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भाग 10 : सेमीनार

7 जून 2022

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अमोलक जी घाट की राबड़ी का आनंद लेने लगे । उनकी इच्छाओं का भी ध्यान रखने वाला कोई तो इस दुनिया में है यह जानकर उन्हें बहुत खुशी हुई । उनके मन में शीला चौधरी के लिए कितना सम्मान है, कोई उनके हृदय में उतर कर देखे तो पता चले । एक वही तो हैं जो उनका इतना ध्यान रखती हैं । उन्हें मान सम्मान देती हैं । वर्ना तो लाजो जी , उनकी इच्छाओं के एकदम उलट काम करती हैं । जरा सा कुछ कह दो तो बात का बतंगड़ बनाकर पूरा मौहल्ला सिर पर उठा लेती हैं । ऐसे हालात में समझदार आदमी बस एक ही काम करता है , वह चुपचाप बैठ जाता है । अमोलक जी भी यही करते हैं । बला से पीछा छुड़ाने का एक यही राम बाण है तरीका है । पूरा आजमाया हुआ ।
लाजो जी की बेटी टीया अभी एम बी ए कर रही है । दिन भर अपने कमरे में ही घुसी रहती है । आजकल ऑनलाइन क्लासेज होती हैं इसलिए कमरे में ही क्लासेज अटेंड करती है और कमरे में ही होम वर्क कर लेती है । किसी को पता ही नहीं चलता है कि वह ऑनलाइन क्लास अटेंड कर रही है या ऑनलाइन इश्क के पेंच भी लड़ा रही है । हर्ष से उसकी पहचान सोशल साइट्स पर ही हुई थी । उसका व्यक्तित्व टीया को पसंद आ गया था । वह उसे अपना दिल दे बैठी थी । हर्ष है ही ऐसा कि हर कोई लड़की उस पर रीझ जाये । हर्ष को भी टीया भा गई  । रोज दोनों घंटों चैट करते थे । टीया अपने कमरे में रहकर पढती कम थी और चैट ज्यादा करती थी । उसका अधिकांश समय तो हर्ष के साथ चैटिंग में ही गुजरता था ।

अचानक उसका मोबाइल बज उठा । हर्ष का फोन था 
"तुमसे कितनी बार कहा है यार कि घर पर फोन मत किया करो , पर तुम मानते ही नहीं । किसी दिन मम्मा पकड़ लेंगी ना तो वे फोन छीन लेंगी मुझसे । फिर तुम बात करने को भी तरस जाओगे मुझसे । इसलिए जितना मिल रहा है उसी में गुजारा कर लो , वर्ना इससे भी हाथ धोना पड़ सकता है । समझे मेरे शोना बाबू" । टीया बनावटी गुस्से से बोली । हालांकि वह भी उससे बात करना चाहती थी , मगर लाजो जी का डर था इसलिए ज्यादातर वह चैट ही करती थी । 

"तरस गये हैं यार तेरे दर्शन को । और कितना तरसाओगी जाना ? अब रहा नहीं जाता है, यार । कितने दिन हो गये हैं तुमसे मिले हुए ? आज आ जाओ ना एलीमॉन्ट मॉल में । साथ में कुछ बर्गर वगैरह खा लेगें और चोंच भी लड़ा लेंगे । "किस" करे हुए भी एक जमाना बीत चुका है । कब तक अपने होठों को समझाएं । झूठी दिलासा दे देकर थक गया हूं । अब तो होंठ मेरी बात भी नहीं सुनते हैं । वे समझ गये हैं कि मैं ऐसे ही बकवास करता रहता हूं । इसलिए वे मेरे से नाराज हैं । अब तो इनको जब तुम्हारे नाजुक से लबों का अमृत मिलेगा तभी राजी होंगे ये । वर्ना तो भूख हड़ताल पर बैठे हैं दोनों" । हर्ष की बातों में कितनी बेचैनी थी , यह टीया अच्छी तरह महसूस कर रही थी । 

"थोड़ा सब्र से काम लो यार । मैं भी तो बेचैन हूं तुमसे मिलने के लिये । मेरी बांहें भी तो तरस रही हैं तुम्हारी बांहों का झूला झूलने के लिए । लेकिन सब्र रखना पड़ता है यार । जल्दबाजी में काम बिगड़ने का खतरा है मेरी जान । मैं कुछ करती हूं इंतजाम । थोड़ा सा "वेट" करो अभी , हूं" । टीया ने हर्ष को बच्चो की तरह दिलासा देते हुए कहा । 

और टीया सोचने लगी कि क्या इंतजाम किया जाये ? जब पैर फंसे पड़े हों तब दोस्त लोग बहुत काम आते हैं । उसे अपनी खास सहेली रिया का ध्यान आया । किस तरह उसको उसके ब्वाय फ्रेंड से मिलवाने के लिए टीया ने उसकी मम्मी को झूठ बोला था कि आज कॉलेज में एक सेमीनार है और उसमें सबको भाग लेना है । उसके फोन करने से उसकी मम्मी को यकीन हो गया कि वाकई में कॉलेज में कोई सेमीनार है । इसलिए उन्होंने रिया को जाने दिया नहीं तो घर में पड़ी पड़ी सड़ रही थी वह । तो आज क्यों नहीं रिया को कर्ज उतारने का मौका दिया जाये ? 

