मन में किसी का अहित न सोचना, किसी को कटुवाणी आदि के द्वार भी नुकसान न देना तथा कर्म से भी किसी भी अवस्था में, किसी भी प्राणी कि हिंसा न करना, यह अहिंसा है। जैन धर्म एवं हिन्दू धर्म में अहिंसा का बहुत महत्त्व है। जैन धर्म के मूलमंत्र में ही अहिंसा परमो धर्म: (अहिंसा परम (सबसे बड़ा) धर्म कहा गया है।
भगवान महावीर की मूल शिक्षा है- 'अहिंसा'। सबसे पहले 'अहिंसा परमो धर्मः' का प्रयोग हिंदुओं का ही नहीं बल्कि समस्त मानव जाति के पावन ग्रंथ 'महाभारत' के अनुशासन पर्व में किया गया था। लेकिन इसको अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलवाई भगवान महावीर ने।
गांधी जी के अनुसार, " अहिंसा हमें एक दूसरे से और ईश्वर से बांधती है। अहिंसा और प्रेम एक ही चीज है " (1968:17)। प्रेम का अर्थ है आत्म-बलिदान की भावना। गांधी जी का मानना था कि सभी प्राणियों के साथ प्रेम संभव है क्योंकि मनुष्य या जीवित प्राणी एक अंतर्निहित ईश्वर की अभिव्यक्ति हैं।
अहिंसा परमो धर्म का अर्थ
व्याख्या : अहिंसा मानवों का परम धर्म है, किंतु धर्म की रक्षा के लिये हिंसा करना अहिंसा नही है। अर्थात- धर्म की रक्षा के लिये हिंसा करना पाप नही पुण्य है। धर्म के रक्षा हेतु, आप अहिंसा के मार्ग पर चल सकते है। धर्म के रक्षा के लिये की जाने वाली हिंसा, हिंसा की श्रेणी मे नही आता।
आधुनिक काल में महात्मा गांधी ने भारत की आजादी के लिये जो आन्दोलन चलाया वह काफी सीमा तक अहिंसात्मक था।