हुआ है । इस चक्कर में तो उन्हो

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जब से लाजो जी ने सुना था कि चौधराइन की बहू मेघांशी "पेट से है" उनके दिमाग में लावा सा दौड़ने लगा । एक कहावत है न कि "पाड़ौसन खावे दही तो मो पै कब जावा सही" । जब पड़ौसन की बहू जो कि अभी दो साल पहले ही

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लक्ष्मी जी को अपनी कही हुई बात पर जवाब देते हुए नहीं बना तो यह कहते हुए बचने की कोशिश करने लगीं कि "एक बात बताओ जिज्जी कि पति के साथ घूमने में भी कोई आनंद आता है क्या ? अरे, एक ही सूरत देखते देखते बोर

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