नई दिल्ली : भारत के बाद अब हैकर्स ने सऊदी अरब के सेंट्रल बैंक पर बड़ा हमला बोला है। वहीँ 8 नवंबर को नोटंबदी की घोषणा के बाद से लोगों ने अपने डेबिट कार्ड से पेटीएम जैसी डिजिटल वॉलेट कंपनियों के जरिये 3.5 करोड़ का लेनदेन किया। केंद्र सरकार अब नोटों की छुट्टी कर कैशलेस इकॉनोमी की तरफ बढ़ रही है। 500 और 1000 ने पुराने नोट बंद किये जाने के बाद नोटों के संकट में सरकार लोगों से अपील कर रही है कि वह डिजिटल लेनदेन का रास्ता अपनाएं। भारत में डिजिटल लेनदेन के लिए तामाम निजी कंपनियों के ई-वॉलेट ऐप पेटीएम, फ्रीचार्ज और मोबिक्विक जैसे आप लोगों के भुगतान का हिस्सा बन गए हैं।
क्या सुरक्षित हैं डिजिटल लेनदेन का रास्ता ?
सरकार लोगों को लेनदेन का जो रास्ता बता रही है क्या वह रास्ता सुरक्षा के लिहाज से सही है, यह सवाल इसलिए क्योंकि महज कुछ महीने पहले 5 बैकों के 25 लाख खाता धारकों के डेबिट कार्ड पिन छोटी हो गए थे। इन बैंकों में लगभग देश के सभी बड़े बैंक SBI, एचडीएफसी, आईसीआईसीआई, येस बैंक और एक्सिस बैंक शामिल थे। बैंकों ने डेबिट कार्ड पिन चोरी होने का कारण डिजिटल लेनदेन बताया था।
अब अमेरिका की साइबर सिक्योरिटी कंपनी फायरआई ने भारतीय बैंकों पर हुए साइबर अटैक के बारे में बड़ा खुलासा किया है। अमेरिकी कंपनी का कहना है कि साइबर अपराधियों द्वारा बनाई गई मैलिशियस फिशिंग वेबसाइट ने 26 भारतीय बैंकों के कस्टमर्स की अहम सूचनाएं हैक की थीं। कंपनी ने बताया की ऑनलाइन बैंकिंग सिस्टम से किसी भी क्रेडिट या डेबिट कार्ड को महज 6 सेकंड में हैक किया जा सकता है।
भारत में डिजिटल लेनदेन पर नही है कानून
देश में उपभोक्ताओं की निजता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कोई कानून नहीं है और डिजिटल लेनदेन में साइबर सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने वाले अधिकांश उपायों को सूचना प्रौद्योगिकी कानून के दायरे में रखा गया है। भारतीय रिजर्व बैंक देश में बैंकों के लिए सुरक्षा और निजता संबंधी मानक बनाता है लेकिन पेटीएम, फ्रीचार्ज और मोबिक्विक जैसे डिजिटल वॉलेट गैर बैंकिंग वित्तीय निगम की श्रेणी में आते हैं और आरबीआई के दायरे से बाहर हैं।
फिनटेक (वित्त क्षेत्र से जुड़ी तकनीकी कंपनियां) सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 43 ए के दायरे में आती हैं। मोबाइल वॉलेट सेवा प्रदाता और उपयोगकर्ता के बीच महज एक संविदात्मक समझौता है जिसे कभी भी तोड़ा जा सकता है। 'भारत में डिजिटल भुगतान में निजता और सुरक्षा के मूलभूत कानूनों के अभाव में ऐसी सेवाओं के इस्तेमाल की जिम्मेदारी पूरी तरह उपभोक्ता पर आ जाती है। हालांकि सरकार ने इस मुद्दे को पूरी तरह नजरअंदाज नहीं किया है लेकिन डिजिटल भुगतान सेवाओं में वर्चुअल सेंडबॉक्स बनाने जैसे प्रस्तावों पर सवाल खड़े हुए हैं।