कोर्ट के बाहर टँगे बोर्ड मेंसरसरी निगाहें जमाये बगल में फ़ाइल थामेकभी वादी कभी प्रतिवादी पक्षकार के मर्म को जाने तर्कों वितर्कों के संजोते जाले उधेड़ते बुनते संवरते
न्याय के मायने बरसात की पहली बारिश सरीखे लगते हैं बारिश कभी बुलाती है कभी भीगाती है कभी रुकवाती है कभी मुस्कुराती है कभी डराती है तोकभी घबराती है वहीँ
यह कौन -सा विकास हो रहा है ...? जहाँ ,गलत को सही ,और ,सही को दबा देने का प्रयास हो रहा है !वे कहते हैं ,साक्षरता बढ़ रही है । समाज की कुंठित सोच तो आज भी पनप रही है ।औरत आज भी है ,मात्र हाड़ -माँस की कहानी , शरीर की भूख मिटा , जिसे रौंद कर मिटा देने में है आसानी!हाँ ,यह लोकतंत्र है ...!अंधा क़ानून सबूत
6 दिसम्बर सुबह जैसे ही टीव्ही पर हैदराबाद की रेप पीडि़ता ‘‘दिशा’’ की वीभत्स हत्या के चारों अभियुक्तों के एनकाउंटर में मारे जाने की खबर आयी, लगभग पूरे देश में एक अजीब सी खुशी का माहौल पसर गया। तब से चारांे तरफ अधिकांश खुशी ही खुशी व्यक्त करते हुये एक ही आवाज आ रही है कि ‘‘इंसाफ’’ मिल गया है। देश में
सच रो रहाशिक्षित प्रशिक्षितधरना और जेल मे।नेता अभिनेतासंसद और बुलट ट्रेन मे।एमेड बीएडतले पकोड़ा खेतवा की मेड़ मे।योगी संत महत्मासेलफ़ी लेवे गंगा की धार मे।बोले जो हककी बात वह भी जिला कारागार मे।बोले जो झूठमूठ वह बैठे सरकारी जैगुआर मे।कर ज़ोर जबरदसतीन्याय को खा जाएंगे।की अगर हककी बात तो लाठी डंडा खा जाएं
इस चुनावी समर का हथियार नया है। खत्म करना था मगर विस्तार किया है। जिन्न आरक्षण का एक दिन जाएगा निगल, फिलहाल इसने सबपे जादू झार दिया है। अब लगा सवर्ण को भी तुष्ट होना चाहिए। न्याय की सद्भावना को पुष्ट होना चाहिए। घूम फिर कर हम वहीं आते हैं बार बार, सँख्यानुसार पदों को संतु
श्री अरविन्द अलीपुर बम केस में एक आरोपी थे. अपनीपुस्तक, ‘टेल्स ऑफ़ प्रिज़न लाइफ’, में उन्होंने इस मुक़दमे का एक संक्षिप्त वृत्तांतलिखा है. यह वृत्तांत लिखते समय उन्होंने ब्रिटिश कानून प्रणाली पर एक महत्वपूर्णटिपण्णी की है.उन्होंने लिखा है कि इस कानून प्रणाली का असली उद्देश्ययह नहीं है की वादी-प्रतिवादि
समाचार आया है -"इसरो के वैज्ञानिक को मिला 24 साल बाद न्याय"न्याय के लिये दुरूह संघर्ष नम्बी नारायण लड़ते रहे चौबीस वर्ष इसरो जासूसी-काण्ड में पचास दिन जेल में रहे पुलिसिया यातनाओं के थर्ड डिग्री टॉर्चर भी सहे सत्ता और सियासत के खेल में प
विश्व अंतर्राष्ट्रीय न्याय दिवस जिसे अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्याय या अंतर्राष्ट्
आज गम्भीर बातें नहीं हो रही हैं न समाज में न संसद में | जिनको देश को दिशा देनी चाहिये वो दिशाहीन हो गये हैं | दिशाहीन लोग समाज को दिशा नहीं दे पाते | मेरे जैसे आदमी को इस काम में लगना पड़ा ये मैं खुशी से नहीं लगा, देश की परिस्थितियाँ, देश के हालात, बढ़ते हुए अंतर्राष्ट्री