लाजो जी की हालत खस्ता कचौरी जैसी हो गई । सारा काम उन्हें ही करना पड़ेगा , यह सोच सोचकर ही उनका दिल बैठा जा रहा था । काम करने की आदत रही नहीं । बस, अब तो सोशल मीडिया पर ही समय गुजरता है लाजो जी का । पर आज का दिन कैसे कटेगा , लाख टके का प्रश्न था ।
अचानक लाजो जी ने सामने देखा तो पाया कि अमोलक जी अखबार में आकंठ डूबे पड़े हैं । लाजो जी पहले से ही परेशान थीं और अमोलक जी को अखबार में निमग्न देखकर वे और परेशान हो गई । फिर वे गुस्से से आग बबूला हो गईं । उनका सारा गुस्सा अमोलक जी पर टूट पड़ा । वैसे भी धोबी का गुस्सा गधे पर ही उतरता है और पत्नियों के गुस्से पर तो पति का ही एकाधिकार है । इसलिए गुस्सा अपने रस्ते चल पड़ा ।
उधर, अमोलक जी लाजो जी के क्रोध से बेख़बर होकर अखबार पढने में मस्त थे ।
"कैसे घुसे पड़े हैं अखबार में कि इनको दीन दुनिया की कुछ खबर ही नहीं है । अरे इतना तो कोई आशिक किसी हसीना की आंखों में भी नहीं डूबता होगा । कोई पियक्कड़ किसी बोतल में भी नहीं घुसा होगा । कोई नेता किसी कुर्सी पे भी नहीं चिपकता होगा । और ये साहब सुबह से चाटे जा रहे हैं इस अखबार को । जरा ठहरो, अभी मजा चखाती हूं इन्हें" । लाजो जी मन ही मन भुनभुनाते हुए बोली ।
"अखबार चाट चाट कर ही पेट भर लोगे क्या ? कुछ नाश्ता वाश्ता करना भी है या नहीं ? पर नाश्ता बने तो बने कैसे ? दीपिका तो आई नहीं है और बेटी तथा बहू दोनों तान खूंटी सो रही हैं । अब आप ही बताइए कि नाश्ता कैसे बनेगा" ?
अमोलक जी को पता था कि घर में अगर कोई भी समस्या आती थी तो सबसे पहले उनका नाश्ता ही कट होता था । जैसे कि वह समस्या नाश्ता के कटने के लिए ही पैदा हुई थी । अब तो वे नाश्ता कटने के आदी हो चुके थे । किसी न किसी बहाने से महीने में कम से कम 15 दिन उनका नाश्ता कट जाता था । मगर अमोलक जी के चेहरे पर कभी शिकन की एक लकीर तक किसी ने नहीं देखी थी । इतना धैर्यवान व्यक्ति या तो कोई संत ही हो सकता है या फिर कोई अफसर । अमोलक जी अफसरों में संत हैं । मतलब , वैसे तो वे सरकारी अफसर हैं लेकिन प्रकृति से वे एक संत हैं ।
अफसर होने के कारण वे नेताओं की डांट तो खाते ही रहते हैं साथ में बॉस की फटकार का भी एक अलग ही आनंद है । और तो और , कभी कभी तो मातहत भी खूब खरी खोटी सुना जाते हैं उन्हें । पर क्या मजाल कि किसी ने उनके चेहरे पे कभी कोई परेशानी की एक भी लकीर देखी हो । वे जब प्रशासन के गुर सीख रहे थे तब उन्हें सबसे खास गुर यही बताया गया था कि "सुनो सबकी और करो मन की" । तो अमोलक जी ने इसे गांठ बांध कर अपने पास रख लिया और वे छोटे बड़े सबकी सुनते रहते हैं मगर करते वही हैं जो उनका मन कहे । इसलिए वे "लोढ़े" की तरह चिकने हो गये हैं । इस चक्कर में वे बहुत सी बातें तो सुनते ही नहीं हैं । मतलब कि एक कान से सुनते हैं तो दूसरे से निकाल बाहर करते हैं । और जो कुछ सुनते भी हैं उन्हें घोलकर पी जाते हैं । ऐसे हैं अमोलक जी । अब इनका कोई क्या बिगाड लेगा ?
लाजो जी ने देखा कि उनकी बातों का अमोलक जी पर कोई असर नहीं हुआ है और उनका तीर खाली चला गया है तो वे बिफर गईं । उनका सारा नजला अमोलक जी पर गिरने लगा "दीन दुनिया की खबर तो खूब रखते हो मगर घर में क्या हो रहा है , इसका अता पता नहीं है । ये तो मेरे ही करम फूटे थे जो मेरे पल्ले तुम जैसा "खड़ूस" आदमी पड़ा । ना घर के और ना घाट के । अब मेरी तरफ टुकुर टुकुर क्या देख रहे हो ? चलो उठो और मेरे साथ साथ काम करो " । लाजो जी ने आदेशात्मक भाषा में कहा ।
अमोलक जी ने अपना ध्यान अखबार से हटाकर लाजो जी पर सेन्टरलाइज कर लिया । चश्मे को उतारा और झाड़ पोंछकर साफ किया । फिर दुबारा से आंखों पर चढाते हुए बोले
"लगता है कि आज मूसलाधार बारिश होने वाली है । टीया, बेटा मेरा छाता तो लाना" । बडे ही शांत भाव से कहा था अमोलक जी ने ।
छाते का नाम सुनकर लाजो जी और उखड़ गई । तुनक कर बोलीं "मूसलाधार बारिश के साथ ओले भी पड़ने वाले हैं । जरा अपने सिर को बचाना, नहीं तो आधे से पूरे गंजे आज ही हो जाओगे । और हां , वो दीपिका आज नहीं आई है इसलिए आज तुम्हें झाड़ू पोंछा करना है । चलो, शुरू हो जाओ अब । और देर मत करो " । अमोलक जी के हाथ में झाड़ू पकड़ाते हुए लाजो जी ने कहा ।
अमोलक जी ठहरे अफसरों में संत आदमी । मतलब ऐसे अफसर कि जिन्हें दो गाली भी दे दो तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है । तो वे चुपचाप उठे और झाड़ू उठाकर बाहर की ओर जाने लगे ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
19.5.22