अमोलक जी जैसे ही झाड़ू उठाकर बाहर जाने लगे तो लाजो जी ने उन्हें पीछे से पकड़कर खींचा "भगवान ने थोड़ी बहुत भी अक्ल नहीं दी है क्या ? पता नहीं किस मूर्खानंद ने आपको अफसर बना दिया ? गुण तो घास खोदने के भी नहीं हैं आप में । ये तो मैं हूं इसलिए गृहस्थी की गाड़ी चल रही है वर्ना तो यह न जाने कब की कबाड़खाने की शोभा बढाती" ?
"अब मैंने क्या किया है जी" ? बड़ी ही मासूमियत से अमोलक जी ने पूछा ।
"किया नहीं है पर करने जा रहे थे"
"क्या" ?
"गुड़ गोबर और क्या" ।
अमोलक जी लाजो जी को आश्चर्य से देखते ही रह गए । पिछले तीस साल से वे दोनों साथ साथ रह रहे हैं लेकिन उनको लगता है कि लाजो जी को वे आज भी पूरी तरह से जान नहीं पाये हैं । पता नहीं और कितने जन्म लेने पड़ेंगे इन्हें जानने के लिए ? वे मन ही मन सोचने लगे कि ये औरतें इतनी रहस्यमई क्यों होती हैं ? एक जन्म में तो इन औरतों को जानना संभव ही नहीं है । लाजो जी कहना क्या चाहती हैं ये उनके समझ में नहीं आ रहा था । उन्होंने प्रश्न वाचक निगाहों से लाजो जी की ओर देखा ।
"मुझे पता था कि यह गुत्थी आपसे सुलझने वाली नहीं है इसलिए मैं ही बता देती हूं । आप अगर बाहर जाकर झाड़ू लगायेंगे तो लोग आपको देखकर क्या सोचेंगे ? इतने बड़े अफसर और घर में झाड़ू लगा रहे हैं ? कॉलोनी में आपकी तो कोई इज्जत है नहीं , मगर मेरी तो है न ? उसका क्या होगा ? सोचा है आपने कभी ? अगर मैं नहीं टोकती तो कर देते न गुड़ गोबर ? अरे, अब खड़े खड़े मेरी तरफ क्या देख रहे हो ? घर के अंदर की सफाई करो । मैं बाहर की करती हूं । बाहर मुझे सफाई करते हुए कोई देखेगा तो कहेगा "कितनी महान हैं भाभीजी आप ! आज के जमाने में भी आप अपने नाजुक हाथों से झाड़ू लगा रही हो" । तब पूरी कॉलोनी में मेरी साख कितनी बढ़ जायेगी ? और लेडीज क्लब में तो मुझे इस अभूतपूर्व काम के लिए सम्मानित भी किया जा सकता है । लोग कोई अंदर आकर देखने वाले तो हैं नहीं इसलिए किसी को पता भी नहीं चलेगा कि अंदर की सफाई आपने की है । लोग तो यही सोचेंगे कि अंदर की साफ-सफाई भी मैंने ही की है । चलो, अब फटाफट शुरू हो जाओ" । और लाजो जी झाड़ू उठाकर बाहर चली गई । अमोलक जी भी अपने मिशन में जुट गये ।
लाजो जी धीरे धीरे साफ सफाई करने लगीं । जितना ज्यादा समय सफाई में लगेगा उतने ही ज्यादा लोगों को पता भी चलेगा कि लाजो जी सफाई करती हैं । लाजो जी मन ही मन मुस्कुरा रही थीं ।
लाजो जी को बाहर सफाई करते देखकर उनके पड़ोसी दिलफेंक चंद जी बड़े अपसेट हुए और कहने लगे
"अरे भाभीजी, ये क्या गजब कर रही हैं आप ? हमार रहते हुए आप सफाई करेंगी ? हम मर गए हैं क्या भाभीजी ? हम अपने जीते जी यह पापकर्म आपको करने नहीं देंगे" । लाजो जी के पड़ोसी दिलफेंक चंद जी ने लाजो जी के हाथ से झाड़ू लेते हुए कहा ।
"अरे नहीं भाईसाहब, ये तो अपने घर का काम है । इसमें शर्म कैसी ? आप रहने दीजिए। मैं सब कर लूंगी" ।
