लखनऊः उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व मध्य प्रदेश के गवर्नर रह चुके रामनरेश यादव का निधन हो गया। उन्होंने लखनऊ के पीजीआई में आखिरी सांस ली। वे काफी दिनों से सांस लेने में तकलीफ का सामना कर रहे थे। गांधी का शिष्य होने के कारण रामनरेश हमेशा सिर पर गांधी टोपी लगाए रहते थे। जबकि आज के दौर में शायद ही कोई बड़ा कांग्रेसी नेता ही गांधी टोपी धारण करता हो।
किसानों का नेता उभरकर बने थे 1977 में मुख्यमंत्री
1928 में आजमगढ़ में पैदा हुए रामनरेश को राजनीति विरासत में मिली। उनके पिता महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया के अनुयायी रहे। रामनरेश यादव ने बीएचयू से एलएलबी की पढ़ाई की और छात्रसंघ की राजनीति से जुड़ गए। इस दौरान जौनपुर के पट्टीनरेंद्रपुर इंटर कॉलेज में प्रवक्ता की नौकरी भी लगी। मगर बाद में 1953 में आजमगढ़ में वकालत शुरू कर दिया। फिर बढ़े नहर रेट, किसानों की जमीनों, मजदूरों को उनका हक दिलाने, जाति तोड़ो आदि अभियानों का आंदोलन चलाया। इससे रामनरेश जिले में चर्चित हो गए। 1975 से 1977 के बीच आपातकाल के दौरान वे आजमगढ़ जेल और केंद्रीय कारागार नैनी, इलाहाबाद में बंद रहे। चौधरी चरण सिंह की बदौलत 1977 में पहली बार रामनरेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे।
जीवनभर बेदाग रहे रामनरेश के दामन पर आखिरी समय लगा व्यापमं का दाग
यूं तो गांधी टोपी हमेशा पहनने वाले रामनरेश का राजीनीतिक करियर बेदाग रहा, मगर मध्य प्रदेश का राज्यपाल बनने उन्हें रास नहीं आया। वजह कि इस पद पर रहते हुए उनका नाम मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यापमं घोटाले से जुड़ा। उनके बेटे पर भी घपला करने का आरोप लगा। बाद में बेटे की संदिग्ध हालात में आवास पर मौत हो गई थी। व्यापमं में नाम आने पर उन्हें राज्यपाल पद से हटाने की मांग उठी थी, जिस पर राम नरेश यादव ने कहा कि- जांच पूरी होने तक उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता, लिहाजा वह अपने पद पर बने रहेंगे।