टीया ने रिया को फोन लगाया "कैसी है मेरी जान" ? 
"झक्कास । और तू बता" ? 
"अपने तो बड़े खराब हालात हैं यार" 
"क्यों, क्या हुआ" ? 
"अरे , होना क्या है ? वही सेमीनार" 
"सेमीनार,  कौन सी सेमीनार" ? 
"अच्छा बच्ची , याद दिलाना पड़ेगा सब कुछ" ? 
"अरे हां, याद आ गया । पर ये बता , ये सेमीनार कहां मिल गई तुझे" ? 
"बस, मिल गई यार सोशल साइट्सपर ही । बड़ी खूबसूरत है । देखेगी तो कहेगी कि क्या मैदान मारा है । अब ज्यादा बोर मत कर । सेमीनार अरेंज करवा दे, बस । बहुत भला होगा तेरा , जानी" । राजकुमार स्टाइल में उसने कहा । 
"बस इत्ती सी बात ? अभी करवाती हूं । हम जैसे दोस्त इसी काम के लिए ही तो बने हैं । टाइम बता" ? 
"यही कोई चार से छ : पी एम" । 
"तीन घंटे तो साथ में रह ले कम से कम । कोई मूवी ही देख लेना कम से कम" । 
"पागल है क्या ? इस बेशकीमती समय को मूवी में क्यों बरबाद करें हम " ? 
"हां, ये बात भी सही है यार । तो फिर  कहां जा रहे हो" ? 
"किसी मॉल  में चले जाएंगे । थोड़ी गपशप कर लेंगे । किसी विशी कर लेंगे और कुछ खा पी लेंगे" । 
"ये ठीक रहेगा । तो मैं आंटी जी को "सेमीनार" के लिए फोन करूं" ? 
"हां, कर दे" । 

थोड़ी देर बाद जब टीया अपने कमरे से बाहर आई तो लाजो जी ने कहा "टीया , तेरी आज सेमीनार है और तूने बताया भी नहीं ? क्या जाना नहीं है तुझे उसमें" ? 
"नहीं मॉम , मैं बताने ही वाली थी अभी । इतनी देर में आपने पूछ लिया । पर मैं सोच रही हूं कि आज नहीं जाऊं उस सेमीनार में" । 
"क्यों, क्या हो गया जो मना कर रही है" 
"हुआ कुछ नहीं , बस ऐसे ही मन नही है, मॉम । वैसे भी सेमीनार में कुछ होता वोता तो है नहीं, बस टाइम वेस्ट ही करते हैं हमारा" । 
"नहीं, चाहे कुछ हो या नहीं , तुम्हें सेमीनार में जाना है तो जाना है । समझी" ? 
"आप कहती हैं तो चली जाऊंगी वरना मेरी तो जरा सी भी इच्छा नहीं है मम्मा" । बड़े इत्मीनान से टीया ने कहा । वह होठों पे आने वाली हंसी को कैसे रोक रही थी, यह वह खुद ही जानती थी । 

सही समय पर टीया "सेमीनार" के लिए चल पड़ी । रास्ते से ही उसने रिया को धन्यवाद दे दिया । आज की "सेमीनार" में बड़ा मजा आने वाला था । 

क्रमश : 

हरिशंकर गोयल " हरि" 
7.6.22

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रचनाएँ
बहू पेट से है
5.0
एक परिवार और आसपास के मौहल्ले में रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाली घटनाओं , बातों और कथाओं से हास्य पनपता है । हास्य कभी भी अकेला नहीं होता है उसके साथ व्यंग्य उसी तरह चिपका होता है जैसे किसी लड़की पर किसी आशिक की दो आंखें चिपकी होती हैं । बात में से बात निकालने की कला में महिलाओं ने महारथ हासिल कर रखी है और,उसी कला का भरपूर प्रयोग कर पाठकों को गुदगुदाने के लिए लेकर आया हूं यह धारावाहिक । उम्मीद है कि आपको पसंद आयेगा । कृपया समीक्षा अवश्य करें । धन्यवाद।
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