"ऐसे कैसे कर लेंगी आप ? हमारे रहते हुए आप झाड़ू कैसे लगा सकती हैं , भाभीजी ? हम मर गए हैं क्या ? आपको मेरी कसम भाभीजी । हमें बहुत अच्छा अनुभव है झाड़ू पोंछा करने का । वो क्या है न कि हमारी बेगम को सफाई का बड़ा शौक है । उन्होंने हमें बहुत अच्छे से सिखा दिया है झाड़ू पोंछा करना । अपने घर की सफाई हम ही करते हैं रोज । एक बार हमें भी तो सेवा का अवसर दीजिए ना भाभीजी । आपको शिकायत का अवसर नहीं देंगे हम" ।
दिलफेंक जी के इतने आग्रह को लाजो जी कैसे ठुकरा सकती थी ? इसलिए उन्होंने झाड़ू दिलफेंक जी को दे दी और वे उनके काम का मुआयना करने लगीं ।
दिलफेंक जी को झाड़ू लगाते हुए अभी कुछ ही समय हुआ होगा कि सामने से उनकी पत्नी ललिता आ गई । लाजो जी को खतरे का आभास हो गया और उन्होंने खतरे का सायरन बजाते हुए कहा "बस, अब रहने दीजिए दिलफेंक जी । अब मैं कर लूंगी । आप जाइए" ।
दिलफेंक जी कुछ समझ पाते इससे पहले ही उनकी निगाहें सामने खड़ी अपनी पत्नी ललिता पर जा पड़ी । दिलफेंक जी की सांसें जहां थीं वहीं पर ही अटक गई । घबराहट में हाथ से झाड़ू भी छूट गई । जबान तालू से चिपक गई और नब्ज थम सी गई । वे कुछ कह पाते इससे पहले ही ललिता शेरनी की तरह दहाड़ उठी
"मुझसे तो कहते थे कि झाड़ पोंछा करना आता नहीं और यहां तो दालान के दालान साफ हो रहे हैं । चलो, घर चलो अभी । वहां जाकर सिखाती हूं आज मैं तुम्हें " ! ललिता दांत पीसते हुए बोली ।
दिलफेंक जी अपनी दुम हिलाते हुए कहने लगे "भाग्यवान, मैं तो भाभीजी से सीख रहा था झाडू पोंछा करना । भाभीजी बड़ी अच्छी तरह से सिखाती हैं । मैं तो आज की ट्रेनिंग में ही सब कुछ सीख गया हूं" । दिलफेंक जी लाजो जी की ओर देखते हुए बोले "क्यों , है ना भाभीजी" ?
"बहुत अच्छा हुआ जो आज तुमने ये सब सीख लिया । जो कुछ बाकी रह गया है वह मैं सिखा दूंगी आज" । और ललिता जी दिलफेंक जी को धकियाते हुए ऐसे ले चलीं जैसे कि वे किसी सांड को हांक कर ले जा रही हो ।
लाजो जी अपने मिशन में एक बार फिर से जुट गई । आधी से ज्यादा सफाई हो चुकी थी । इतने में लाजो जी के कानों में लक्ष्मी की आवाज सुनाई दी " राम राम जिज्जी" ।
लाजो लक्ष्मी को अवोइड करना चाह रही थी इसलिये उसने लक्ष्मी की राम राम को सुनकर भी अनसुना कर दिया था ।
"जिज्जी राम राम । हम आपसे ही कह रहे हैं लाजो जिज्जी" । अब बचने का कोई बहाना नही था लाजो के पास में ।
"राम राम जी राम राम । आज सुबह सुबह ये सिलेंडर लेकर कहां जा रही हो " ? लक्ष्मी के हाथों में सिलेंडर देखकर लाजो बोली ।
"और कहां जायेंगे जिज्जी, आपके पास ही आ रहे थे । मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक । हमारी संकटमोचक तो आप ही हो । जैसे हारे का सहारा खाटू धाम वैसे ही लक्ष्मी का सहारा लाजो नाम" । अच्छी तुकबंदी बन गई थी अपने आप ही । वाह लक्ष्मी, वाह ।
"पर हमारे पास तो सिलेंडर है । अभी हमें जरूरत नहीं है" । लाजो ने आश्चर्य से पूछा ।
"अरे नाय जिज्जी। आपको नहीं हमें जरूरत है । इसीलिए तो आपकी शरण में आये हैं आपकी । अब देखो मना मत करना । गैस बिल्कुल खतम है गई है । चाय भी आधी ही खौली है अभी । अब जल्दी से सिलेंडर दे दो । जब हमारो भर कै आ जायगो तब हमऊ वापस कर देहैं" । इतना कहकर लक्ष्मी सिलेंडर लेकर अंदर घुसने लगी ।
