नई दिल्ली: पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है। यह बात देवेंद्र झांझड़िया पर फिट बैठती है। कभी एक्सीडेंट में हाथ गंवा देने वाले देवेंद्र से आज देश की सवा अरब आबादी रियो में होने जा रहे पैराओलंपिक में एक अदद मेडल की उम्मीद संजोए है। ओलंपिक बीतने के बाद अब फिर रियो में सात सितंबर से पैराओलंपिक की धूम मचने जा रही है। जिसमें राजस्थान का यह खिलाड़ी जेवलिन थ्रो में हिस्सा लेगा।
डॉक्टरों को काटना पड़ा उनका हाथ
1981 में चूरू में पैदा हुए देवेंद्र तब आठ साल के थे, जब उनका हाथ काटा गया, अपने गांव में वो पेड़ पर चढ़ रहे थे अचानक उन्हें करंट लग गया। जिसकी वजह से डॉक्टरों को उनका हाथ काटना पड़ा। देवेंद्र ने हिम्मत नहीं हारी और खेल ों में अपनी दिलचस्पी को और बढ़ाया। साधनों के अभाव में वह शुरू में खेतों से सरकंडे तोड़ा करते थे और उन्हें भाले की तरह फेंक कर अभ्यास किया करते थे। सुविधाओं की कमी के बीच उन्होंने खेजड़ी पेड़ की लकड़ियों से भाला बनाकर प्रैक्टिस शुरू की। 10वीं की पढ़ाई के लिए एक डिस्ट्रिक्ट टूर्नामेंट में उन्होंने नॉर्मल बच्चों से प्रतियोगिता करते हुए पहली बार गोल्ड मेडल जीता। फिर उन्होंने मुड़कर नहीं देखा। 10वीं पास करने के बाद कोच आरडी सिंह अपने साथ हनुमानगढ़ कस्बे में ले आए और नेहरू कॉलेज में एडमिशन कराकर उनकी कोचिंग शुरू करा दी और उनकी कला में लगातार निखार आता गया।
पहली बार जीता पैरा ओलम्पिक में गोल्ड
साल 2002 में कोरिया में हुए खेलों में उन्होंने जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। फिर 2003 में ब्रिटिश थ्रो, ट्रिपल जंप और शॉटपुट में 3 गोल्ड जीत वह सबकी नजरों में चढ़ गए। इसके बाद 2004 में एथेंस पैरा ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता और 62.15 मीटर जेवलिन फेंक कर विश्व रिकॉर्ड बनाया था। 2004 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से और 2012 में पद्मश्री अवॉर्ड से नवाजा गया।
बच्चे भी पढ़ेंगें उनकी कहानी
देवेंद्र के संघर्ष की कहानियां अब बच्चे अपने पाठ्यक्रम में पढ़ेंगे। एसआईईआरटी के नए पाठ्यक्रम के मुताबिक राज्य पाठ्यपुस्तक मंडल ने चौथी क्लास की अंग्रेजी की किताब में देवेंद्र की कहानी को शामिल किया है। राजस्थान पाठ्यपुस्तक मंडल की ओर से प्रकाशित चौथी क्लास की अंग्रेजी की किताब में वर्ल्ड रिकॉर्डधारी जेवलिन थ्रोअर देवेंद्र की कहानी ‘इच वन इज यूनीक’ शीर्षक से शामिल की गई है।