नई दिल्लीः जब पांच नवंबर को लखनऊ में रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह और जदयू नेता शरद यादव समाजवादी पार्टी के सिल्वर जुबली समारोह का मंच साझा कर रहे तो सियासी गलियारे में महागठबंधन तय माना जा रहा था। मगर, अचानक मुलायम सिंह यादव पलट गए और अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। बस फिर क्या था कि उनके करीबी दल नाराज हो उठे हैं। अब रालोद और जदयू ने गठबंधन कर यूपी चुनाव में समाजवादी पार्टी के खिलाफ ही चुनाव लड़ने की तैयारी कर ली है। जदयू महासचिव केसी त्यागी ने तो बकायदा इसकी घोषणा भी कर दी।
मुलायम सिंह पड़ गए अलग-थलग
भाजपा को यूपी की सत्ता में आने से रोकने के लिए जिस तरह से सभी दल महागठबंधन का मोर्चा खड़ा करने की तैयारी में जुटे थे। मगर अब महागठबंधन की अहम कड़ी जदयू व रालोद के गठबंधन कर लेने से सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह अलग-थलग पड़ गए हैं। दरअसल मुलायम सिंह को सीएम बेटे अखिलेश ने समझाया कि यह महागठबंधन सपा के लिए नुकसानदायक रहेगा। क्योंकि सपा सत्ता में है और अगर कई दलों के साथ पार्टी चुनाव लड़ती है तो जनता में संदेश जाएगा कि सपा कमजोर पड़ चुकी है। वहीं महागठबंधन पर सपा को दूसरे दलों को सीटें देनी पड़ेंगी। जिससे वह पूरे सीटों पर चुनाव नहीं लड़ पाएगी। अगर महागठबंधन की जीत भी होगी तो कई दलों के साथ सरकार चलाने में ब्लैकमेलिंग भी झेलनी पड़ेगी। दूसरे दल अपनी संख्या का भय दिखाकर सत्ता का फायदा उठाने की कोशिश करेंगे। जिसकी वजह से मुलायम ने महागठबंधन से इन्कार करते हुए विलय का रास्ता खोला था। कहा था कि अगर कोई दल सपा में विलय करना चाहता है तो उसका स्वागत है।
पश्चिमी यूपी में सपा के लिए खतरे की घंटी
जदयू और रालोद का गठबंधन दूसरे दलों के वोट में तो नहीं सेंधमारी कर पाएगा, मगर सपा के वोटबैंक को जरूर कुछ नुकसान पहुंचा सकता है। क्योंकि इस गठबंधन से जुड़ी पार्टियां जिन वोटों पर निगाह गड़ाए हैं, वहीं मतदाता सपा से जुड़ाव रखते हैं। पूर्वांचल व अन्य इलाकों में तो खैर यह गठबंधन बेअसर रहेगा, मगर पश्चिम यूपी में जरूर समाजवादी पार्टी के लिए खतरे की घंटी है। एक तो वैसे ही पश्चिमी यूपी में सपा पहले से कमजोर है। ऐसे में कुछ भी वोट अगर गठबंधन ने सपा के खाते से झटक लिया तो सपा सुप्रीमो को नुकसान हो जाएगा।