अचानक लाजो जी को ध्यान आया कि अंदर तो "साहब" झाड़ू पोंछा कर रहे हैं । अगर लक्ष्मी ने देख लिया तो ये तो पूरी कॉलोनी में ऐसा ढिंढोरा पीटेगी कि बच्चे बच्चे को भी खबर हो जायेगी कि अमोलक जी झाड़ू पोंछा करते हैं घर में । तब लाजो की क्या इज्जत रह जायेगी "लेडीज क्लब" में ? लाजो ऐसा किसी भी कीमत पर नहीं होने देना चाहती थी । वक्त बहुत कम था क्योंकि लक्ष्मी लगभग आधी दूरी पार कर चुकी थी ।
"अरे रुको तो, वहां कहां भागी जा रही हो ? वहां ड्राइंग रूम में साहब सो रहे हैं" । लाजो से इतना ही बन पाया था ।
"अरे , भाईसाहब अभी तक सो ही रहे हैं ? कल रात को देर तक जागे थे क्या आप दोनों ? इस उमर में भी रोज रात में "दंगल दंगल" खेल लेती हो का जिज्जी ? हमारे ये तो बड़ी जल्दी "टें" बोल गये । हमने इन्हें एक "मर्दानी ताकत वाले डॉक्टर साहब" को दिखाया । उन्होंने एक गोली ऐसी दी कि अब रोज "घोड़ा पछाड़" खेल खेलते हैं । मेरी मानो तो आप भी भाईसाहब को उन डॉक्टर साहब को दिखा दो । फिर देखना , कैसे फुदकते हैं भाईसाहब" ? चहकते हुए लक्ष्मी बोली
"अरे नहीं रे । तुम भी न जाने कहां की बात कहां ले जाती हो । इन्हें गोली वोली की जरूरत नहीं पड़ी है आज तक । ये तो वैसे ही "पाठा" हैं । वो ऐसा है कि ये सुबह जल्दी उठकर मॉर्निंग वॉक पर जाते हैं । फिर वापस आकर नाश्ता करके सो जाते हैं" ।
"तो सोते रहने दो उन्हें । हमें उनसे क्या लेना देना ? सोते हुए हमारा क्या बिगाड़ लेंगे वे" । लक्ष्मी ने पूरे विश्वास के साथ कहा ।
"अरे पागल , बात यह नहीं है कि वे कुछ बिगाड़ेगे या नहीं । बात ये है कि वे थोड़ा खुलकर सोते हैं" । लाजो जी थोड़ा शर्माते हुए बोलीं ।
"खुलकर ? मैंने पहली बार सुना है कि खुलकर भी सोया जाता है" ?
"हां, वो ऐसे ही सोते हैं । मतलब अंडरवियर औरबनियान में" । लाजो सकुचाते हुए बोली
यह सुनते ही लक्ष्मी बुक्का फाड़कर हंस पड़ी । "बस इत्ती सी बात जिज्जी । हमारे ये तो केवल अंडरवियर ही पहनकर सोते हैं । मुझे भाईसाहब से क्या लेना है ? उन्हें सोने दो । मैं सिलेंडर लेकर अभी आई" ।
अब सारा भांडा फूटने ही वाला था कि लाजो ने जोरदार डांट लगाते हुए कहा
"चुप । एकदम चुप । कब से बक बक किये जा रही हो । हम प्रेम से समझा रहे हैं मगर समझ में ही नहीं आ रहा है । वहीं ठहरो । हम लेकर आते हैं सिलेंडर । और हां , खबरदार जो एक कदम भी आगे बढाया । पैर तोड़कर रख देंगे हां" । लाजो जी चुपचाप घर में अंदर गई और एक सिलेंडर लेकर बाहर आ गई । लक्ष्मी चुपचाप से सिलेंडर लेकर चली गई ।
अब जाकर लाजो की जान में जान आई । ये लक्ष्मी भी न जाने कब आ टपकती है , पता ही नहीं चलता है । आज तो भगवान ने बाल बाल बचा लिया , वरना मिट्टी पलीत होने में कोई कसर नहीं रह गई थी । लाजो अपना काम करने में व्यस्त हो गई ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
20.5.22