रहते थी मेरी मासी जहां पर वो हवेली ना होकर था भूतिया घर,
जहां जाने से भी हम बच्चों को लगाता था ना जाने क्यूं ही डर।।
21 सितम्बर 2022
रहते थी मेरी मासी जहां पर वो हवेली ना होकर था भूतिया घर,
जहां जाने से भी हम बच्चों को लगाता था ना जाने क्यूं ही डर।।
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मैं एक टीचर हूँ, कविता, गजल, शेरों शायरी का शौक है मुझे ।मेरे सारे खयाल मैं शब्दों में लिखती हू, कुछ कुछ तजुर्बे, तो कुछ आनेवाले कल की उम्मीद से हर दिन मिलती हू!वैसे मैं प्रतिलिपी, पॉकेट नोव्हल, अमर उजाला पर भी लिखती हू, मेरी पहली और दूसरी कविता की किताब फ्लिपकार्ट, अमेजन जैसे प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित हो चुकी है, जो भी मुझे फॉलो करते है और जो नही वे सब मेरी बुक वहां पर पढ़ सकते है। वहां भी मुझे पढ सकते है, और फॉलो कर सकते है!D