लखनऊ-: धीरे धीरे तीन महीने होने को आ रहे हैं योगी सरकार को। उनमें आज भी पहले जैसी ही ऊर्जा, कुछ कर दिखाने की ललक और कडक है। थके और रुके बिना ही आप भी उन्हें दिनरात अनवरत काम करते देख रहे होंगे। लेकिन, क्या आपको भी इस बात का एहसास हो सका है कि योगी में अब पहले जैसी चमक और दमक नहीं रह गयी है। उसमें फर्क आ गया हैं। इसलिये कि उनकी सरकार में योगी सिर्फ एक ही है। सहयोगी मंत्रियों और नौकरशाहों में एक भी मोदी के नितिन गडकरी और नृपेद्र मिश्र जैसा नहीं।
अकेला चना कितनी भी बडा काबुली क्यों न हो, भाड नहीं फोड सकता। चाहे वह नरंेद्र मोदी ही क्यों न हों। उन्हे भी अमित शाह जैसा समर्पित महामात्य मिला है। और योगी पर‘कापे करूं सिंगार, पिया मोर आंधर‘वाली कहावत पूरी तरह चरितार्थ हो रही है। उनके मंत्रियों में एक भी नाम ऐसा नहीं लिया जा सकता है, जिसे लोग योगी के बाद दूसरे नंबर का समझते हो।ं बेशक, बिजली की व्यवस्था में सुधार हुआ है। लेकिन, उसकी धडल्ले से चोरी आज भी हो रही है। क्या गांव और क्या शहर? हर जगह। इसके बाद दूसरी सबसे ज्यादा जरूरी चीज चिकित्सा व्यवस्था है। इसके मंत्री सिद्धाथ्र्र नार्थ सिहं पूरी तरह फुस्स साबित हो गये हैं। बडा नाम सुनते थे इनका, लेकिन काम? अधिकांश मंत्री लकीर ही पीटते नजर आ रहे हैं। गनीमत हुई कि मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ से सभी विभाागों के टेडर आनलाइन करने के आदेश दिये है, अन्यथा.....!
बेशक, योगी के योगीत्व में धेला भर भी संदेह नहीं। उनका चरित्र और आचरण गंगाजल जैसा निर्मल कहा जा सकता है। वह प्रदेश को कम से कम समय बहुत बदल देना चाहते हैं। लेकिन, अपनी इस आकांक्षा को वह, लाख चाहकर भी मूर्तरूप नहीं दे पा रहे हैं। इसकी सबसे खास वजह उनके समूचे शासन तंत्र में एक भी नौकरशाह ऐसा नही कहा जा सकता है, जिसकी साख भूरे लाल अथवा संजय भूसरेड्डी जैसी हो। केंद्र सरकार में सेवारत रहने के दौरान इन्हीं भूरे लाल ने एक बार इस संवााददाता से कहा था कि उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के लोग दूसरे राज्यों में जाकर दिहाडी मजदूरी करते हैं। उन्हें नहीं मालूम कि जिस धरती की कोख की वे उपज हैं, वइ इस हद तक उर्वर है कि समूचे उत्तर भारत का पेट भर सकती है। खैर, यह सालों पहले रिटायर हो चुके हैं।
अब चर्चा केंद्र सरकार में ही सेवारत वरिष्ठ नौकरशाह संजय भूसरेड्डी की। इनके बारे में सिर्फ इतना ही कहना काफी होगा कि मायावती के मुख्य मंत्रित्व काल में यह उत्तर प्रदेश राज्य सडक परिवहन विभाग में प्रबंध निदेशक थे। उस समय लखनऊ में बसपा की कोई बडी रैली होने वाली थी। उसके लिये उसे परिवहन विभाग की बसों की आवश्यकता थी। यह काम संजय भूसरेड्डी को ही करना था। वह बसों को देने के लिये तैयार हो तो गये, लेकिन उसके साथ शर्त यह लगा दी थी कि बसपा संगठन अपने ऊपर बकाये पहले के लगभग 13 करोड रु का भुगतान करे। यह खबर मायावती तक पहुंची, तो उसी शाम संजय भूसरेड्डी का तबादला कर इन्हें किसी अत्यंत महत्वहीन पद पर भेज दिया गया। संजय तो इसके लिये पहले से तैयार बैठे थे।
मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ भी इन्हें अच्छी तरह से जानते हैं। इसीलिये इन्हें यहां लाने की कोशिश भी कर रहे हैं। लेकिन, पेंच न जाने कहां फंसा है? वैसे, इनकी कोशिश को हर हाल में परवान पर चढना ही चााहिये अन्यथा योगी के सपनों को मूर्तरूप दे पाना आसान नहीं होगा। उनके मिशन 2019 की कामयाबी की कुंजी योगी सरकार में नितांत पारदर्शी और लोकहित में बडी से बडी जोखिम मोल ले सकने का साहस रखने वाले नौकरशाहों की संख्त जरूरत है।